आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है। ऐसा माना जाता है कि बाद में विकसित हुई अन्य चकित्सा पद्धतियों में इसी से प्रेरणा ली गयी है। किसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने की ख़ासियत होने के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद की ओर रुख कर रहे हैं। इस लेख में हम आपको आयुर्वेदिक चिकित्सा की अलग अलग शाखाओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा को भी उसके विषय के हिसाब से आठ अलग अलग भागों में बांटा गया है। इन आठ भागों के सम्मिलित रुप को ही ‘अष्टांग आयुर्वेद’ का नाम दिया गया है। आइये प्रत्येक शाखाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
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काय चिकित्सा (Internal Medicine)
यहां काय शब्द का अर्थ अग्नि है। काय चिकित्सा का यहां मतलब है अग्नि से जुड़ी चिकित्सा। आयुर्वेद में अग्नि को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। शरीर की प्रत्येक कोशिका से लेकर पूरा तंत्र हर समय एक प्रक्रिया से गुज़र रहा होता है। आयुर्वेद में इसे त्रिदोष और आधुनिक आयुर्विज्ञान में इसे एनाबोलिज्म, कैटाबोलिज्म व मेटाबोलिज्म का नाम दिया गया है।
जब आपके शरीर की अग्नि ठीक ढंग से कार्य कर रही होती है तो तीनों दोष और सातों धातुएं सभी संतुलित अवस्था में रहती हैं। अग्नि के ठीक रहने से मलत्याग और शरीर के अंदर चलने वाली अन्य क्रियाएं सब कुछ ठीक तरह से होता है। यही अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है।
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आयुर्वेद में बताई गई काय चिकित्सा मुख्य रूप से इसी पाचक अग्नि पर ही केंद्रित है। अग्नि को ही शरीर की मुख्य उर्जा माना गया है। अग्नि शरीर के सभी केमिकल, साल्ट और हार्मोन को संतुलित रखती है। आपके शरीर का मेटाबोलिज्म भी इसी अग्नि पर ही निर्भर करता है।
आयुर्वेद में अग्नि के 13 प्रकार बताएं गए हैं जिनमें जठराग्नि या पाचक अग्नि को ही मुख्य अग्नि माना गया है। पाचन अग्नि के कमजोर होने या अधिक तीव्र होने से शरीर में कई तरह के रोग उत्पन्न होते हैं। कायचिकित्सा के अंतर्गत इन्हीं रोगों का इलाज किया जाता है। बुखार, डायबिटीज, गठिया, कुष्ठ रोग, दस्त, एनीमिया, बवासीर, पेट संबंधी और गुप्त रोगों का इलाज कायचिकित्सा के अंतर्गत किया जाता है।
बालरोग चिकित्सा (Pediatrics)
गर्भावस्था के समय महिलाओं के रोगों का इलाज और डिलीवरी के बाद शिशु की देखरेख और उसका इलाज, बालरोग चिकित्सा के अंतर्गत आता है। यह आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का दूसरा मुख्य अंग है।
प्रसव के लिए दाई के चुनाव से लेकर स्तनपान और प्रसव के बाद होने वाली हर छोटी बड़ी समस्या का निदान किया जाता है।
भूतविद्या (Psychiatry and Exorcism)
इसके अंतर्गत मुख्य रुप से मानसिक रोगों का इलाज किया जाता है। भूतविद्या के अंतर्गत रस्सी से बांधना, मारना और नाक में दवाइयां डालने जैसी विधियों का प्रयोग किया जाता है। इस विधियों की मदद से मानसिक रोगों का इलाज किया जाता है।
