Written by: DIXIT RAJPUT
आयुर्वेद में वात और पित्त हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करने वाले तीन दोषों में से दो हैं। जब ये दोष असंतुलित होते हैं, तो यह आपके शरीर और मन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर सकते हैं।
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यहां वात-पित्त असंतुलन के 5 प्रमुख लक्षण और उन्हें ठीक करने के उपाय बताए गए हैं।
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वात और पित्त के असंतुलन से अनियमित पाचन, पेट फूलना, एसिड रिफ्लक्स और सीने में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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पित्त को शांत करने वाले भोजन करें जिसमें खीरे, खरबूजे और दही जैसे ठंडे खाद्य पदार्थ शामिल हों। मसालेदार या तली हुई चीजों से बचें।
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वात-पित्त असंतुलन के कारण अक्सर शरीर में अधिक गर्मी के होने से त्वचा का रूखापन, खुजली या चकत्ते और मुँहासे हो जाते हैं।
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अपनी त्वचा को अंदर से पोषण देने के लिए नारियल या चंदन जैसे ठंडक देने वाले तेल लगाएं और पानी पीते रहें।
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इस असंतुलन के कारण अचानक मूड में बदलाव, चिंता और बेचैनी हो सकती है, जिससे आपकी इमोशनल हेल्थ पर असर पड़ सकता है।
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योग या ध्यान जैसे माइंडफुलनेस तकनीकों का अभ्यास करें। साथ ही अश्वगंधा या कैमोमाइल चाय जैसी जड़ी-बूटियों का सेवन करें जो दिमाग को शांत करने में सहायक हैं।
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रात में बेचैनी, नींद आने में परेशानी या बार-बार नींद खुलना, वात-पित्त असंतुलन के लक्षण हो सकते हैं।
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सोने से पहले गर्म दूध में एक चुटकी जायफल डालकर पिएं। साथ ही कोशिश करें कि रोजाना एक ही समय पर सोएं और उठें।
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असंतुलित वात के कारण घुटने अंदर से सूखे व कठोर हो सकते हैं। जबकि अधिक पित्त के कारण उनमें सूजन व दर्द हो सकता है।
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गर्म तिल के तेल से जोड़ों की मालिश करें, साथ ही अपने आहार में हल्दी और अदरक जैसी सूजन घटाने वाली जड़ी-बूटियाँ शामिल करें।
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