नारियल एक ऐसा फल है जो पूजा के काम आने के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी कई तरह से फायदा पहुँचाता है। नारियल का फल और नारियल का पानी दोनों के स्वास्थ्यवर्द्धक गुण (Coconut Benefits in Hindi) अनगिनत होते हैं। इसलिए आयुर्वेद में कई बीमारियों के लिए दोनों का इस्तेमाल औषधी के रूप में किया जाता रहा है।
नारियल का पानी शरीर में जल की कमी को पूरा करने के साथ-साथ चेहरे पर चेचक के दाग-धब्बों को भी दूर करने में भी सहायता करता है। और नारियल का फल पौष्टिकता का भंडार तो होता ही है साथ ही सिर दर्द से लेकर हिचकी, उल्टी, दस्त, दाद, सूजन अादि बीमारियों के लिए औषधी के रूप में प्रयुक्त होता है। चलिये नारियल के बारे में विस्तार से आगर जानते हैं।
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आयुर्वेद के अनुसार नारियल मधुर, शीतल, गुरु, स्निग्ध, वातपित्त-को कम करने वाला, कमजोरी कम करने वाला, रुचिकारक, कब्ज दूर करने वाला, शुक्रल, तर्पण, दुर्जर, विष्टम्भी, मदकारक, वस्तिशोधक तथा केशों के लिए हितकारक होता है।
यह मधुमेह, रक्तातिसार, रक्तदोष, रक्तपित्त, सोमरोग, क्षत, क्षय, दाह, छर्दि, कास, प्यास, बुखार, बेहोशी तथा थकान कम करने वाला होता है।
नारियल घृत मधुर, शीत, अभिष्यन्दि, बलकारक, बृंहण, केश्य, पित्तवातहर, श्लेष्मकारक, हृद्य तथा रुचिकारक होता है।
नारियल का जल स्वादिष्ट, शीतल, बलकारक, गुरु, अग्निदीपन, शुक्रजनक, लघु, वस्तिशोधक तथा पीनस, भम, दाह, सूखारोग तथा पित्त-शामक होता है।
सूखा नारियल कठिनता से पचने वाला, दाहकारक, गुरु, स्निग्ध, मलस्तम्भक, बलकारक, वीर्यवर्धक तथा रुचिकारक होता है।
नारियल का तेल वाजीकर, केश्य, मधुर, मूत्रल, अभिष्यंदि, गुरु, क्षीण धातुवाले मनुष्यों के लिए पुष्टिकारक, वातपित्तशामक, कफकारक, मूत्राघात, प्रमेह, श्वास, कास तथा टीबी से राहत दिलाने वाला होता है। नारियल का तेल जलने वाले जगह के जलन को कम करने में सहायता करता है। साथ ही ये हृदय के कार्य को सुचारू रूप से करने में सहायता करता है।
नारियल का वानास्पतिक नाम Cocos nucifera Linn. (कोकस् न्यूसीफेरा) Syn-Calappa nucifera (Linn.) Kuntze; Cocus indica Royle होता है। नारियल Arecaceae (ऐरेकेसी) कुल का होता है और इसको अंग्रेजी में Coconut (कोकोनट) कहते हैं। लेकिन भारत के विभिन्न प्रांतों में नारियल विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे-
Coconut in-
नारियल में विटामिन, मिनरल, एमिनो एसिड, फाइबर, कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन जैसे पोषक तत्व होने के कारण ये कई बीमारियों के लिए इलाज (uses of coconut tree in hindi) के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। चलिये जानते हैं कि किन-किन बीमारियों के लिए ये फायदेमंद है-
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नारियल के जल (5-10 मिली) को पीने से सिरदर्द, सूर्यावर्त्त तथा अर्धावभेदक आदि बीमारियों से राहत मिलती है। इसके अलावा 100 मिली नारियल के दूध में 1 ग्राम कट्फल चूर्ण मिलाकर, उबालकर मावा समान गाढ़ा बनाकर, घृत में भून कर तथा मिश्री, बादाम, केसर आदि डालकर सेवन करने से सिर दर्द कम होता है।
नारियल तेल को स्कैल्प पर नियमित रूप से लगाने से नए बालों के आने की संभावना बनती है।
नारियल के पानी को नाक से लेने से अर्धावभेदक या माइग्रेन में लाभ होता है।
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नारियल के जड़ का काढ़ा बनाकर गरारा करने से गले के घाव शीघ्र भर जाते हैं।
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रोहिणी (Diptheria) में जो प्यास लगती है उसमें कच्चे नारियल जल का सेवन करने से प्यास लगने का अनुभव कम होता है।