इसके अलावा आयुर्वेद में बैक्टीरिया और जीवाणुओं को राक्षस, पिशाच,असुर आदि नामों से पुकारा जाता है। हमारे शरीर में होने वाली कई बीमारियां इन्हीं बैक्टीरिया और जीवाणुओं के कारण ही होती हैं। शरीर में बैक्टीरिया से होने वाले रोगों का इलाज भी भूतविद्या के अंतर्गत ही आता है।
शल्य चिकित्सा (Surgery)
सर्जरी की मदद से किसी रोग का इलाज करने की पद्धति ही आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा के नाम से जानी जाती है। किसी चीज से चोट लगने या गंभीर घाव होने पर जो इलाज अपनाया जाता है, वह शल्य चिकित्सा के अंतर्गत आता है। सुश्रुत के अनुसार किसी चीज से चोट लगने या घावों के अलावा शरीर में अतिरिक्त मल बनने से जो बीमारियाँ होती हैं वो भी शल्य चिकित्सा की मदद से ठीक की जाती हैं।
शालाक्य तंत्र (ENT and Ophthalmology)
गले और गले के ऊपर मौजूद सभी अंगों जैसे कि मुंह, नाक, कान, आंख आदि से जुड़ी समस्याओं का इलाज शालाक्य तंत्र के अंतर्गत किया जाता है। इसमें शलाका (Probes) की मदद से इलाज किया जाता है इसलिए इसका नाम शालाक्य पड़ा। एलोपैथी में इस शाखा को ईएनटी और ऑपथैल्मोलॉजी कहा जाता है।
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अगद तंत्र (Toxicology)
अलग अलग तरह के विषों की पहचान और उनसे होने वाली समस्या का इलाज, अगद तंत्र के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद के अनुसार विष कई तरह के होते हैं जैसे कि पेड़ पौधों और खनिजों से निकलने वाला विष। दूसरा जीव जंतुओं जिसकी सांप-बिच्छू आदि का विष। इसी तरह अलग अलग तरह की दवाइयों और पदार्थों से मिलकर बनने वाला विष। इन सबके कारण जो समस्याएं होती हैं उनका इलाज इस पद्धति में किया जाता है।
रसायन तंत्र (Treatment for Rejuvenation)
आयुर्वेद में रस और धातुओं का विशेष महत्व बताया गया है। इन रसों और धातुओं की कमी-अधिकता या असंतुलन से शरीर में जो रोग उत्पन्न होते हैं उनका इलाज रसायन तंत्र के अंतर्गत किया जाता है। आमतौर पर आयुर्वेद की इस शाखा में चेहरे पर झुर्रियां आना, बाल सफ़ेद होना, गंजापन आदि रोगों का इलाज किया जाता है।
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वाजीकरण तंत्र (Treatment for Infertility and Virility)
सेक्स संबंधी समस्याओं और उनका इलाज वाजीकरण तंत्र के अंतर्गत की जाती है। आयुर्वेद के अनुसार जो चिकित्सा आपकी प्रजजन क्षमता को बढ़ाने में सहायक है वही वाजीकरण कहलाती है। इसके अंतर्गत नपुंसकता, शुक्राणुओं की कमी, शारीरिक कमजोरी आदि रोगों का इलाज किया जाता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा की इन आठों शाखाओं पर ऋषि मुनियों ने कई ग्रन्थ लिखें हैं और प्राचीन काल में इन सभी का बहुत इस्तेमाल होता था। लेकिन बाद में अनेक ग्रन्थ नष्ट हो गये जिस वजह से अब ये सभी शाखाएं उतनी प्रचलन में नहीं हैं। हालांकि सुश्रुत संहिता आज भी उपलब्ध है जिससे पता चलता है कि उस जमाने में भी सर्जरी की मदद से रोगों का इलाज करना प्रचलन में था।
आधुनिक युग में “प्लास्टिक सर्जरी’ काफी प्रचलन में है लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ‘प्लास्टिक सर्जरी’ का जनक भी सुश्रुत को ही माना जाता है। आज के समय में आयुर्वेद के इन आठ अंगों से जुड़े कई शोध चल रहे हैं जिससे इसे आजकल के रोगों के लिए प्रासंगिक बनाया जा सके।
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