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Ginger: सेहत के लिए कमाल का है अदरक – Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Zingiber officinale Rosc. (जिंजिबर ऑफिसिनेल) Syn-Amomum zingiber Linn.

कुल : Zingiberaceae (जिन्जिबेरेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Wet ginger root (वैट जिंजर रूट)

संस्कृत-नागर, आर्द्रक, शृङ्गवेर, कटुभद्रा, आर्दिका, विश्वा; हिन्दी-अदरक, आदि, सोंठ; उर्दू-अद्रक (Adrak), अदरखा (Adraka); उड़िया-ओडा (Oda); असमिया-अदा (Ada); कोंकणी-अलेम (Alem); कन्नड़-अल्ल,(Alla)  हसीसुण्ठी (Hasisunthi), इन्ची (Inchi); गुजराती-आदु (Adu), शुंठ (Sunth); तेलुगु-अल्ल (Alla), अल्लमू (Allamu); तमिल-अलाम (Allam), इंजी (Inji); बंगाली-आदा (Ada), शुण्ठी (Shunthi); नेपाली-अदुवा (Aduva); पंजाबी-अदरक (Adrak), आदा (Ada); मराठी-आले (Ale); मलयालम-इंची (Inchi), चुक्कु (Chukku)।

अंग्रेजी-जिंजर (Ginger), जिंजीबिल (Zingibil), कॉमन जिंजर (Common ginger); अरबी-जिंजीबिल रतब (Zinjibil ratab); फारसी-जंजबीले तर (Janjbeele tar), जंजबिल (Zanjabil)।

परिचय

सम्पूर्ण भारतवर्ष में अदरक की खेती की जाती है। भूमि के अन्दर उगने वाला प्रकन्द आर्द्र अवस्था में अदरक व सूखी अवस्था में सोंठ कहलाता है। प्राचीन आर्ष ग्रन्थों में इसका उल्लेख कई स्थानों पर पाया जाता है। इतना ही नहीं प्राय प्रत्येक औषधि चूर्ण, क्वाथ, गुटिका तथा अवलेह आदि में भी इसका प्रयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है। भावप्रकाश निघण्टु में वर्णन है कि भोजन के पूर्व अदरक के टुकड़ों पर सेंधा नमक डालकर खाने से सदैव पथ्यकर होता है, इससे अरुचि मिटती है। जिह्वा तथा कण्ठ का शोधन होता है एवं क्षुधा की वृद्धि होती है। कहा जाता है कि भोजनाग्रे सदा पथ्यं लवणार्द्रक भक्षणम्। यह लगभग 90-120 सेमी ऊँचा, कोमल, बहुवर्षायु, प्रकन्दयुक्त शाक होता है। प्रतिवर्ष प्रकन्द से नवीन शाखाओं का उद्गम होता है। इसका प्रकन्द श्वेताभ या पीताभ वर्ण का, बाह्य आवरण भूरे वर्ण का, अनुप्रस्थ धारियों से युक्त, अनेक  शृंगाकार या गोलाकार रचनाओं से युक्त, एक या अनेक भागों में विभाजित तथा सुगन्धित होता है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

सोंठ उष्ण होने से कफ-वात शामक, शोथहर, उत्तेजक, वेदनास्थापक, नाड़ियों को उत्तेजना देने वाली, तृप्तिघ्न, रुचिकारक, दीपन, पाचन, वातानुलोमन, शूल-प्रशमन तथा अर्शोघ्न है। उष्ण होने के कारण हृदय एवं रक्तवह-संस्थान को उत्तेजित करती है। अदरक कटु और स्निग्ध होने के कारण कफघ्न और श्वासहर है। यह मधुर विपाक होने से वृष्य है। तीक्ष्णता के कारण यह स्रोतोवरोध का भी निवारण करती है।

अदरक में लवण मिलाकर सेवन करने से विशेष रूप से वात तथा आमदोष का शमन होता है।

अदरक में नींबू का स्वरस मिलाकर सेवन करने से मुख का शोधन होता है तथा मूत्रकृच्छ्र, पाण्डु, रक्तपित्त, व्रण, अश्मरी, ज्वर, दाह तथा पित्त-विकारों का शमन होता है।

