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आज की जेनरेशन कॉफ़ी पीना ज्यादा पसंद करती है, लेकिन कॉफ़ी पीने के पहले एक बात का ध्यान रखना होगा कि कॉफ़ी पीने के फायदे जितने हैं उतने ही नुकसान भी हैं। संतुलित मात्रा में कॉफ़ी के सेवन से न सिर्फ हृदय स्वस्थ रहता है बल्कि कई रोगों के लिए औषधि के रुप में भी काम आती है।
कॉफ़ी का कड़वा और गर्म प्रकृति कफ और वात को कम करने में मदद करने के साथ-साथ मस्तिष्क को ऊर्जा भी प्रदान करती है। इसके सेवन से नींद और खुमारी भी कम होती है। चलिये ऐसे ही और स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों (coffee peene ke fayde in hindi) के अलावा कॉफ़ी के बारे में और विशेष जानकारियां भी प्राप्त करते हैं।
कॉफ़ी कड़वी और गर्म तासीर की होती है। कॉफ़ी कफ और वात को कम करने वाली; हृदय को स्वस्थ रखने वाली, दुर्गन्धनाशक और स्फूर्ति प्रदान करने वाला होती है। यह पाइल्स, दस्त, सिरदर्द, संधिवात, आमवात, निद्रा तथा शारीरिक जड़ता नाशक होती है।
कॉफ़ी को अल्प मात्रा में सेवन करने से सांस संबंधी समस्या में लाभ मिलता है। कॉफ़ी में उपस्थित रस कैफीन के कारण यह मूत्र संबंधी बीमारी, मस्तिष्क तथा हृदय को उत्तेजित करने में मदद करती है।
कॉफ़ी के रस का प्रयोग हृदय संबंधी बीमारी तथा किडनी के सूजन को कम करने में भी सहायता करती है।
इसका मस्तिष्क को उत्तेजित करने वाली या केंद्रीय नाड़ी संस्थान पर उत्तेजक प्रभाव होने के कारण सेवन के बाद व्यक्ति अपने को प्रसन्न महसूस करता है। कॉफ़ी का संतुलित मात्रा में सेवन करने से थकान तथा तंद्रा दूर होती है। वैसे प्राचीन आयुर्वेदीय निघण्टुओं में इसका वर्णन नहीं मिलता है। इसके बीजों में कैफीन नामक तत्व पाया जाता है। इसलिए इसका प्रयोग कम मात्रा में करना चाहिए।
कॉफ़ी का वानास्पतिक नाम : Coffea arabica Linn. (कॉफिया अरेबिका) Syn-Coffea laurifolia Salisb., Coffea vulgaris Moench होता है। कॉफ़ी Rubiaceae (रूबिएसी) कुल का होता है। कॉफ़ी को अंग्रेजी में Arabian Coffee (अरेबियन कॉफी) कहते हैं। वैसे तो कॉफ़ी भारत में विभिन्न नामों से जाना जाता है।
Coffee in-
ब्लैक कॉफ़ी पीने से न सिर्फ हृदय की दुर्बलता कम होती है बल्कि ये सिर दर्द, उल्टी, थकान, खाने में अरुची जैसे समस्याओं के लिए दवा जैसा काम करती है।
आजकल के जीवनशैली के कारण माइग्रेन की समस्या बहुत लोग परेशान रहते हैं। कॉफ़ी के अपरिपक्व बीजों का काढ़ा बनाकर 15-20 मिली मात्रा में पीने से आधासीसी (आधे कपाल में वेदना) में दर्द, आमवात, संधिवात तथा सिर दर्द कम होता है।
अक्सर पेट में गड़बड़ी होने के कारन मुँह में बदबू की समस्या होती है। कॉफ़ी का काढ़ा बनाकर, गरारा करने से मुँह की दुर्गंध कम होती है।
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एसिडिटी या अपच के कारण उल्टी महसूस हो रहा है तो कॉफ़ी के बीज तथा पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से खाने में अरुची, उल्टी, प्यास, हृदय की दुर्बलता तथा थकान में लाभ होता है।
पेट में इंफेक्शन होने के कारण या असंतुलित आहार योजना से दस्त की बीमारी हो जाती है। कॉफ़ी का प्रयोग दस्त तथा अग्निमांद्य की चिकित्सा में फायदेमंद होता है।
घी में भूना हुआ कॉफ़ी के चूर्ण से बनाया काढ़े में दूध तथा चीनी मिलाकर पिलाने से नाड़ी की शिथिलता मिटती है।
संतुलित मात्रा में कॉफ़ी का इस तरह से सेवन करने से दिल स्वस्थ रहता है। घी में भूना हुआ कॉफ़ी के चूर्ण से बनाया काढ़ा दिल के लिये फायदेमंद होता है।
मौसम के बदलने के साथ बुखार अपने चपेट में किसी न किसी को ले ही लेती है। कॉफ़ी बुखार के राहत दिलाने में गुणकारी होता है। घी में भूना हुआ कॉफ़ी के चूर्ण से बनाया काढ़े में दूध तथा चीनी 10 मिली मिलाकर पिलाने से बुखार से राहत मिलती है।
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आयुर्वेद में कॉफी के बीज का औषधि के रुप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
बीमारी के लिए कॉफी के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए कॉफी का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें। इसके अलावा चिकित्सक के परामर्श के अनुसार –
-10-20 मिली कॉफी के काढ़े का सेवन करना चाहिए।
कॉफी पीने के फायदे जैसे है वैसे ही अंसतुलित मात्रा में कॉफी पीने के बहुत सारे साइड इफेक्ट्स भी होते हैं।
-बच्चों के लिए कैफीन की 5.3 ग्राम मात्रा का सेवन प्राण-घातक साबित हो सकती है। इसके अलावा गर्भावस्था में इसके प्रयोग से बचना चाहिये।
-इसका प्रयोग स्तनपान कराने वाली महिलाओं को नहीं करना चाहिए और यदि कोई करता है तो कैफीन के प्रभाव से अनिद्रा की बीमारी हो सकती है।
-प्रतिदिन 5 कप कॉफी (500 मिग्रा कैफीन) का प्रयोग सुरक्षित होता है। मानसिक, किडनी और थायराइड ग्रंथियों के रोगियों को कॉफी का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इसका लंबे समय तक अत्यधिक मात्रा में सेवन करने पर दस्त, सिरदर्द, अरुचि, हृदय में बेचैनी,अनिद्रा, उल्टी एवं आमाशय की समस्या हो सकती हैं।
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-कॉफी के अत्यधिक प्रयोग से कब्ज, अनिद्रा, बेचैनी, तनाव, उल्टी जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
कॉफी का क्षुप (shurb) मूलत: इथोपिया तथा सूडान में प्राप्त होता है। दक्षिण भारत में कर्नाटक, केरल, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश एवं पश्चिमीघाट में इसकी खेती की जाती है। प्राचीन आयुर्वेदीय निघण्टुओं में इसका वर्णन नहीं है। इसके बीजों में कैफीन नामक तत्व पाया जाता है। अत इसका प्रयोग कम मात्रा में करना चाहिए।
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