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नारियल की जटा की 65 मिग्रा भाग को पानी में घोलकर उस पानी को छानकर पिलाने से हिचकी बन्द होती है।
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नारियल के जल से सत्त् को घोलकर उसमें चीनी मिलाकर पीने से पित्त-रोग तथा हृदय रोगों में लाभ होता है एवं शरीर के कंपन, प्यास, बेहोशी और भ्रम जैसे लक्षणों से राहत मिलती है।
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नारियल गिरी के काढ़े में मिश्री, मधु तथा पीपल का चूर्ण मिला कर सेवन करने से पित्त के कारण जो उल्टी होती है उसमें शीघ्र लाभ मिलता है।
नारियल जड़ से बने काढ़े में हींग डालकर पीने से पेट की कृमियां दूर होती है।
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नारियल जल का सेवन करने से भूख कम लगने की बीमारी, दस्त एवं प्रवाहिका से राहत मिलती है।
नारियल पुष्प के 1-2 ग्राम के सूक्ष्म चूर्ण को दूध अथवा दही के साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है। इसके अलावा कच्चे नारियल (डाभ) के जल का सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र तथा मूत्र संबंधी रोग का शमन होता है। जड़ का काढ़ा तथा नारियल के भीतर के अंश का सेवन भी मूत्रकृच्छ्र में लाभप्रद होता है।
डाभ (कच्चे नारियल) के जल का सेवन करने से किडनी की सूजन कम होती है।
डिलीवरी के बाद यदि गर्भाशय में दर्द हो तो नारियल की गिरी खिलाने से लाभ होता है।
पुराने नारियल के तेल का लेप करने से घाव भर जाता है।
कच्चे नारियल (डाभ) के जल से चेहरे को धोने से मुँहासे, पिड़िका तथा झाँईयां कम होती है एवं मुख की कान्ति यानि चेहरे का ग्लो बढ़ता है।
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कच्चे नारियल के जल से सिक्त रूई के फाहों को स्मॉल पॉक्स पर रखने से तथा नारियल जल से ही धोने से धीरे-धीरे दाने कम होते हैं तथा दाग कम होते हैं।
पुराने नारियल की गिरी को बारीक कूटकर उसमें एक चौथाई पिसी हुई हल्दी मिलाकर चोट तथा मोच में लगाने से लाभ होता है।
नारियल गिरि का रस निकाल कर, रात में पीने से जीर्ण-ज्वर या बुखार कम होता है।
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पुष्प कल्क से निकाले तेल अथवा पुष्प कल्क मिश्रित तेल का लेप करने से सूजन कम होता है।
आयुर्वेद में मूल, नारियल जल, फल की गिरी, पुष्प, नारियल जटा, तैल एवं क्षार का प्रयोग औषधी के लिए किया जाता है। चिकित्सक के परामर्श के अनुसार नारियल जल 10-20 मिली और चूर्ण 1-2 ग्राम तक ले सकते हैं।
उष्णकटिबंधीय समुद्रतटवर्ती प्रदेशों में पाया जाता है। भारत में यह विशेषत केरल, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात एवं दक्षिण-भारत में पाया जाता है। पुराण के अनुसार यह विश्वामित्र ऋषि की सृष्टि का फल है इसकी विस्तृत कथा पुराणों में कही गई है। हिन्दू-धर्म-शात्रानुसार मांगलिक-कार्यों में इसे अग्रस्थान प्राप्त है। जिस प्रकार देवताओं में श्री गणेश प्रथम प्रतिष्ठित किए गए है, ठीक उसी प्रकार फलों में नारियल का स्थान है। अत: यह श्रीफल कहलाता है।
यह लगभग 12-24 मी ऊँचा, खजूर या ताड़ के सदृश सीधा, शाखा-प्रशाखाओं से रहित, बहुवर्षायु वृक्ष होता है। इसके फल बृहत्, 20-30 सेमी लम्बे, अण्डाकार, पीताभ अथवा हरिताभ वर्ण युक्त रेशेदार, पक्वावस्था में भूरे वर्ण के होते हैं। फल के भीतर श्वेत वर्ण की अन्तफलभित्ति होती है, जिसे गिरी कहते हैं। कच्ची अवस्था में फल के भीतर मधुर जल भरा रहता है, जो पकने के बाद सूख जाता है।
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