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सदियों से आयुर्वेद में सदाबहार वृक्ष अर्जुन को औषधि के रुप में ही इस्तेमाल किया गया है। आम तौर पर अर्जून की छाल और रस का औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। अर्जून नामक बहुगुणी सदाहरित पेड़ की छाल का प्रयोग हृदय संबंधी बीमारियों , क्षय रोग यानि टीबी जैसे बीमारी के अलावा सामान्य कान दर्द, सूजन, बुखार के उपचार के लिए किया जाता है।
अर्जुन कितना गुणकारी जड़ी बूटी ये बात तो समझ में आ ही गया है लेकिन आगे ये किन-किन बीमारियों के लिए फायदेमंद है और अर्जुन छाल का क्षीरपाक कैसे बनाया जाता है इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
अर्जुन पेड़ का अर्जुन‘ नामकरण केवल इसके स्वच्छ सफेद रंग के आधार पर किया गया है। अर्जुन‘ शब्द का संस्कृत में यौगिक अर्थ सफेद, स्वच्छ, होता है। पांडवकुमार अर्जुन से इस पेड़ का कोई खास सम्बन्ध नजर नहीं आता। इस पेड़ के संस्कृत नामों में पार्थ, धनंजय आदि जो पर्यायवाची नाम दिए गए हैं, वे केवल वैद्यक काव्य अर्जुन‘ शब्दार्थ बोधक शब्द की योजना करने के लिए ही दिए गए हैं और उनका कोई खास तात्पर्य नहीं मालूम होता है।
अर्जुन प्रकृति से शीतल, हृदय के लिए हितकारी, कसैला; छोटे-मोटे कटने-छिलने पर, विष, रक्त संबंधी रोग, मेद या मोटापा, प्रमेह या डायबिटीज, व्रण या अल्सर, कफ तथा पित्त कम होता है। अर्जुन से हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है, हृदय की पोषण-क्रिया अच्छी होती है। मांसपेशियों को बल मिलने से हृदय की धड़कन ठीक और सबल होती है। सूक्ष्म रक्तवाहिनियों (artery) का संकोच होता है, इस प्रकार इससे हृदय सशक्त और उत्तेजित होता है। इससे रक्त वाहिनियों के द्वारा होने वाले रक्त का स्राव भी कम होता है, जिससे सूजन कम होती है।
अर्जुन का वानास्पतिक नाम Terminalia arjuna (Roxb. ex DC.) W. & A. (टर्मिनेलिया अर्जुन) Syn-Pentaptera arjuna Roxb. ex. DC. होता है। अर्जुन Combretaceae (कॉम्ब्रेटेसी) कुल का है और अंग्रेजी में इसको Arjuna myrobalan (अर्जुन मायरोबलान) कहते हैं। लेकिन भारत के अन्य प्रांतों में अर्जुन अनेक नामों से जाना जाता है।
Arjun in-
Sanskrit-अर्जुन, नदीसर्ज : , वीरवृक्ष, वीर, धनंजय, कौंतेय, पार्थ : धवल;
Hindi-अर्जुन, काहू, कोह, अरजान, अंजनी, मट्टी, होलेमट्ट;
Odia-ओर्जुनो (Orjuno);
Urdu-अर्जन (Arjan);
Assamese-ओर्जुन (Orjun);
Konkani-होलेमट्टी (Holematti);
Kannada-मड्डी (Maddi), बिल्लीमड्डी (Billimaddi), निरमथी (Nirmathi) होलेमट्टी (Holematti);
Gujrati-अर्जुन (Arjun), सादादो (Sadado), अर्जुनसदारा (Arjunsadara);
Tamil-मरुदु (Marudu), अट्टूमारूतू (Attumarutu), निरमारूदु (Nirmarudu), वेल्लईमरुदु (Vellaimarudu);
Telegu-तैललामद्दि (Tellamadi), इरमअददी (Erumdadi), येरमददी (Yermaddi);
Bengali-अर्जुन गाछ (Arjun Gach), अरझान (Arjhan);
Nepali-काहू (Kaahu);
Panjabi-अरजन (Arjan);
Marathi-अंजन (Anjan), सावीमदात (Savimadat);
Malayalam-वेल्लामरुटु (Velamarutu)।
English- व्हाइट मुर्दाह (White murdah);
Arbi-अर्जुन पोस्त (Arjun post)।
आयुर्वेद में अर्जुन के पेड़ का प्रयोग औषध के रूप में फल और छाल के रूप में होता है। अर्जुन की छाल में टैनिन सबसे ज्यादा होता है, इसके साथ पोटाशियम, मैग्निशियम और कैल्शियम होता है।
3-4 बूँद अर्जुन के पत्ते का रस कान में डालने से कान का दर्द कम होता है।
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अर्जुन मूल चूर्ण में मीठा तैल (तिल तैल) मिलाकर मुँह के अंदर लेप कर लें। इसके पश्चात् गुनगुने पानी का कुल्ला करने से मुखपाक में लाभ होता है।
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10-20 मिली अर्जुन छाल के काढ़े का नियमित सेवन करने से उदावर्त्त या पेट की गैस ऊपर आती है और एसिडिटी से राहत मिलती है।
5 ग्राम अर्जुन छाल चूर्ण को 250 मिली गोदुग्ध और लगभग समभाग पानी डालकर मंद आंच पर पकाएं। जब दूध मात्र शेष रह जाए तब उतारकर सुखोष्ण करके उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर, नित्य प्रात पीने से हृदय संबंधी विकारों का शमन होता है। यह पेय जीर्ण ज्वरयुक्त रक्तज-अतिसार और रक्तपित्त में भी लाभदायक है।
अर्जुन की पत्ती, बेल की पत्ती, जामुन की पत्ती, मृणाली, कृष्णा, श्रीपर्णी की पत्ती, मेहंदी की पत्ती और धाय की पत्ती, इन सभी पत्तियों के स्वरस में घृत, लवण तथा अम्ल् मिलाकर अलग-अलग मिलाकर खडयूषो का निर्माण करें। ये सभी खडयूष परम् संग्राहिक होते हैं।
अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल के समभाग चूर्ण को पानी में पकाकर शेष काढ़ा बनायें। बचाकर, 10-20 मिली काढ़े में मधु मिलाकर रोज सुबह सेवन करने से पित्तज-प्रमेह में लाभ होता है।
