बाल झड़ने के कारण: जानिये किन बीमारियों के वजह से बाल गिरते हैं

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आम तौर पर ये माना जाता है कि 50-100 रोजाना बाल का गिरना सामान्य होता है। हजारों लाखों बालों में 50-60 बालों का गिरना कोई परेशानी की बात नहीं होती है। जो बाल गिर जाते हैं उसके जगह पर दूसरे बाल आ जाते हैं और ये चक्र चलता रहता है। लेकिन जब इस चक्र में समस्या उत्पन्न होने लगती है और गंजे होने की नौबत आ जाती है तब सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या बालों की ये स्थिति सामान्य है?  अक्सर ये देखा जाता है कि बालों में हाथ देने भर की देर होती है और मुट्ठियों में ये झड़ने लगते हैं या कोई भी दवा या घरेलू नुस्खा सही तरह से काम नहीं कर रहा है तो बिना देर किये तुरन्त डर्माटोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए।

ये सच है कि बालों के स्वस्थ रहने के पीछे सेहतमंद रहनसहन, खान-पान, शारीरिक सक्रियता सब कुछ जरूरी होता है। लेकिन कभी-कभी अापके अनजाने कोई बीमारी शरीर में अपना घर बसा लेती है जिसके कारण बालों का झड़ना, कमजोरी, बदन दर्द जैसी परेशानियां होने लगती है। लेकिन इन सामान्य या आम लक्षणों के पीछे भयानक बीमारी के होने का भी संकेत हो सकता है, जैसे- थॉयरायड, अवसाद, तनाव, पॉलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम आदि।

बाल झड़ने के कारण

बाल झड़ने या गिरने की समस्या को लेकर जब आप डर्माटोलॉजिस्ट के पास जायेंगे तब वह इसके पीछे के वजह का पता लगाने की कोशिश करते हैं–

-अगर परिवार में गंजेपन की समस्या है तो, हो सकता है उस हार्मोन के सक्रिय हो जाने के कारण बाल झड़ रहे हैं।

गर्भधारण करने के कारण, प्रसव होने के कारण, बर्थ कंट्रोल पिल्स लेने के कारण या अचानक बंद करने के कारण, रजोनिवृत्ति के कारण भी बाल झड़ते हैं।

– कभी-कभी बड़ी बीमारी से ठीक होने पर या  सर्जरी होने पर भी बाल झड़ते हैं।

-यहां तक कि खान-पान या डायट का असर भी बालों पर पड़ता है।

– और फिर आता है मेडिकल कंडिशन की बात। क्योंकि बीमारियों के कारण गंजापन, बालों का झड़ना जैसी समस्याएं आती हैं।

यहां पर ऐसे बीमारियां के बारे में आगे चर्चा करेंगे-

ऐलोपेशिया एराइटा- इस बीमारी में स्कैल्प पर गोल-गोल चकती (पैचेस) जैसा गंजापन होते दिखता है। क्योंकि पहले पहले नहाते वक्त या सोकर उठने पर तकिये पर गुच्छों में बाल गिर हुए नजर आते हैं। ऐलोपेशिया एराइटा में हम कुछ भी निश्चित होकर नहीं कह सकते हैं कि बाल बिल्कुल गिर जायेंगे या फिर से वापस आयेंगे, ये शरीर पर निर्भर करता है। क्योंकि बाल गिरकर कभी भी वापस आ सकता है या आने के बाद फिर से गिर सकता है।

असल में ऐलोपेशिया एराइटा स्व-प्रतिरक्षित रोग (ऑटो इम्युन डिजीज) है। असल में इस बीमारी में शरीर दूसरे जीवाणु या विषाणु को पनपने से रोकने में अक्षम हो जाता है। और शरीर की ये अक्षमता सीधे केश कूप (हेयर फॉलीकल) को प्रभावित करता है [1]।

वैसे तो बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं हो  सकती है लेकिन इसके परिस्थितों या लक्षणों पर कुछ हद तक नियंत्रण  पाया जा सकता है।