अदरक को कांजी तथा बनाएं के साथ सेवन करने से यह पाचक, अग्नि दीपक, विबन्ध, आमवात तथा कफवातशामक होता है।

भोजन के पूर्व में खाया हुआ अदरक कण्ठ तथा जिह्वा शोधक होता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. शिरोवेदना-50 मिली दूध में 5 ग्राम सोंठ का कल्क मिलाकर, छानकर नस्य लेने से तीव्र शिरोवेदना का शमन होता है।
  2. कर्णशूल-सोंठ के रस को गुनगुना कर 2-5 बूंद कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।
  3. दंतशूल-सोंठ के टुकडे को दांतों के बीच दबाने से दंतशूल का शमन होता है।
  4. 5 मिली आर्द्रक स्वरस में शहद मिलाकर सेवन करने से श्वास कास का शमन होता है।
  5. अजीर्ण-भोजन के पूर्व गुड़ में समभाग शुण्ठी चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अर्श और विबन्ध में लाभ होता है।
  6. क्षुधावर्धनार्थ-1 ग्राम यवक्षार में समभाग सोंठ चूर्ण मिलाकर उसमें दोगुना घी मिलाकर अथवा 2 ग्राम सोंठ चूर्ण को गुनगुने जल के साथ प्रतिदिन प्रात काल सेवन करने से क्षुधा की वृद्धि होती है।
  7. स्निग्ध एवं बलवान् शरीर वाले व्यक्ति को यदि अजीर्ण होने की शंका हो तो भोजन के पूर्व हरीतकी और सोंठ के समभाग चूर्ण को 2-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए।
  8. आमाजीर्ण-प्रतिदिन 2-3 ग्राम हरीतकी तथा सोंठ के समभाग चूर्ण में गुड़ अथवा बनाएं मिलाकर खाने से अथवा सोंठ चूर्ण में गुड़ मिलाकर नित्य सेवन करने से अग्नि प्रदीप्त होकर आमाजीर्ण, अर्श तथा मलबद्धता का शमन होता  है।
  9. अग्निप्रदीपनार्थ-सोंठ का क्वाथ बनाकर 10-30 मिली क्वाथ में शहद मिलाकर पीने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है।
  10. आमाजीर्ण-धनिया तथा सोंठ को समान मात्रा में लेकर क्वाथ बनाकर 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा आमाजीर्ण में लाभ होता है।
  11. 1-2 ग्राम सोंठ के चूर्ण में 5 मिली नींबू रस डालकर उसे चार गुना शक्कर की चाशनी में मिलाकर, 1 ग्राम त्रिकटु चूर्ण का प्रक्षेप डालकर सेवन करने से जठराग्नि प्रवृद्ध होती है तथा आहार में रुचि की वृद्धि होती है।
  12. अम्लपित्त-सोंठ तथा परवल का क्वाथ बनाकर 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से अम्लपित्त, वमन, कण्डू, ज्वर, विस्फोट तथा दाह का शमन होता है।
  13. अतिसार-पिप्पल्यादि प्रमथ्या (पिप्पली, सोंठ, धनिया, भूतिक, हरीतकी, वचा) तथा ह्रीबेरादि प्रमथ्या (ह्रीबेर, नागरमोथा, बेल, सोंठ, धनिया) का सेवन करने से दीपन-पाचन होकर अतिसार का शमन हो जाता है।
