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कोई भी चीज जब जीभ के संपर्क में आती है तो उससे हमें जो अनुभव होता है उसे आयुर्वेद में रस कहा गया है। आम भाषा में इसे समझे तो कुछ भी चीज खाने पर हमें तो स्वाद महसूस होता है वही रस है।
आयुर्वेद में खाने पीने की किसी भी चीज के फायदे इन रसों के आधार पर ही निर्धारित किये हैं। जिन चीजों में रसों की तीव्रता काफी ज्यादा होती है उन्हें ही औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। खाद्य पदार्थों की तासीर भी इन्हीं रसों के आधार पर तय की जाती है। जैसे मधुर रस वाली चीजों की तासीर ठंडी और अम्ल या कटु रस वाले खाद्य पदार्थों की तासीर गर्म मानी जाती है।
आयुर्वेद में 6 प्रकार के रसों के बारे में बताया गया है। रसों का ये प्रकार मूलतः स्वाद के आधार पर ही निर्धारित किये गए हैं। आयुर्वेद में निम्न 6 रस बताए गए हैं।
इनमें सबसे पहला रस (मधुर) सबसे अधिक बल प्रदान करने वाला है और अगले रस अपेक्षाकृत क्रमशः कम बल प्रदान करने वाले हैं। इस क्रम से कषाय रस सबसे कम बल प्रदान करने वाला है।
हालांकि रस जल का स्वाभाविक गुण है, परन्तु जल में भी रस की उत्पत्ति (अभिव्यक्ति) तभी होती है, जब यह महाभूतों के परमाणुओं के साथ संपर्क में आता है। अतः प्रत्येक रस में अलग-अलग महाभूतों की प्रधानता पाई जाती है, जो इस प्रकार है।
रस | महाभूत |
मधुर | पृथ्वी और जल |
अम्ल | पृथ्वी और अग्नि |
लवण | जल और अग्नि |
कटु | वायु और अग्नि |
तिक्त | वायु और आकाश |
कषाय | वायु और पृथ्वी |
प्रत्येक रस में पाये जाने वाले प्रमुख महाभूतों के अनुसार ही उस पदार्थ का व्यक्ति के शरीर में विद्यमान दोषों, धातुओं आदि पर प्रभाव पड़ता है।
रसों में अलग-अलग महाभूतों की अधिकता के अनुसार ही कोई एक रस, किसी दोष को बढ़ाता है तो किसी अन्य दोष को कम करता है। आइये इस बारे में और जानते हैं :
रस | किन दोषों को बढ़ाता है | किन दोषों को घटाता है |
मधुर | कफ | वात, पित्त |
अम्ल | पित्त, कफ | वात |
लवण | कफ, पित्त | वात |
कटु | पित्त, वात | कफ |
तिक्त | वात | पित्त, कफ |
कषाय | वात | पित्त, कफ |
आइये अब प्रत्येक रस के बारे में विस्तार से जानते हैं:
जिस रस को खाने पर संतुष्टि, ख़ुशी और मुंह में चिपचिपापन महसूस होता है। साथ ही जो रस पोषण प्रदान करता है और कफ बढ़ाता है उसे ही आयुर्वेद में मीठा या मधुर रस कहा गया है।
मधुर रस से युक्त पदार्थ (औषधि और आहार द्रव्य) जन्म से ही अनुकूल होते हैं। अतः ये रस से शुक्र तक सभी धातुओं की वृद्धि करके व्यक्ति को बलवान बनाते हैं और उम्र बढ़ाते हैं। इनके सेवन से त्वचा का रंग में निखार आता है एवं पित्त और वात दोष शान्त होते हैं।
मधुर रस वाली चीजें खाने से नाक, गला, मुंह, जीभ और होंठ चिकने और मुलायम होते हैं। ये शरीर को स्थिरता, लचीलापन, शक्ति और सजीवता प्रदान करते हैं। आमतौर पर मधुर रस वाले पदार्थ चिकनाई युक्त, ठंडे और भारी होते हैं। ये बालों, इन्द्रियों और ओज के लिए उत्तम होते हैं।
दुबले-पतले कमजोर लोगों या और किसी बीमारी आदि से पीड़ित लोगों को विशेष रूप से मधुर रस युक्त आहार खाने की सलाह दी जाती है।
कई गुणों से युक्त होने पर भी मधुर रस वाली चीजों के सेवन से शरीर में कफ दोष बढ़ने लगता है। कफ बढ़ने के कारण निम्न रोगों की संभावना बढ़ जाती है :