थॉयरायड- आजकल तो अधिकतर लोगों को थॉयरायड की बीमारी हो रही है, चाहे वह पुरूष हो या महिला। थॉयरायड गर्दन के सामने की तरफ तितली की तरह ग्लैंड होता है। थॉयरायड डिजीज दो तरह की होती है- हाइपोथॉयरॉडिज्म और हाइपरथॉयरॉडिज्म। जो सीधे बालों के स्वास्थ्य पर असर करता है। थॉयरायड ग्लैंड के सुचारू रूप से काम करने पर ही बालों के झड़ने के समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है[2]।

पौष्टिकता की कमी (न्यूट्रिशनल डिफिसियेन्सी)- न्यूट्रिशनल डिफिसियेन्सी उसको कहते हैं जब शरीर खाद्द पदार्थ के पौष्टिकता को सोख नहीं पाता है। इसकी कमी से बहुत सारी के बीमारियां पनपने लगती हैं। इसकी कमी से बदहजमी की समस्या से लेकर त्वचा संबंधी समस्याएं और डिमेंशिया तक हो सकता है। साथ ही साथ बालों के सेहत पर भी असर पड़ता है। न्यूट्रिशनल डिफिसियेन्सी में कमजोरी, थकान, सांस लेने में असुविधा, एकाग्रता में कमी जैसे लक्षणों के साथ बालों के झड़ने जैसी समस्याएं भी होती है [3]।

तनाव (स्ट्रेस)-  आज के तारिख में देखे तो तनाव किसको नहीं है। जिंदगी में कोई भी बूरी घटना घटने के बाद कभी-कभी इंसान उससे उभर नहीं पाता है। यानि जब चिंता की स्थिति दो-तीन के जगह पर महीनों में बदल जाती है तब वह स्थिति गंभीर हो जाती है। ये स्थिति न सिर्फ आपको शारीरिक तौर पर बल्कि मानसिक तौर पर भी प्रभावित करता है। स्ट्रेस का असर केश कूप या हेयर फॉलिकल पर पड़ता है जिसके कारण बाल असमय गिरने लगते हैं [4]।

लाइकन प्लेनस- प्रतिरक्षी क्षमता के कमजोर होने के कारण लाइकन प्लेनस होता है जो एक तरह का स्किन रैशेज होता है। ये एक तरह का रैशेज होता है जो मुँह से लेकर स्कैल्प के स्किन में भी हो सकता है। घाव के ऊपर सफेद रंग का स्तर पड़ जाता है जिसके कारण दर्द और जलन जैसा महसूस होता है और पपड़ीदार घ‍ाव भरी त्वचा के कारण बाल झड़ने लगते हैं [5]।

हॉजकिन्स डिज़ीज- ये एक प्रकार का ब्लड कैंसर होता है। इस कैंसर का संबंध लसीका प्रणाली ( लिम्फैटिक सिस्टेम) से होता है। लसीका प्रणाली का काम प्रतिरक्षा प्रणाली को मदद करना होता है जो शरीर को जीवाणु और विषाणु से लड़ने में मदद करता है। इस डिज़ीज के बढ़ने पर शरीर इंफेक्शन से नहीं लड़ पाता है। इस बीमारी का प्रभाव थॉयरायड ग्लैंड पर भी पड़ता है जिसका सीधा असर बालों के स्वास्थ्य पर पड़ता है और बाल झड़ने लगते हैं [6]।

पॉलिसिस्टिक ओविरियन सिंड्रोम- ये एक प्रकार का एंडोक्राइन डिसऑर्डर है जो महिलाओं के हार्मोन को प्रभावित करता है। इस सिंड्रोम के कारण एंड्रोजेन और डिहाइड्रोटेस्टास्टेरॉन हार्मोन का स्तर शरीर में  बढ़ जाता है। जो महिलाओं में बाल झड़ने के कारण बन जाता है। इसके लिए इस हार्मोन को दवा के मदद से सही स्तर में लाना बहुत जरूरी होता है तभी बालों का गिरना नियंत्रण में किया जा सकता है [7]।