  14. आमातिसार-3-6 ग्राम सोंठ चूर्ण में समभाग घृत डालकर, उसे एक एरण्डपत्र से लपेटकर पुटपाक-विधि से पकाकर, पक्व चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर प्रात काल सेवन करने से आमातिसारजन्य वेदना का शमन होता है।
  15. अतिसार में सुंधबाला तथा सोंठ से पकाया हुआ जल पीने से आम का पाचन होता है तथा अतिसार में लाभ होता है।
  16. कफ एवं आम-जनित अतिसार में 1-2 ग्राम सोंठ कल्क को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से आमातिसार में लाभ होता है।
  17. शुण्ठी, घृत (सोंठ एवं दशमूल क्वाथ अथवा सोंठ कल्क से सिद्ध घृत) का सेवन करने से शोथ, ग्रहणी, आमरोग, पाण्डुरोग, प्लीहारोग, कास, ज्वर आदि में लाभ होता है।
  18. गुल्म-नागरादि यमक (150 ग्राम सोंठ तथा 3 किलो दही के पानी से सिद्ध 250 ग्राम घृत एवं तैल) का मात्रानुसार सेवन करने से सभी उदर रोगों में तथा गुल्म (कफज एवं वातज) में लाभ होता है।
  19. निशोथ और सोंठ चूर्ण (2-4 ग्राम) का सेवन गोमूत्र या दूध अथवा द्राक्षारस के साथ करने से गुल्म में लाभ होता है।
  20. 25 ग्राम काला तिल (छिलका रहित) 100 ग्राम गुड़ और 50 ग्राम शुण्ठी के चूर्ण को मिलाकर 2-5 ग्राम की मात्रा में सुखोष्ण दूध के साथ सेवन करने से वातजगुल्म, उदावर्त तथा योनिशूल का शमन होता है।
  21. सोंठ, तिल और गुड़ को समान मात्रा में पीसकर 2-4 ग्राम मात्रा में 50-100 मिली दूध के साथ पीने से 3-7 दिनों में परिणामशूल तथा आमवात में वेदना का शमन होकर रोग का शमन होने लगता है।
  22. सोंठ एवं एरण्ड मूल के 25-50 मिली क्वाथ में 25 मिग्रा हींग एवं सौवर्चल नमक (1-1 ग्राम) नमक मिलाकर पीने से वातजन्य शूल का शमन होता है।
  23. शूल-समभाग सोंठ, एरण्ड की जड़ और जौ का क्वाथ बनाकर 25-50 मिली की मात्रा में पीने से शूल शीघ्र नष्ट होता है।
  24. सोंठ तथा सहिजन का क्वाथ बनाकर 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से शूल का शमन होता है।
  25. कुक्षिगत वात-प्रतिदिन प्रात सायं सोंठ, इन्द्रयव तथा चित्रक के समभाग चूर्ण (2-4 ग्राम) को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से कुक्षिगत वात में अतीव लाभ होता है।
  26. विसूचिका-सोंठ तथा बेल का क्वाथ (10-30 मिली) या कट्फल, सोंठ तथा बेल का क्वाथ (10-30 मिली) पीने से वमन तथा विसूचिका रोग में लाभ होता है।
  27. 2-5 ग्राम बेल कल्क में 1 ग्राम सोंठ चूर्ण मिश्रित कर गुड़ के साथ सेवन करने से तथा तक्र का पथ्य के रूप में प्रयोग करने से

