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आप भुई आंवला (bhumi amla plant) के बारे में शायद बिल्कुल नहीं जानते होंगे। असल में, बहुत कम लोग ही भुई आंवला के बारे में जानते हैं। भुई आंवला एक जड़ी-बूटी है। आयुर्देव के अनुसार, भुई आंवला का इस्तेमाल चिकित्सा कार्यों जैसे लोगों की अनेक बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है। भुई आंवला का उपयोग सिर्फ रोगों को ठीक करने के लिए ही नहीं बल्कि से भूख और कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।
पतंजलि के अनुसार, भुई आंवला स्वाद में चरपरा, कसैला तथा मीठा होता है। यह अधिक प्यास लगने की परेशानी, खांसी, खुजली, कफ और बुखार आदि में तो फायदा पहुंचाता ही है साथ ही लिवर के किसी भी प्रकार के रोग की दिव्य औषधि भी माना जाता है। अगर आप इसका लेप घाव पर करेंगे तो इससे घाव की सूजन तो ठीक होगी ही साथ ही घाव भी ठीक हो जाएगा। यह कुष्ठ रोग में भी उपयोगी होता है। आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर भुई आंवला के प्रयोग से इतने सारे फायदे होते हैं तो यह आपको कितना लाभ पहुंचा सकता है।
भुई आंवला के छोटे-छोटे पौधे (bhumi amla plant) वर्षाऋतु में उत्पन्न होते हैं। ये पौधे शरद्-ऋतु में फूलने-फलने के बाद गर्मी के मौसम में सूख जाते हैं। इसके फल धात्रीफल की भांति गोल लेकिन आकार में छोटे होते हैं। इसी कारण इसको भूधात्री कहते हैं। भू आंवला की तीन प्रजातियां होती हैं-
चिकित्सा की दृष्टि से मुख्यतया Phyllanthus urinaria Linn. का ही प्रयोग किया जाता है।
Phyllanthus urinaria Linn. (तामलकी)
इसका पौधा (bhumi amla tree) शाखाओं से युक्त, सीधा तथा भूमि पर फैलने वाला होता है। इसके पत्ते छोटे, चपटे होते हैं। इसके पत्ते आंवले के पत्तों के समान लेकिन उससे छोटे एवं चमकीले होते हैं।
इसके फल गोलाकार, धात्रीफल जैसा गोल एवं शाखाओं के नीचे एक कतार में निकले हुए होते हैं।
Phyllanthus maderaspatensis Linn. (भूम्याल्पामलकी, अल्पफला तामलकी)
यह पौधा (bhumi amla tree) सीधा या जमीन पर फैलने वाला शाकीय होता है। इसके तने की छाल और शाखाएं तथा फल लाल रंग के होते हैं। इसके पत्ते आंवले जैसे चिकने तथा चमकीले हरे रंग के होते हैं।
इसके फूल गोलाकार होते हैं। इसके पञ्चाङ्ग का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। यह कफ विकार, पेशाब से संबंधित बीमारी, भूख और कामोत्तेजना बढ़ाने वाला होता है।
भुई आंवला का वानस्पतिक नाम फाइलैन्थस यूरीनेरिया (Phyllanthus urinaria Linn., Syn-Diasperus urinaria (Linn.) Kuntze, यूफॉर्बिएसी (Euphorbiaceae) है लेकिन इसे देश और विदेशों में इन नामों से भी जाना जाता है।
Bhui Amla in-
भुई आंवला के औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
श्वसन तंत्र संबंधी विकार को ठीक करने के लिए भुई आंवला बहुत फायदेमंद होता है। भूम्यामलकी की 10 ग्राम जड़ को जल में पीसकर उसमें 1 चम्मच मिश्री या शहद मिलाएं। इसे पिलाने से और इसको नाक के रास्ते देने से श्वास रोग में लाभ होता है।
भुई आंवला के 50 ग्राम पञ्चाङ्ग को आधा लीटर जल के साथ औटाएं। जब यह एक चौथाई बच जाए तो इसे काढ़ा को एक-एक चम्मच दिन में दो बार पिलाने से श्वास रोग में लाभ होता है।
