जैसे ही पता चलता है कि आपको कैंसर है, आपके साथ आपके परिवार के लोग भी काफी घबराने लगते हैं. इस घबराहट की वजह से अक्सर लोग इस उधेड़बुन में रहते हैं कि अब क्या किया जाए. डायग्नोसिस या जांच करने वाले डॉक्टर की बातों पर पूरा भरोसा किया जाए या फिर किसी दूसरे डॉक्टर से राय यानि की सेकंड ओपिनियन लिया जाए.
दरअसल, इस कठिन समय में सेकंड ओपिनियन लेना जरूरी माना जाता है. इससे आपको अपने स्वास्थ्य के विभिन्न पहलूओं पर चर्चा करने के साथ इलाज का उचित विकल्प चुनने का मौका मिलता है. इस विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर हम इन 6 बातों के जरिए बता रहे हैं कि सेकंड ओपिनियन या दूसरे डॉक्टर से राय लेना क्यों जरूरी है.
डायग्नोसिस की पुष्टि: कैंसर के डायग्नोसिस के बाद यदि आप सेकंड ओपिनियन ले रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपने पहले डॉक्टर की बातों या उसके द्वारा किए गए जांच पर विश्वास नहीं है. दरअसल, कुछ मामलों में सेकंड ओपिनियन से आपके डायग्नोसिस की पुष्टि हो जाती है और आप अनावश्यक मेडिकल इंटरवेंशन और कई सर्जिकल प्रक्रियाओं से बच जाते हैं. कई डॉक्टरों की मिलीजुली राय न केवल आपको बल्कि आपके परिवार को भी मानसिक राहत प्रदान करती है.
मेडिकल रिकॉर्ड्स इकट्ठा करें: आमतौर पर सेकंड ओपिनियन लेने के बाद जल्द से जल्द इलाज का एक विकल्प चुनना पड़ता है. सटीक ओपिनियन पाने के लिए अपनी पैथोलॉजी रिपोर्ट, इमेजिंग स्कैन, इलाज की हिस्ट्री और निदान करने वाले डॉक्टर के निर्देंशों सहित अपने सभी जरूरी मेडिकल रिकॉर्ड एक जगह इकट्ठा कर लें और इसे नए डॉक्टर के पास लेकर जाएं. सभी रिकॉर्ड्स इकट्ठा करने से दूसरे एक्सपर्ट को आपको हर एक बारीक जानकारी नहीं देनी पड़ेगी और आपको उचित सलाह भी मिलेगी.
तैयार रहें: कैंसर की पहचान होने के बाद अगर आप सेकंड ओपिनियन के लिए अपॉइंटमेंट लेने की सोच रहे हैं तो सबसे पहले उन सवालों की लिस्ट तैयार कर लें, जो आप डॉक्टर से पूछना चाहते हैं. इससे आपको परामर्श लेने में आसानी होगी और आप इलाज के विकल्पों को ठीक तरह से समझ पाएंगे.
इलाज के विकल्पों को समझें: सेंकड ओपिनियन के दौरान आपको वैकल्पिक इलाज के ऑप्शन, क्लिनिकल ट्रायल या कटिंग एज-थेरेपी जैसे कई सुझाव दिए जा सकते हैं. हो सकता है कि आपके पहले डॉक्टर ने ये सभी विकल्प आपको न बताएं हों. यह व्यापक दृष्टिकोण आपको इलाज का विकल्प चुनने में काफी हद तक मदद कर सकता है.
सेकंड ओपिनियन का अधिकार: बेशक, आपको यह समझना बहुत जरूरी है कि आपको सेकंड ओपिनियन या दूसरे डॉक्टर से परामर्श लेने का पूरा अधिकार है. दरअसल, ऐसा करने से न सिर्फ आपको इलाज का विकल्प चुनने में मदद मिलेगी बल्कि आपका यह निर्णय आपके कॉन्फिडेंस और मानसिक शांति को बढ़ाने में मदद करेगा.
अंतिम निर्णय लेना: दूसरे डॉक्टर से मिलने के बाद सारी जानकारी और ओपिनियन इकट्ठा करने के बाद, आपको कौन सा विकल्प चुनना है, पर्याप्त समय लेकर इसके बारे में सोचें. आपके जीवन पर इस इलाज का क्या फायदा, नुकसान और प्रभाव पड़ेगा, इस पर भी विचार करें. अंतिम निर्णय लेने से पहले अपनी हेल्थकेयर टीम, परिवार और भरोसेमंद दोस्तों के सामने अपनी बात खुलकर रखें.