ग्रहणी रोग में लाभ होता है।

  1. आम पाचनार्थ-सोंठ, अतीस तथा नागरमोथा का क्वाथ आम का पाचन करता है अथवा सोंठ, अतीस, नागरमोथा का कल्क, केवल हरीतकी का चूर्ण अथवा सोंठ का चूर्ण मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से भी आम का पाचन होता है। (मात्रा-500 मिग्रा से 2 ग्राम तक)।
  2. संग्रहणी-सोंठ, नागरमोथा, अतीस तथा गिलोय को समभाग लेकर जल से क्वाथ करें। इस क्वाथ को प्रात सायं पीने से मंदाग्नि, निरन्तर कोष्ठ का आमदोषयुक्त रहना एवं आम संयुक्त ग्रहणी रोग में लाभ होता है। (मात्रा 20 से 25 मिली)
  3. ग्रहणी-गिलोय, अतीस, सोंठ, नागरमोथा, इन चारों का क्वाथ बनाकर पीने से आमयुक्त ग्रहणी रोग का शमन होता है। यह ग्राही, दीपन तथा पाचन है। (मात्रा 20 से 25 मिली दिन में दो बार)
  4. दीपन-2 ग्राम सोंठ चूर्ण को घृत के साथ अथवा केवल सोंठ चूर्ण को उष्ण जल के साथ प्रतिदिन प्रात काल खाने से भूख बढ़ती है।
  5. प्रतिदिन भोजन के प्रारम्भ में लवण एवं अदरक की चटनी खाने से जीभ एवं कंठ की शुद्धि होती है। अग्नि प्रदीप्त तथा हृदय बलवान् होता है।
  6. आर्द्रक का अचार खाने से भूख बढ़ती है।
  7. अजीर्ण-यदि प्रात काल अजीर्ण (रात्रि का भोजन न पचने) की शंका हो तो हरड़, सोंठ तथा बनाएं के चूर्ण को जल से सेवन करें। दोपहर अथवा सांयकाल थोड़ा भोजन कर लें।
  8. अरुचि-सोंठ और पित्तपापड़ा का पाक ज्वरनाशक, अग्निप्रदीप्त करने वाला तृष्णा तथा भोजन की अरुचि का शमन करने वाला है। इसे 5-10 ग्राम की मात्रा में नित्य सेवन करें।
  9. सोंठ, चिरायता, नागरमोथा तथा गुडूची पाक को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से ज्वर, तृष्णा तथा अरुचि का शमन होता है।
  10. उदर रोग-सोंठ, हरीतकी, बहेड़ा तथा आँवला को समभाग लेकर कल्क बना लें। गाय का घी 2½ ली तथा तिल का तेल, 2½ ली दही का पानी, इन सबको मिलाकर विधिपूर्वक घी का पाक करें, तैयार हो जाने पर छानकर रख लें। इस घृत को 10-20 ग्राम की मात्रा में प्रात सायं सेवन करने से सभी प्रकार के उदररोगों का शमन होता है तथा कफज, वातज एवं गुल्मरोग में भी इसका प्रयोग होता है।
  11. मंदाग्नि-अजवायन, बनाएं, हरड़ तथा सोंठ के चूर्णों को समान मात्रा में मिलाकर रखें। 2-4 ग्राम मात्रा में सेवन करने से यह शूल को नष्ट करता है तथा मन्द अग्नि को प्रदीप्त करता है।
  12. अतिसार-सोंठ, खस, विल्व गिरी, मोथा, धनिया, मोचरस तथा नेत्रबाला का क्वाथ बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पीने से अतिसार  तथा पित्त-कफज ज्वर का शमन होता है।
  13. धनिया (10 ग्राम) तथा सोंठ (10 ग्राम) को मिलाकर विधिवत् क्वाथ करके रोगी को प्रात सायं 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से वातश्लेष्मज्वर, शूल और अतिसार का शमन होता है।
  14. सोंठ और इद्र जौ के समभाग चूर्ण को चावल के पानी के साथ पेने को दें, जब चूर्ण पच जाए, उसके बाद चांगेरी, तक्र, और दाड़िम का रस डालकर पकाई गई यवागू का सेवन करें।
  15. अर्श-समभाग चित्रक मूल और सोंठ चूर्ण (1-4 ग्राम) को सीधु के साथ सेवन करने से अर्श में लाभ होता है।
  16. शुष्क अर्श में वात तथा मल का अनुलोमन करने के लिए अनुपान रूप में सोंठ एवं धनिया के क्वाथ (10-30 मिली) का सेवन करना चाहिए।
  17. चतु सम मोदक का सेवन करने से (सोंठ, भिलावा, विधारा तथा गुड़ से निर्मित मोदक )अर्श का शमन होता है
  18. 2-4 ग्राम सोंठ के चूर्ण में दोगुना गुड़ मिलाकर, गोली बनाकर सेवन करने से आमदोष प्रधान-विकारों का शमन होता है।