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शुक्रमेह बीमारी पुरूषों को होता है। इस रोग में अत्यधिक मात्रा में सिमेन निकल जाता है। अर्जुन की छाल का इस तरह से सेवन करने पर इस बीमारी से निजात पाया जा सकता है। अर्जुन की छाल या सफेद चंदन से बने 10-20 मिली काढ़े को नियमित सुबह शाम पिलाने से शुक्रमेह में लाभ होता है।
मूत्र करते समय दर्द या जलन होना मूत्राघात के मूल लक्षण होते हैं। अर्जुन का औषधीय गुण इस बीमारी से निजात दिलाने में मदद करता है। अर्जुन छाल का काढ़ा बनाकर 20 मिली मात्रा में पिलाने से मूत्राघात में लाभ होता है।
महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान जब औसतन दिन से ज्यादा और मात्रा में ज्यादा रक्त का स्राव होता है उसको रक्तप्रद कहते हैं। 1 चम्मच अर्जुन छाल चूर्ण को 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करें। इसके सेवन से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
अगर किसी कारण हड्डी टूट गई है या हड्डियां कमजोर हो गई हैं तो अर्जुन की छाल का प्रयोग ऐसे करने से हड्डी के दर्द से न सिर्फ आराम मिलता है बल्कि हड्डी जुड़ने में भी सहायता मिलती है।
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अर्जुन छाल के एक चम्मच चूर्ण को जल या दूध के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को जल में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में तथा व्रण में लाभ होता है। अर्जुन छाल का काढ़ा बनाकर पीने से भी कुष्ठ में लाभ होता है।
अल्सर या घाव-कभी-कभी अल्सर का घाव सूखने में बहुत देर लगता है या फिर सूखने पर पास ही दूसरा घाव निकल आता है, ऐसे में अर्जुन का सेवन बहुत ही फायदेमंद होता है। अर्जुन छाल को कुटकर काढ़ा बनाकर अल्सर के घाव को धोने से लाभ होता है।
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आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में मुँहासे से कौन नहीं परेशान है! लेकिन अर्जुन की छाल न सिर्फ मुँहासों से छुटकारा दिलाने में मदद करेगा बल्कि चेहरे की कांति भी बढ़ जायेगी। अर्जुन की छाल के चूर्ण को मधु में मिलाकर लेप करने से मुँहासों तथा व्यंग में फायदा मिलता है।
–अर्जुन का काढ़ा बनाकर पीने से सूजन कम होता है। (गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात् अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर के किसी अंग में सूजन आ जाने पर भी अर्जुन का प्रयोग किया जा सकता है।)
–अर्जुन के जड़ के छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ के छाल के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में नियमित सुबह शाम दूध के साथ सेवन करने से दर्द तथा सूजन कम होती है।
अगर रक्तपित्त की समस्या से ग्रस्त हैं तो अर्जुन का सेवन करने से जल्दी आराम मिलेगा। 2 चम्मच अर्जुन छाल को रात भर जल में भिगोकर रखें, सबेरे उसको मसल-छानकर या उसको उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
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अगर मौसम के बदलने के वजह से या किसी संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में अर्जुन बहुत मदद करता है।
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क्षय रोग या तपेदिक के लक्षणों से आराम दिलाने में अर्जुन का औषधीय गुण काम करता है। अर्जुन की त्वचा, नागबला तथा केवाँच बीज चूर्ण (2-4 ग्राम) में मधु, घी तथा मिश्री मिलाकर दूध के साथ पीने से क्षय, खांसी रोगों से जल्दी राहत मिलती है।
आयुर्वेद में अर्जुन के तने की छाल, जड़, पत्ता तथा फल का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है।
बीमारी के लिए अर्जुन के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए अर्जुन का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार-
अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। 250 मिली दूध में 250 मिली पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें तीन ग्राम अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाए तब उतार लें। पीने योग्य होने पर उसको छान लें और उसका सेवन करें। इससे हृदय रोग होने की संभावना कम होती है तथा हार्ट अटैक से बचाव होता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में नदी, नालों के किनारे 18-25 मी तक ऊँचे पंक्तिबद्ध हरे पल्लवों के वल्कल (bark) ओढ़े अर्जुन के वृक्ष ऐसे लगते हैं, जैसे महाभारत के पार्थ (महारथी अर्जुन) की तरह अनेक महारथी अक्षय तरकशों में अगणित अत्र लिए प्रस्तुत हों तथा महासमर में अनेक व्याधिरूपी शत्रुओं को नष्ट करने को एकत्र हुए हों। अर्जुन का वृक्ष जंगलों में पाया जाता है।
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