सेकंड ओपिनियन लेते समय एक्सपर्ट से पूछें ये सवाल
क्या कोई अलग डायग्नोसिस (निदान) भी संभव है?
डॉक्टर से यह प्रश्न पूछना बहुत जरूरी है. यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि क्या गलत डायग्नोसिस होने की संभावना भी होती है. गलत डायग्नोसिस के परिणाम भी घातक होते हैं. इसलिए इलाज शुरू कराने से पहले डायग्नोसिस की सटीकता की गारंटी लेने के लिए सेकंड ओपिनियन जरूरी है.
इलाज के लिए क्या-क्या विकल्प मौजूद हैं?
कैंसर के इलाज के लिए जितने भी विकल्प मौजूद हैं, उनके बारे में डॉक्टर से सवाल पूछें. कौन सा स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट, क्लिनिकल ट्रायल और थेरेपी आपके लिए उपयुक्त होगी, यह भी पूछें. आप कौन से सर्जिकल इंटरवेंशन, दवाओं और वैकल्पिक उपचार के योग्य हैं, यह सुनिश्चित कर लें. बीमारी से लड़ने और अपना कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए डॉक्टर से सभी संभव इलाजों के बारे में बात करें.
प्रत्येक इलाज के फायदे और नुकसान क्या हैं?
अपने डॉक्टर से प्रत्येक प्रस्तावित इलाज से जुड़े संभावित फायदे और नुकसान को समझें. इस बारे में जानकारी लेने से आपको अपने इलाज की योजना बनाने और उसके बारे में निर्णय लेने में मदद मिलेगी.
क्या वैकल्पिक इलाज या कॉम्पलीमेंटरी थेरेपी का सहारा लिया जा सकता है?
डॉक्टर से ऐसे वैकल्पिक या कॉम्पलीमेंटरी थेरेपी के बारे में भी पूछें जो आपके इलाज में सहायक हों. कई ऐसी थेरेपी भी होती हैं जो इलाज के दौरान आपको मानसिक रूप से और मजबूत बनाने में मदद करती हैं.
इलाज के सफल होने की संभावना कितनी है?
प्रत्येक इलाज के विकल्प की सफलता की संभावना के बारे में पूछताछ करना जरूरी है. हालांकि कोई भी मेडिकल इंटरवेंशन यह गारंटी नहीं दे सकता कि एक इलाज के सफलता की दर दूसरों की तुलना में ज्यादा है. फिर भी अपने डॉक्टर से इस बारे में जरूर चर्चा करें कि प्रत्येक विकल्प के सक्सेस रेट क्या हैं. इससे आपको अंतिम निर्णय लेने में मदद मिलेगी.
निष्कर्ष
कैंसर की पहचान होने के बाद सेकंड ओपिनियन लेना आपके स्वास्थ्य पर नियंत्रण रखने की दिशा में एक सक्रिय और सशक्त कदम है. यह आपको व्यापक परिप्रेक्ष्य, अतिरिक्त जानकारी और कैंसर से लड़ने के लिए सर्वोत्तम निर्णय लेने का आत्मविश्वास देता है. याद रखें, इस यात्रा में आप अकेले नहीं हैं. सर्वोत्तम संभव देखभाल प्राप्त करना आपका अधिकार और प्राथमिकता है.
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(इस लेख की समीक्षा डॉ. स्वाति मिश्रा, मेडिकल एडिटर ने की है.)
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स्रोत:
1. The University of Kansas Cancer Center. 2023. Available online: https://www.kucancercenter.org/patients-caregivers/becoming-our-patient/second-opinion
2. American Cancer Society. Getting a Second Opinion. 2019. Available online:
https://www.cancer.org/cancer/latest-news/getting-a-second-opinion.html#:~:text=Make%20an%20appointment%20with%20your,or%20professional%20guidelines%20they%20consulted
3. The University of Texas MD Anderson Cancer Center. 2023. Available online: https://www.mdanderson.org/cancerwise/5-questions-to-ask-a-medical-oncologist-during-your-first-visit.h00-159619434.html
4. American Society of Clinical Oncology (ASCO). 2023. Available online: https://www.cancer.net/navigating-cancer-care/cancer-basics/cancer-care-team/seeking-second-opinion
5. Cancer Research. 2023. Available online: https://www.cancerresearchuk.org/about-cancer/treatment/access-to-treatment/different-doctor-second-opinion