इसलिए मोटे, अधिक चर्बी वाले, मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को मधुर रस का सेवन कम से कम करना चाहिए तथा पेट में कीड़े होने पर भी इससे बचना चाहिए।
आयुर्वेद में वर्णित- घी, सुवर्णि, गुड़, अखरोट, केला, नारियल, फालसा, शतावरी, काकोली, कटहल, बला, अतिबला, नागबला, मेदा, महामेदा, शालपर्णाी, पृश्नपर्णाी, मुद्गपर्णाी, माषपर्णाी, जीवन्ती, जीवक, महुआ, मुलेठी, विदारी, वंशलोचन, दूध, गम्भारी, ईख, गोखरू, मधु और द्राक्षा, ये सब मधुर द्रव्यों में मुख्य हैं।
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पुराना चावल, पुराने जौ, मूँग, गेंहूँ, शहद मधुर रस वाले होने पर भी कफ को नहीं बढ़ाते। अतः आयुर्वेद में अन्न पुराना तथा घी नया खाने का विधान है।
जिस रस का सेवन करने से मुंह से स्राव होता है। जिसे खाने पर आंखें और भौहें सिकुड़ती हैं और दांतों में खट्टापन महसूस होता है वो अम्ल रस होता है।
यह रस पदार्थ़ों को स्वादिष्ठ और रुचिकर बनाता है एवं भूख को बढ़ाता है। छूने पर यह ठंडा महसूस होता है। इसके सेवन से शरीर की ताकत बढ़ती है। अम्ल रस वाली चीजों के सेवन से मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है। यह ज्ञानेन्द्रियों को सशक्त बनाते हैं और शरीर को उर्जा देते हैं।
अम्ल रस, भोजन को निगलने और उसे गीला करने में सहायक होता है और गति बढ़ाकर भोजन को नीचे की ओर ले जाकर भी पाचन क्रिया को बढ़ाता है। ज्यादातर कच्चे फलों में अम्ल रस पाया जाता है।
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अम्ल रस का अधिक सेवन करने से पित्तदोष में वृद्धि हो जाती है। जिसके परिणामस्वरूप निम्नलिखित समस्याएं होने की आंशका बढ़ जाती है :
आंवला, इमली, नींबू, अनार, चाँदी, छाछ, दही, आम, कमरख, कैथ और करौंदा आदि में अम्ल रस अधिक मात्रा में होता है।
अनार या अनारदाना और आंवला, ये अम्ल रस वाले होते हुए भी अम्ल रस से होने वाली किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाते हैं।
जो रस, सेवन करने पर मुख से लार टपकाता है तथा गले और कपोल में जलन पैदा करता है, वह लवण रस कहलाता है।
लवण रस युक्त पदार्थ वात की गति नीचे करने वाले, चिपचिपाहट पैदा करने वाले और तीक्ष्ण पाचक होते हैं। ये अंगों की जकड़न, शरीर के स्रोतों (बॉडी चैनल) की रुकावट, जमी हुई चर्बी और मल पदार्थ़ों के अधिक संचय को दूर करते हैं। लवण रस वाले पदार्थ न बहुत अधिक चिकने, न अधिक गर्म होते हैं और न अधिक भारी होते हैं। लवण रस अन्य रसों के प्रभाव को कम कर देता है।
अधिक मात्रा में लवण रस युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने से पित्त दोष के साथ रक्त भी असंतुलित हो जाता है। इस वजह से निम्न समस्याएँ होने की संभावना बढ़ जाती है:
सेंधानमक, सौर्वचल नमक, कृष्ण, बिड, सामुद्र और औद्भिद नमक, रोमक, पांशुज, सीसा और क्षार, ये लवण रस वाले मुख्य द्रव्य हैं।
इस रस का सेवन करने पर मुंह में सुई चुभने जैसा दर्द महसूस होता है और जीभ के अगले हिस्से को उत्तेजित करता है। इसके अलावा यह आंख, नाक और मुंह से स्राव कराता है और कपोलों को जलाता है।
कटु रस वाले पदार्थ मुंह को स्वच्छ रखते हैं और शरीर में भोजन के अवशोषण में सहायक होते हैं। इनके सेवन से भूख और पाचन शक्ति बढ़ती है। ये आंख, कान आदि ज्ञानेन्द्रियों को ठीक प्रकार से कार्य करने योग्य बनाते हैं।
