Anoop Singh
आयुर्वेद के अनुसार, हमारे शरीर का स्वास्थ्य मुख्य रूप से तीन दोषों वात, पित्त और कफ पर निर्भर करता है. इनमें से किसी भी दोष के बढ़ने या घटने से शरीर में रोग उत्पन्न होने लगते हैं. आइए आज वात दोष के बारे में जानते हैं:
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वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है. वात दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है. हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव है.
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रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है. जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं लेकिन वात के बढ़ते या असंतुलित होते ही आपको कुछ लक्षण नजर आने लगेंगे.
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मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना, ज्यादा खाना या खाने के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना, रात को देर तक जागना, तेज बोलना, और क्षमता से ज्यादा मेहनत करना वात के बढ़ने के मुख्य कारण हैं.
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अंगों में रूखापन, कमजोरी और जकड़न, सुई के चुभने जैसा दर्द, हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन एवं कब्ज़ की समस्या होना, वात के बढ़ने के मुख्य लक्षण हैं.
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वात को संतुलित करने के लिए गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें. गर्म पानी और वात को कंट्रोल करने वाली औषधियों के काढ़े से नहाएं. घी में तले हुए ड्राई फ्रूट्स, नमकीन छाछ, पनीर और गाय के दूध का सेवन करें.
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असंतुलित वात के लिए चिकित्सक की सलाह के अनुसार, दशमूलारिष्ट, निर्गुण्डी चूर्ण या महारास्नादि क्वाथ का सेवन कर सकते हैं. दर्द से राहत के लिए महानारायण या महाविषगर्भ तेल से मालिश करें.
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घरेलू इलाज अपनाने के 1-2 दिनों के भीतर अगर बीमारी के लक्षणों में कोई सुधार नहीं होता है तो डॉक्टर या आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें. अगर आप किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं तो बिना डॉक्टर से सलाह लिए घरेलू इलाज ना अपनाएं.
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