अवसाद (डिप्रेशन)- आज के तारिख में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अवसाद को लेकर सभी परेशान है। तनाव और अवसाद दोनों का असर बालों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसके कारण अचानक बाल झड़ने लगते हैं साथ ही बालों का विकास और बालों की क्वालिटी भी प्रभावित होती है। तो जैसे-जैसे अवसाद के स्थिति पर नियंत्रण पायेंगे बालों का स्वास्थ्य भी बेहतर होता जायेगा [8]।

उपदंश (सिफलिस)- सिफलिस एक तरह का यौनसंचारित रोग होता है, जो ट्रिपोनेमा पैलिडम जीवाणु के कारण होता है। ये बीमारी रेक्टम, यौन अंगो और मुँह में घाव जैसा होता है। अगर इस बीमारी को बहुत दिनों तक नजरअंदाज किया गया तो मस्तिष्क और हृदय को भी ये प्रभावित करता है। इस बीमारी के चार चरण है- प्राइमरी, सेकेन्डरी, लैटेन्ट और टरशयरी। सेकेन्डरी स्टेज में ये बीमारी जब चली जाती है तब ये बालों को प्रभावित करती है जिसके कारण बालों का न तो विकास हो पाता है और न ही उनका झड़ना रूक पाता है[9]।

इस चर्चा से अब जान ही चुके हैं कि इन बीमारियों का सीधा असर बालों के सेहत पर पड़ता है जिसके कारण बाल न सिर्फ झड़ते है बल्कि वह रूखे-सूखे, बेजान और पतले हो जाते हैं। इसलिए बाल जब अधिक झड़ने लगे तो उसको नजरअंदाज न करें और डर्मालॉजिस्ट से सलाह लें ताकि किसी भयंकर बीमारी को प्रथम चरण में ही फैलने से रोक सके।

(इस लेख की समीक्षा डॉ. ललित कनोडिया, फिजिशियन ने की है।)

संदर्भ

1-Brzezińska-Wcisło L, Bergler-Czop B, et al A. New aspects of the treatment of alopeciaareata.Postepy Dermatol Alergol. 2014 Aug;31(4):262-5.

2-Contreras-Jurado C, Lorz C, et al. Thyroid hormone signaling controls hair follicle stem cell function. Mol Biol Cell. 2015  Apr 1;26(7):1263-72.

3- Guo EL, Katta R. Diet and hair loss: effects of nutrient deficiency and supplement use. Dermatol Pract Concept. 2017 Jan 31;7(1):1-10.

4-Botchkarev VA. Stress and the hair follicle: exploring the connections. Am JPathol. 2003 Mar;162(3):709-12. Review. PubMed PMID: 12598304;

5-Vendramini DL, Silveira BR, et al. Isolated Body Hair Loss: An Unusual Presentation of Lichen Planopilaris. Skin Appendage Disord. 2017 Jan;2(3-4):97-99.

6-Garg S, Mishra S, Tondon R, Tripathi K. Hodgkin’s Lymphoma Presenting as Alopecia. Int J Trichology. 2012 Jul;4(3):169-71.

7-Ramos PM, Miot HA. Female Pattern Hair Loss: a clinical and pathophysiological
review. An Bras Dermatol. 2015 Jul-Aug;90(4):529-43.

8-Schmitt JV, Ribeiro CF, et al. Hair loss perception and symptoms of depression in female outpatients attending a general dermatology clinic. An Bras Dermatol. 2012 May-Jun;87(3):4127.

9-Tognetti L, Cinotti E, Perrot JL, Campoli M, Rubegni P. Syphilitic alopecia:
uncommon trichoscopic findings. Dermatol Pract Concept. 2017 Jul 31;7(3):55-59.

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