‘कुछ बीमारियां जानलेवा नहीं होती, बल्कि जीवन को नर्क बना देती है’, स्टीफ़न रोथमैन का यह कथन सफ़ेद दाग या विटिलिगो पर पूरी तरह से लागू होता है। सफ़ेद दाग या श्वित्र के नाम से जाने जाने वाले इस रोग में शरीर के विभिन्न हिस्सों जैसे कि हाथ, पैर, गर्दन और चेहरे पर सफ़ेद चकते बन जाते हैं। इस बीमारी में किसी प्रकार का दर्द, घाव या पीड़ा नहीं होती, परंतु समाज इस प्रकार के रोगियों को हेय दृष्टि से देखता है और इनमें इस कारण से एक हीन भावना पैदा हो जाती है।
सफ़ेद दाग क्यों होते हैं?
आधुनिक विज्ञान के अनुसार शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र में गड़बड़ी आने से और शरीर में रंग बनाने वाली कोशिकाओं के सही से काम ना करने पर शरीर में जगह जगह सफ़ेद दाग बन जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार शारीरिक वेगों (मल, मूत्र के वेग) को रोकने के प्रयास, बहुत ज्यादा गर्म या ठंडा खाने से, बहुत अधिक व्यायाम करने से और निषेध पदार्थों का सेवन करने से यह रोग होता है। कारण चाहे जो भी हो, एक बार होने के बाद सफ़ेद दाग का उपचार काफ़ी कठिन हो जाता है। एलोपैथी में स्टीरोइड, लेजर और कुछ लगाने वाली दवाओं से इसका उपचार किया जाता है, जिनके अपने दुष्प्रभाव होते है और इसके वावजूद भी रोग में बहुत कम सुधार देखने को मिलता है। आइये देखते है आयुर्वेद में इस रोग के इलाज़ के लिये क्या क्या उपाय बतायें गये हैं।
– पारंपरिक आयुर्वेदिक दवायें और योग
– आयुर्वेद के अनुसार वात, कफ़ और पित रोगों का निवारण किया जाता है, ऐसा माना जाता है कि संपूर्ण दोष निवारण से दाग अपने आप ठीक हो जाते है।
– कपाल भाति प्राणायाम और भ्रस्तिका योग सफ़ेद दाग में फ़ायदेमंद हैं।
– बाबची और इमली के बीजों का पेस्ट बनाकर उन्हें दिन में तीन चार बार दाग पर लगाने से रंग बनने की प्रक्रिया पुन: शुरू हो जाती है।
– नदी के किनारे पायी जाने वाली लाल मिट्टी को अदरक के रस के साथ मिलाकर लगाने से भी दाग का प्रसार रुक जाता है।
– हल्दी और सरसों के तेल को मिलाकर सफ़ेद दागों पर लगाया जा सकता है।
– इसके अलावा कुछ खाने की आयुर्वेदिक दवायें जैसे कि आरोग्य वर्धन वटी और गुडुची सत्व दी जाती है।
नवीन चिकित्सकीय तकनीकें :
इस रोग में दवाओं की सीमित सफ़लता को देखते हुए आयुर्वेदिक वैज्ञानिक कुछ नयी विधियों पर काम कर रहें हैं। इनमे से दो उपचार प्रक्रियाओं में खासी सफ़लता मिली है।
– चिकित्सकीय वमन : 2015 में मुल्लाह और उनके साथियों ने इस प्रक्रिया पर शोध किया। सफ़ेद दाग के कुछ मरीजों को सुबह खाली पेट कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा वमन या उल्टी करवायी गयी। इस दौरान उन्हें कुछ अन्य दवायें भी दी गयीं। चिकित्सकों ने पाया कि इस चिकित्सा से ना केवल दाग का बढना रुका बल्कि सफ़ेद चकत्तों में वापस कुछ हद तक रंग आने लगा। इस दौरान चल रही अन्य दवाओं की प्रभाविकता भी बढ गयी। पेट में हल्की समस्या के अलावा इस प्रयोग का कोई भी साइड इफ़ेक्ट देखने को नहीं मिला। चिकित्सकों के अनुसार उन्हें आगे के शोधों में इस विधि की पूर्ण सफ़लता की आशा है।
– जोंक (लीच) थैरेपी : एक प्रायोगिक अध्ययन में हेमंत कुमार और उनके साथियों ने जोंक से सफ़ेद दाग का इलाज़ करने में सफ़लता प्राप्त की। दाग के स्थान पर जोंक या लीच से कुछ रक्त चुसवाया गया। 30-40% मरीजों में इससे रोग का आगे प्रसार रुक गया, वहीं 60% से अधिक मरीजों में दाग में पुन: रंग आना शुरू हो गया। जोंक की लार में पाये जाने वाले एंज़ाइम जहां रंग बनाने वाली कोशिकाओं को सक्रिय करते हैं, वहीं इससे दाग के स्थान पर रक्त का संचार भी बढता है, जो कि शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को रोग से लड़ने के लिये यहां तक पहुंचाता है।
तो स्पष्ट है कि आयुर्वेदिक दवाओं और शोधों से विकसित हो रही नयी आयुर्वेदिक तकनीकों से इस रोग का इलाज़ संभव है, परंतु इलाज़ के दौरान निम्न बातों का ख्याल रखें:
– सही आयुर्वेदिक दवाओं का चयन करें।
– इलाज़ के दौरान कुछ खाने पीने की चीज़ों की मनाही होती है, उसका कड़ाई से पालन करें।
– इलाज़ में विश्वास और धैर्य रखें। हो सकता है कि 3-4 महीनो तक आपको कुछ भी सुधार ना दिखायी दे। सफ़ेद दाग का उपचार कई बार सालों तक चलता है
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