भूम्यामल की रस को घाव में लगाने से घाव ठीक होता है। इसी तरह भूम्यामल की पञ्चाङ्ग को चावलों के पानी के साथ पीसकर घाव पर लगाने पर घाव की सूजन ठीक हो जाती है। आमलकी के पत्तों का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से भी घाव ठीक होता है। भुई-आंवला के कोमल पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
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भुई आंवला के पत्ते को पीसकर उसमें नमक मिलाकर खुजली पर लगाएं। खुजली ठीक हो जाती है।
भुई-आंवला के कोमल पत्तों को चोट पर लगाने से चोट की पीड़ा शांत हो जाती है। इसे जांघों की खुजली में भी लगाया जा सकता है।
तांबे के बर्तन में भुई आंवला (Bhumi Amla Patanjali) को सेंधा नमक के साथ जल में घिसें। इसे आंख के बाहर लेप करने से आंखों के रोग में लाभ होता है।
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भूम्यामलकी के 50 ग्राम पत्तों का 200 मिली जल में हिम बनाएं। इससे कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक होते हैं।
भुई आंवला (Bhumi Amla Patanjali) के 50 ग्राम पञ्चाङ्ग को आधा लीटर जल में औटाएं। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाता है तो काढ़ा को एक-एक चम्मच दिन में दो बार पिलाने से खांसी में लाभ होता है।
इसी तरह पिप्पली, लाल चन्दन, भुई आंवला (Patanjali bhumi amla powder), सारिवा तथा अतीस आदि द्रव्यों से बनी घी का नियम से सेवन करने से भी खांसी की बीमारी में आराम मिलता है।
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त्रायमाणाद्य घृत में भूम्यामलकी को मिलाकर सेवन करने से पित्तज विकार के कारण होने वाली गांठ, रक्त विकार के कारण होने वाली गांठ में फायदा होता है।
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छाया में सुखाए हुए भूमि आंवला को मोटा-मोटा कूटकर रख लें। 10 ग्राम भूम्यामलकी को 400 मिली पानी में पकाएं। जब एक चौथाई से भी कम रह जाए, तब छानकर सुबह खाली पेट और रात को भोजन से एक घण्टा पहले सेवन करें। यह आंतों में होने वाले घाव (अल्सर) को ठीक करने के लिए चमत्कारिक औषधि है।
सिर दर्द से आराम पाने के लिए घी में पिप्पली, लाल चन्दन, भुई आंवला (Bhumi amla patanjali), सारिवा तथा अतीस आदि द्रव्यों से मिलाएंं। इसका सेवन करें। इससे सिर दर्द ठीक हो जाता है।
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भुई आंवला (bhumi amla) के कोमल पत्तों और काली मिर्च (चौथाई भाग) को पीसें। उनकी जायफल के बराबर गोलियां बना कर 2-2 गोली दिन में दो बार देें। इससे गंभीर ज्वर में तो लाभ होता ही है साथ ही बार-बार आने वाले गंभीर बुखार ठीक हो जाता है।
घी में पिप्पली, लाल चन्दन, भुई आंवला, सारिवा तथा अतीस आदि सामान पकाएं। इसका सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।
बलादि घी में बला मूल, गोखरू, निम्ब, पर्पट, भूम्यामलकी तथा नागरमोथा को पकाएं। इसका सेवन करने से भी बुखार में लाभ होता है।
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10 मिली भुई आंवला (bhumi amla) के रस में जीरा तथा चीनी मिलाकर पिलाने से पेशाब में जलन सहित अन्य मूत्र विकार ठीक होते हैं।
एक चम्मच भुई आंवला के पत्ते के रस में जीरा और चीनी मिलाकर देने से पेशाब की जलन की परेशानी में लाभ होता है।
10 मिली भुई आंवले के रस में 10 मिली गाय का घी मिलाएं। इसका सेवन करने से पेशाब के रुक-रुक कर आने की परेशानी में लाभ होता है। इसके 100 ग्राम पत्तों को 250 मिली दूध के साथ मसलकर पिलाने से मूत्र संबंधी विकार ठीक होते हैं।
