धात सिंड्रोम भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाने वाली एक शारीरिक और मानसिक समस्या है, जो अक्सर युवाओं को अधिक प्रभावित करती है। क्या आपके पेशाब में धात निकलती है? क्या अत्यधिक शुक्राणु पतन (सीमन लॉस) के कारण कमजोरी आ गयी है? गली मोहल्लों में, ट्रेन बसों में नीम हकीमों के इस प्रकार के पोस्टर आम बात हैं। यौन शिक्षा से वंचित भारत का आम युवा इन लोगों के चक्कर में आकर यह महसूस करने लगता है कि वो कुछ गलत कर रहा है, उसके शरीर से उर्ज़ा कम हो रही है और वो किसी गंभीर रोग से ग्रस्त है। आइये देखते है कि धात और धात सिंड्रोम से जुड़ी क्या-क्या भ्रांतियां समाज़ में व्याप्त हैं, और उनका सच क्या है?
भ्रांति : पेशाब में कभी कभी निकलने वाला धात या सफ़ेद चिपचिपा पदार्थ जीवन के लिये आवश्यक तत्व (वाइटल सब्स्टेंस) है। यह एक प्रकार का जीवन द्रव्य है, शरीर की सात प्रमुख धातुओं में से एक धातु है, जिसे अगर हम लगातार खोते रहे तो हमारा शरीर कमज़ोर पड़ जायेगा तथा मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो जायेंगी।
सच : पेशाब के रास्ते कभी-कभी निकलने वाला यह पदार्थ “’प्रीकोटियल फ्लूइड’ होता है। इसका कार्य पेशाब के रास्ते की अम्लीयता को खत्म करना होता है, जिससे की शुक्राणु इस वातावरण में जीवित रह सके। कभी कभार यौन विचारों व उत्तेज़ना के कारण युवावस्था में पेशाब के साथ वीर्य भी निकल सकता है, यह एक प्रकार का शीघ्रपतन (प्रीमेच्योर इजेक्युलेशन) है, जिसका शरीर पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं होता है।
भ्रांति : धात निकलना एक गंभीर यौन रोग है। यह बुरे विचारों, अत्यधिक हस्तमैथुन (मास्टरबेशन) आदि के कारण होता है। इससे शरीर का जीवन द्रव्य निकल जाता है। व्यक्ति कमजोर हो जाता है और भविष्य में प्रजनन लायक भी नहीं रहता है। इसका तुरंत इलाज़ कराना जरूरी है। हस्तमैथुन और किसी भी तरह के यौन विचारों से पूरी तरह से दूर रहना धात को शरीर में बनाये रखने के लिये जरूरी है।
सच : यह सब पढकर आपका घबरा जाना और नीम हकीमों के चक्कर में पड़ जाना स्वाभाविक है लेकिन यह जान लें कि धात निकलना कोई रोग नहीं है। एक उम्र के बाद यौन विचार आना और हस्तमैथुन करना सामान्य बात है। यह किसी भी प्रकार की समस्या पैदा नहीं करता है, बल्कि यौन इच्छाओं को दबाना और हस्तमैथुन से बचना जरूर आपके लिये मानसिक तनाव का कारण बन सकता है। रही बात रोग और उपचार की, तो यह एक प्रकार का ‘कल्चर बाउंड सिंड्रोम’ है, जो आपकी मान्यताओं, विश्वासों व भ्रांतियों के कारण पैदा होता है। आप तनाव और हीनभावना महसूस करतें है और उससे ही इसके लक्षण और बढ़ते जाते हैं। अगर डिप्रेशन (अवसाद), पैनिक अटैक, थकान, हीन भावना जैसे लक्षण आ रहे है तो इसे काउंसलिंग और मनोचिकित्सकों की सलाह लेकर ठीक किया जा सकता है, इसके लिए किसी अलग तरह के इलाज की ज़रूरत नहीं है।
भ्रांति : शरीर से किसी भी रूप में वीर्य (सीमन) का निकलना हानिकारक होता है। इससे कमजोरी आती है, चेहरे का तेज़ कम होता है, और लंबे समय तक ऐसा होते रहने पर गंभीर शारीरिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
सच : शरीर से वीर्य का निकलना एक सामान्य फ़िजियोलॉजिकल प्रक्रिया है, जो आपको किसी भी प्रकार से कमजोर नहीं करती है। जरा सोचिये, शादीशुदा और सेक्सुअली एक्टिव लोग क्या कमज़ोर होतें हैं?
भ्रांति : खून की बहुत सी बूंदों से वीर्य का निर्माण होता है, इस कारण से अगर धात के रूप में या स्वपनदोष के रूप में वीर्य निकल रहा है तो यह एक प्रकार से बहुत सा खून बहने के समान है।
सच : खून और वीर्य का आपस में कोई संबंध नहीं है और दोनों के बनने की प्रक्रिया भी पूरी तरह से अलग है। आप किसी भी नजदीकी डॉक्टर से इस बारे में पूरी जानकारी ले सकते हैं।
प्राचीन सुश्रुत संहिता में लिखा है कि 40 भोजनों से एक बूंद खून बनता है, 40 खून की बूंदों से एक बूंद मज्जा (बोन मैरो) का निर्माण होता है, और मज्जा की 40 बूंदों से एक बूंद वीर्य का निर्माण होता है। इसी प्रकार की कुछ धारणा अरस्तू ने भी दी थी। इस कारण से पीढ़ी दर पीढ़ी यह विचार बनता गया और सुदृढ़ होता गया कि वीर्य बहुमूल्य है, और इसके पतन से शारीरिक समस्याएं आ सकती है। परंतु आधुनिक विज्ञान इसे पूरी तरह से नकारता है। इसलिए इन भ्रांतियों से बचिए, खुद को इन नीम-हकीमों से दूर रखिए, और स्वस्थ एवं प्रसन्न रहिये।
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