  19. मिश्री, पिप्पली, सोंठ तथा हरीतकी के समभाग चूर्ण (2-4 ग्राम) को गुड़ के साथ सेवन करने से वात एवं श्लेष्म जन्य अर्श का शमन होता है।
  20. अर्शजनित वेदना-दुरालभा, पाठा और बेल का गूदा या अजवाइन व पाठा अथवा सोंठ और पाठा इनमें से किसी एक योग के चूर्ण को 2-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से अर्शजनित वेदना का शमन हो जाता है।
  21. कामला-3-5 ग्राम इन्द्रायण तथा सोंठ चूर्ण में समभाग गुड़ मिलाकर सेवन करने से कामला में लाभ होता है।
  22. बहुमूत्र-सोंठ के 2 चम्मच रस में मिश्री मिलाकर प्रात-सायं सेवन करने से लाभ होता है।
  23. मूत्रकृच्छ्र-1 ग्राम सोंठ, 1 ग्राम कटेली की जड़, 1 ग्राम बला मूल 1 ग्राम गोखरू तथा 10 ग्राम गुड़ को 250 मिली दूध में उबालकर प्रात सायं पीने से मूत्रकृच्छ्र, ज्वर तथा शोथ का शमन होता है।
  24. अण्डकोषवृद्धि-10-20 मिली स्वरस में 2 चम्मच मधु मिलाकर पीने से वातज अंडकोषवृद्धि का शमन होता है।
  25. वातरक्त-पिप्पली और सोंठ का क्वाथ बनाकर 20 मिली मात्रा में प्रात सायं पीने से वातरक्त का शमन होता है।
  26. वातशूल-सोंठ तथा एरण्डमूल का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली क्वाथ में 125 मिग्रा हींग और 1 ग्राम सौवर्चल नमक मिलाकर पीने से वातज शूल का शमन होता है।
  27. कुष्ठ-सोंठ, मदार की पत्ती, अडूसा की पत्ती, निशोथ, बड़ी इलायची, कुंदरू इन सबको समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर इसे  पलाश के क्षार और गोमूत्र में घोलकर लेप बना लें, लेप को लगाकर धूप में तब तक बैठें जब तक वह सूख न जाए, इससे मण्डल कुष्ठ फूट जाता है और उसके घाव शीघ्र ही भर जाते हैं।
  28. 5 मिली अदरख रस में गुड़ मिलाकर पीने से शीतपित्त तथा रक्तपित्त में लाभ होता है।
  29. शोथ-सोंठ, पिप्पली, जमालगोटा की जड़, चित्रक मूल तथा वाय विडंग इन सभी द्रव्यों को समान भाग लें और दोगुनी मात्रा में हरीतकी चूर्ण मिलाकर इस चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में गर्म जल के साथ प्रात सायं सेवन करने से शोथ का शमन होता है।
  30. सोंठ, पिप्पली, गजपिप्पली, छोटी कटेरी, चित्रक मूल, पिप्पला मूल, हल्दी, जीरा तथा मोथा इन सभी द्रव्यों को समभाग लेकर इनके कपड़छान चूर्ण को मिलाकर रख लें, इस चूर्ण को 2 ग्राम की मात्रा में गुनगुने जल के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से त्रिदोषजनित शोथ तथा चिरकालजनित-शोथ का शमन होता है।
  31. शूल-10-30 मिली सोंठ क्वाथ में 1 ग्राम कालानमक, 125 मिग्रा हींग तथा 2 ग्राम सोंठ चूर्ण मिलाकर सेवन करने से कफवातज हृच्छूल, पसलियों का दर्द, पीठ का दर्द, जलोदर तथा विसूचिका आदि रोग नष्ट होते हैं। यदि मलबन्ध होता है तो इसके चूर्ण को यव के क्वाथ के साथ पीना चाहिए।(पीठ के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा पाने के घरेलू उपाय)
  32. ज्वर-तृषा-सोंठ, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, खस, लाल चन्दन, सुगन्धबाला इन सबको समभाग मिलाकर क्वाथ बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पीने से ज्वर तथा तृष्णा का शमन होता है।
  33. ज्वर-सोंठ एवं धमासा का क्वाथ बनाकर पीने से ज्वर में लाभ होता है।
  34. दाह-ज्वर-सोंठ, गन्धबाला (सुगन्धबाला), पित्तपापड़ा, खस, मोथा तथा लाल चन्दन का क्वाथ बनाकर इस क्वाथ को ठंडा करके सेवन करने से तृष्णा, वमन, पित्तज्वर तथा दाह का शमन होता है।
  35. शरीर शैत्यता-सन्निपात की दशा में जब शरीर ठंडा पड़ जाय तो सोंठ के रस में थोड़ा लहसुन का रस मिलाकर मालिश करने से गर्माहट आ जाती है।