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भुई आंवला (bhoomi amla) के 50 ग्राम पञ्चाङ्ग को 400 मिली पानी में पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए तो उसमें मेथी चूर्ण 5 ग्राम मिलाएं। इसे थोड़ा-थोड़ा पीने से दस्त की गंभीर बीमारी में लाभ होता है।
भुई आंवला के 20 ग्राम पत्तों को 200 मिली जल में उबालें। इसे छानकर थोड़ा-थोड़ा पीने से आमातिसार में लाभ होता है।
एक चम्मच भुई आंवला के पत्ते के रस (Bhumi Amla Patanjali) में जीरा और चीनी मिलाकर देने से सुजाक में लाभ होता है।
20 मिली भुई आंवले के रस में 2 चम्मच घी मिलाकर सुबह और शाम देने से प्रमेह में लाभ होता है।
स्तनों की सूजन को ठीक करने के लिए भी भुई आंवला बहुत काम आता है। भुई आंवला (bhoomi amla) के पञ्चाङ्ग को पीसकर स्तन पर लेप करने से स्तनों की सूजन ठीक हो जाती है।
पांच ग्राम बीज के चूर्ण को चावलों के धुए हुए पानी के साथ दो या तीन दिन पीने से मासिक धर्म में फायदा होता है। इससे मासिक धर्म के दौरान अधिक खून आना बंद हो जाता है। इसकी जड़ के चूर्ण को भी इसी प्रकार देने से लाभ होता है।
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15 ग्राम भुई आंवला पञ्चाङ्ग चूर्ण (Patanjali Bhumi amla powder) में 20 काली मिर्च चूर्ण मिलाएं। इसे दिन में दो तीन बार सेवन करने से डायबिटीज में लाभ होता है।
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भूआमलकी का पेस्ट बनाकर छाछ के साथ सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
भूधात्री की 5 ग्राम जड़ को पीस लें। इसे सुबह और शाम 250 मिली दूध के साथ खाली पेट लें। इससे पीलिया रोग में लाभ होता है।
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त्रायमाणाद्य घृत में भूम्यामलकी को मिलाकर सेवन करने से त्वचा रोग जैसे विसर्प और कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
घी में पिप्पली, लाल चन्दन, भुई आंवला (Patanjali Bhumi amla powder), सारिवा तथा अतीस आदि सामानों को मिलाकर पकाएं। इसका सेवन करने से टीबी की बीमारी में लाभ होता है।
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छाया में सुखाए हुए भूमि आंवला को मोटा-मोटा कूटकर रख लें या इसके चूर्ण (Patanjali Bhumi amla powder) का इस्तेमाल करें। 10 ग्राम भूम्यामलकी को 400 मिली पानी में पकाएं। जब एक चौथाई से भी कम रह जाए, तब छानकर सुबह खाली पेट और रात को भोजन से एक घण्टा पहले सेवन करें। यह लिवर के दर्द जैसी परेशानी में लाभदायक होता ही है साथ ही पीलिया, शरीर के किसी भी अंग में होने वाले सूजन को भी ठीक (bhoomi amla benefits) करता है।
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त्रायमाणाद्य घृत में भूम्यामलकी को मिलाकर सेवन करने से ह्रदय रोग में लाभ होता है।
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भुई आंवला का इस्तेमाल इतनी मात्रा में कर सकते हैंः-
भुई आंवला का इस्तेमाल इस तरह से किया जा सकता हैः-
भुई आंवला प्रायः आर्द्र स्थानों में खरपतवार के रूप में पैदा होता है। भारत में सभी स्थानों पर यह पाया जाता है। लगभग 900 मी की ऊंचाई तक इसके पौधे (bhumi amla tree) पाए जाते हैं।
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