कटु रस वाली चीजों के नियमित सेवन से नाक व आंखों से मल पदार्थों का स्राव और स्रोतों (बॉडी चैनल्स) से चिपचिपे मल पदार्थों का निकास ठीक तरह से होता है।
कटु रस युक्त पदार्थ कफ को शान्त करता है और जमे हुए रक्त का संचार करता है। कटु रस युक्त पदार्थ भोजन को स्वादिष्ठ बनाते हैं।
कटु रस युक्त आहारों में वात और अग्नि महाभूत की अधिकता होती है। इन पदार्थों का अधिक सेवन करने से निम्न समस्याएं होने की संभावना रहती हैं :
हींग, मरिच, पंचकोल (पिप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक और शुण्ठी) तथा सभी प्रकार के पित्त, मूत्र और भिलावा आदि कटु रस वाले खाद्य पदार्थ हैं।
सोंठ, पिप्पली और लहसुन, कटु रस के अन्य पदार्थ़ों के समान ज्यादा हानिकारक नहीं होते।
यह रस मुंह से लिसलिसेपन को हटाता है और जीभ को जड़ बनाता है।
तिक्त रस का स्वाद भले ही बुरा हो लेकिन यह अन्य पदार्थों को स्वादिष्ट और रुचिकर बनाता है। इससे भोजन में रूचि बढ़ती है। तिक्त रस वाले पदार्थ विषैले प्रभाव, पेट के कीड़ों, कुष्ठ, खुजली, बेहोशी, जलन, प्यास, त्वचा के रोगों, मोटापे व मधुमेह आदि को दूर करते हैं।
ये वात का अनुलोमन (नीचे की ओर गति) करते हैं शरीर में रूखापन लाते हैं। अतः शरीर की नमी, चर्बी, मोटापा, मज्जा, पसीना, मूत्र तथा पुरीष को सुखाते हैं। इसके अलावा गले और यकृत् को शुद्ध करते हैं और कार्य करने में समर्थ बनाते हैं।
अधिक मात्रा में सेवन करने से तिक्तरस युक्त पदार्थ शरीर में रस (plasma), रक्त, वसा, मज्जा तथा शुक्र की मात्रा को कम कर देते हैं। इनसे स्रोतों में खुरदरापन और मुँह में शुष्कता, शक्ति में कमी, दुर्बलता, थकावट, चक्कर, बेहोशी, वातज रोग उत्पन्न होते हैं।
पटोल, जयन्ती, सुगन्धबाला, खस, चन्दन, चिरायता, नीम, करेला, गिलोय, धमासा, महापंचमूल, छोटी और बड़ी कटेरी, इद्रायण, अतीस और वच : ये सब तिक्त रस वाले पदार्थ हैं।
गिलोय व पटोल तिक्त रस वाले होने पर भी हानिकारक नहीं होते।
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यह रस जिह्वा को जड़ (सुन्न कर देना) बनाता है और गले एवं स्रोतों को अवरुद्ध करता है।
यह रस पित्त और कफ दोष को कम करता है। इसके अलावा यह अंगों से स्राव को कम करता है, घाव को जल्दी भरता है और हड्डियों को जोड़े रखने में मदद करता है। इसमें धातुओं और मूत्र आदि को सुखाने वाले गुण भी होते हैं। यही कारण है कि कषाय रस युक्त पदार्थों के सेवन से कब्ज़ की समस्या हो जाती है।
कषाय युक्त पदार्थ त्वचा को स्वच्छ बनाते हैं। ये शरीर की नमी को सोख लेते हैं। आयुर्वेद के अनुसार कषाय रस सूखा, ठंडा और भारी होता है।
कषाय रस वात को प्रकुपित करता है। अगर आप कषाय रस वाली चीजों का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं तो आपको निम्न समस्याएँ होने की आशंका बढ़ जाती है।
हरड़, बहेड़ा, शिरीष, खैर, शहद, कदम्ब, गूलर, कच्ची खांड, कमल-ककड़ी, पद्म, मुक्ता (मोती), प्रवाल, अञ्जन और गेरू इत्यादि कषाय रस वाले खाद्य पदार्थ हैं।
कषाय रस युक्त होने पर भी हरड़ अन्य कषाय द्रव्यों के समान शीतल और स्तम्भक (मल आदि को रोकने वाली) नहीं होती।
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