आर्द्रक के औषधीय प्रयोग

  1. कर्णशूल-आर्द्रक स्वरस को हलका उष्ण कर अथवा अदरख, मधु एवं बनाएं को मिलाकर तैलपाक कर अथवा चारों को मिलाकर गुनगुना कर 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णश्ला का शमन होता है।
  2. समभाग कैथ फल रस, बिजौरा नींबू स्वरस तथा आर्द्रकस्वरस को मिलाकर किञ्चित् उष्णकर, छानकर 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।
  3. सरसों के तैल में आर्द्रक, मुलेठी मिलाकर बनाएं तथा किञ्चित् उष्णकर, छानकर 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णशूल में अतिशय लाभ प्राप्त होता है।
  4. प्रतिश्याय-100 मिली दूध में 2 ग्राम अदरख चूर्ण मिलाकर पीने से प्रतिश्याय में दोषों का पाचन होकर प्रतिश्याय में लाभ होता है।
  5. 2 चम्मच अदरक के रस में मधु मिलाकर प्रात सायं सेवन करने से श्वास, खांसी तथा जुकाम आदि रोगों का शमन होता है।
  6. दमा-1 ग्राम पिप्पली तथा 1 ग्राम बनाएं चूर्ण को मिलाकर 5 मिमी अदरक के रस के साथ सोने के समय सेवन करने से रोग में अत्यन्त लाभ होता है।
  7. कास, श्वास, प्रतिश्याय, ज्वर- 5 मिली आर्द्रक स्वरस में चौथाई भाग मधु मिलाकर प्रातसायं सेवन करने से श्वास, कास, प्रतिश्याय और ज्वर का शमन होता है।
  8. निमोनिया-5 मिली अदरक रस में 1 या दो वर्ष पुराना घी व कपूर मिलाकर गर्म कर छाती पर मालिश करें।
  9. अग्निमांद्य-सिरका एवं अदरख को समान मात्रा में मिलाकर सेवन करने से जठराग्नि दीप्त होती है तथा अग्निमांद्य का शमन होता है।
  10. नींबू, पुदीना तथा अदरख के 100-100 मिली स्वरस को दोगुने खाँड के साथ चाँदी के पात्र में पकाकर गाढ़ा करके, सेवन करने से जठराग्नि दीप्त होती है।
  11. प्रतिदिन भोजन करने से पूर्व अदरख का सेवन करने से जिह्वा तथा कण्ठ शुद्ध होते हैं और शोथ, हृदयरोग, गुल्म, अर्श, विबन्ध तथा आनाह का शमन होता है।
  12. अदरख को मधु के साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से शोथ, अरुचि, हृदयरोग, गुल्म, उदररोग, कास, श्वास, ज्वर आदि में लाभ होता है तथा गुड़ के साथ प्रयोग करने से नेत्रों को बल मिलता है, जठराग्नि तीव्र होती है तथा मल एवं वायु का अनुलोमन होता है।
  13. अतिसार-सुंधबाला और अदरख से सिद्ध जल को पीने से अतिसार में लाभ होता है।
  14. आँवले के कल्क या दाल की पीठी से नाभि के चारों तरफ आलबाल बनाकर, उसमें आर्दक स्वरस भर कर रोगी को बिना हिलाए, रोगी के सामर्थ्यानुसार लिटाए रखने से अतिसार का वेग शान्त होने लगता है।
  15. उदरविकार-आर्दक स्वरस और गोदुग्ध को समान भाग में मिलाकर पीने से अथवा दस गुने आर्दक स्वरस से सिद्ध तिल तैल को अन्न का सर्वथा त्याग करते हुए पीने से उदर रोग में अतिशीघ्र लाभ होता है।
  16. गुल्म-नमक, आर्द्रक, सरसों तथा मरिच की वर्ती बना कर गुदा में प्रविष्ट कराने से वायु एवं मल का अवरोध समाप्त  होकर गुल्म का शमन होता है।
  17. अदरख स्वरस से सिद्ध दुग्ध का सेवन करने से या चव्य और अदरख कल्क का दूध के साथ सेवन करने से गुल्म आदि उदररोगों में शीघ्र लाभ होता है।
  18. विसूचिका-10 ग्राम अदरक में 5 ग्राम पिप्पली को मिलाकर इन दोनों को खरल कर इसकी काली मिर्च के बराबर (65 मिग्रा) गोली बना लें। इन गोलियों को गुनगुने पानी के साथ देने से हैजे में लाभ पहुँचता है।
  19. अग्निदीपनार्थ-10-20 मिली अदरक रस में समभाग नींबू का रस मिलाकर पिलाने से अग्नि का दीपन होता है।
  20. छर्दि-10 मिली अदरक स्वरस में, 10 मिली प्याज का रस मिलाकर पिलाने से जठराग्नि का दीपन होता है।
  21. अर्श-सत्त्w में समभाग गुड़, घृत तथा आर्दक मिलाकर कांजी के साथ सेवन करने पर विबन्ध नष्ट होकर गुदज व्याधि (अर्श आदि) का शमन होता है।
  22. आर्द्रक का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से शोथ एवं शूलयुक्त अर्श तथा मलबद्धता में लाभ प्राप्त होता है।
  23. कामला-अदरक, त्रिफला और गुड़ को समान मात्रा में मिलाकर सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  24. वृषणवात-5-10 मिली आर्दक स्वरस में 5-6 ग्राम मधु मिलाकर प्रात सायं पीने से वृषण वात, प्रतिश्याय आदि में लाभ होता है।
  25. प्रतिदिन प्रात काल 5 मिली अदरख स्वरस में समभाग तैल मिलाकर पीने से वृषणवात में लाभ होता है।
  26. वातविकार-समभाग अदरख स्वरस, मातुलुङ्ग स्वरस, चुक्र तथा गुड़ को घृत या तैल के साथ मिलाकर पीने से अथवा तैल तथा घृत में अदरख स्वरस या मातुंग स्वरस मिलाकर चुक्र एवं गुड़ का प्रक्षेप देकर पीने से कटि, उरु, पृष्ठ एवं त्रिक्प्रदेश की वेदना, गुल्म, गृध्रसी तथा उदावर्त का शमन होता है।
  27. शृंगवेराद्य घृत- शृंगवेराद्य घृत को 10-20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से मंदाग्नि, शूल, विबन्ध, आनाह, आमवात, कटिग्रह, ग्रहणीदोष आदि का शमन होता है।
  28. संधिपीड़ा-अदरक के एक ली रस में 500 मिली तिल का तेल डालकर आग पर पकाना चाहिए, जब रस जलकर तेल मात्र रह जाय, तब उतारकर छान लेना चाहिए। इस तेल की शरीर पर मालिश करने से जोड़ों की पीड़ा का शमन होता है।
  29. शीतपित्त-प्रतिदिन 25 मिली आर्दक स्वरस में 10-12 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर पीने से शीतपित्त तथा अग्निमाद्य में लाभ होता है।
  30. त्वग्रोग-750 ग्राम अदरख, 200 ग्राम गोघृत, 1.5 ली गोदुग्ध, 750 ग्राम शर्करा तथा 50-50 ग्राम पिप्पली, पिप्पलीमूल, मिर्च, सोंठ, चित्रकमूल, वायविडङ्ग, नागरमोथा, नागकेशर, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपत्ता तथा कर्चूर, इन सब का विधिवत् पाक बनाकर प्रतिदिन प्रात काल 5-10 ग्राम की मात्रा में खाने से, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, बल, वीर्य की वृद्धि तथा शरीर की पुष्टि होती है तथा शीतपित्तादि त्वग्रोग, राजयक्ष्मा, रक्तपित्त आदि रोगों का शमन होता है।
  31. मूर्च्छा-7 दिनों तक अदरख और गुड़ को समान मात्रा में मिलाकर प्रतिदिन प्रात काल त्रिफला चूर्ण के साथ खाने से तथा रात्रि में मधु युक्त त्रिफला का सेवन करके पथ्य आहार विहार का पालन करने से मद, मूर्च्छा, कामला और उन्माद रोग में लाभ होता है।
  32. मूर्च्छा-अदरक स्वरस (1-2 बूंद) का नस्य देने से ज्वर में होने वाली मूर्च्छा का शमन होता है।
  33. शोथ-अदरक के 10 से 20 मिली स्वरस में गुड़ मिलाकर प्रात काल सेवन करने से शोथ का शमन होता है। (पथ्य केवल बकरी का दूध)
  34. सन्निपात ज्वर-त्रिकटु, बनाएं और अदरक स्वरस को समान मात्रा में मिलाकर कुछ दिनों तक सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है
  35. सन्निपात ज्वर-आर्दक स्वरस में बनाएं और त्रिकटु (सोंठ, मरिच और पिप्पली) का चूर्ण मिलाकर, 3-4 बार गण्डूष धारण करने से कण्ठ, हृदय प्रदेश, मन्या तथा सिर में जमा हुआ शुष्क कफ बाहर निकलने लगता है। सन्निपातज्वर, पर्वभेद, मूर्च्छा,  कास, कण्ठ एवं मुख के रोग, नेत्र गौरव, शरीर की जड़ता, वमनेच्छा आदि का शमन होता है।
  36. ज्वरजन्य अरुचि-ज्वर के कारण भोजन में अरुचि उत्पन्न होने पर 5 मिली अदरख के रस में 1 ग्राम बनाएं डालकर गर्म करके  कवल धारण करना चाहिए।
  37. ताजे अदरख स्वरस को 2 मिली मात्रा में पहले दिन दें, इसके बाद प्रतिदिन 2-2 मिली की मात्रा में बढ़ाते जाएं इस प्रकार जब 20 मिली की मात्रा हो जाय तो एक माह तक ऐसे ही देते जाएं। फिर 2-2 मिली करके घटाते हुए बंद कर दें। प्रतिदिन औषध पचने के बाद दूध या यूष के साथ अन्न का सेवन करना चाहिए। इस प्रकार आर्द्रक का सेवन करने से गुल्म, उदररोग, अर्श, शोथ, प्रमेह, श्वास, प्रतिश्याय, अलसक, अविपाक, शोष, कामला, मनोविकार, कास तथा कफवृद्धि आदि रोगों में लाभ होता है।
  38. अदरख तथा गुड़ को समान मात्रा में मिलाकर एक माह तक सेवन करने से शोथ का शमन होता है।
  39. एक चौथाई अदरख के कल्क तथा चार गुना अदरख स्वरस और गाय के दूध में 750 ग्राम घृत को मिलाकर यथाविधि पाक करके प्रतिदिन सेवन करने से शोथ, प्रतिश्याय, उदररोग तथा मन्दाग्नि में लाभ होता है।
  40. 5-10 मिली अदरख स्वरस में आधी मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर, केवल बकरी के दूध का भोजन करते हुए सेवन करने से समस्त शोथों का शीघ्र शमन हो जाता है।
  41. गुड़ के साथ समभाग सोंठ या अदरख को 1 गाम की मात्रा से प्रारम्भ कर, प्रतिदिन 1-1 ग्राम बढ़ाते हुए, 30 ग्राम होने पर 1 माह तक सेवन कर फिर उसी क्रम से कम करते हुए बंद करने से शोथ, प्रतिश्याय आदि कफ एवं वात के रोगों का निवारण

होता है।

  1. जलदोष-विभिन्न प्रदेशों के विभिन्न प्रकार के जल को पीने से यदि ज्वर आदि रोग हो जाए तो समभाग अदरख तथा यवक्षार के 1-2 ग्राम कल्क को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
  2. इन्फ्लुएञ्जा-6 मिली अदरक रस में, 6 ग्राम शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार सेवन करें।

प्रयोज्याङ्ग  : प्रकन्द।

मात्रा  : चूर्ण 1-2 ग्राम, अर्क 0.3-0.6 मिली, स्वरस 5-10 मिली।

विषाक्तता  :

अदरख का गर्भावस्था में प्रयोग निषिद्ध है।

अदरख का प्रयोग बालज्वर एवं पित्ताशयगत अश्मरी में निषिद्ध है।

अतिमात्रा में अदरख का सेवन (6 ग्राम या अधिक) करने से यह हृदय अतालता, केन्द्राrय तंत्रिका तंत्र अवसादन, आमाशय गत क्षोभ तथा उच्चरक्त चाप उत्पन्न कर सकता है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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