चव्य (Chavya) को चाब, चाभ, चब आदि नाम से भी जानते हैं। क्या आप जानते हैं कि चव्य एक जड़ी-बूटी है, और चव्य के बहुत सारे औषधीय गुण हैं। आप बवासीर, बदहजमी, दस्त, मूत्र रोग आदि में चव्य के इस्तेमाल से लाभ (Chavya benefits and uses) ले सकते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, चव्य के औषधीय गुण के फायदे मिर्गी, डायबिटीज, नशे की लत छुड़ाने में भी मिलते हैं। यहां जानते हैं कि चव्य के सेवन या उपयोग करने से कितनी सारी बीमारियों में फायदा होता है, और चव्य से क्या-क्या नुकसान (Chavya side effects) हो सकता है।
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कई विद्वान् काली मिर्च की जड़ को चव्य मानते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। चव्य के फलों को बड़ी पिप्पली मानकर भी प्रयोग किया जाता है। चव्य की लता फैली हुई और मोटी होती है। इसके तने मोटी होते हैं। इसकी शाखाएँ टेढ़ी-मेढ़ी, गोलाकार, कठोर और फूली हुई ग्रन्थियों से युक्त होती हैं।
इसके पत्ते 12.5-17.5 सेमी लम्बे एवं 6.2-8.0 सेमी चौड़े, पान के जैसे होते हैं। इसके फूल छोटे, लाल रंग के होते हैं। इसके फल बहुत छोटे, अण्डाकार या गोलाकार होते हैं। फल लगभग 3 मिमी व्यास के, सुगन्धित और चरपरे होते हैं। चव्य के बीज एकल, गोलाकार होते हैं।
चव्य के पौधे में फूल और फल अगस्त से मार्च तक होता है। यहां चव्य के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Chavya benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप चव्य के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं।
चव्य का वानस्पतिक नाम Piper retrofractum Vahl (पाइपर रेट्रोप्रैंक्टम)? Syn-Piper chaba Hunter है और यह Piperaceae (पाइपरेसी) कुल का है। इसके अन्य ये भी नाम हैंः-
Chavya in –
चव्य के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैंः-
चव्य कटु, उष्ण; लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण होती है। इसके फूल श्वास, कास, विष और क्षय नाशक होते हैं। इसके फल उत्तेजक, वातानुलोमक, कृमिरोधी और कफनिसारक होते हैं। इसकी जड़ विषनाशक (Alexeteric) होती है।
चव्य के फायदे, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
बदहजमी में चाभ के औषधीय गुण से फायदा मिलता है। चाभ की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से बदहजमी में लाभ होता है।
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चव्य की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से दमा और फेफड़ों की सूजन में लाभ होता है। इससे गले की खराश खत्म होती है।
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चव्य, सोंठ, मरिच, पीपल और वायविडंग की बराबर मात्रा लें। इसके चूर्ण को 3-4 ग्राम मात्रा में लेकर मधु और घी के साथ मिलाकर सेवन करें। इससे टीबी की बीमारी में लाभ होता है।
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5-10 ग्राम चव्यादि घी का सेवन करने से पेचिश, गुदभ्रंश (गुदा से कांच निकलना), मूत्र रोग, गुदा दर्द होना (गुदशूल), नाभि और मूत्राशय के बीच के दर्द आदि विकारों में लाभ होता है।
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आप गैस की समस्या में भी चाभ से फायदा ले सकते हैं। 500 मिग्रा चव्य फल के चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से पेट फूलने या गैस की सम्सया में लाभ होता है।
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अतीस, कूठ, कच्ची बेलगिरी, सोंठ, कुटज-छाल, इन्द्रयव और हरीतकी का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली मात्रा में पिलाने से उल्टी और दस्त में लाभ होता है।
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चाब, चित्रक, बेलगिरी और सोंठ की बराबर मात्रा लेकर चूर्ण बना लें। चूर्ण की 2-4 ग्राम मात्रा में लेकर छाछ के साथ सेवन करने से पेचिश में लाभ होता है।
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पाचनतंत्र विकार के इलाज के लिए चव्य फल के चूर्ण में चव्य रस और मधु मिला लें। इसे सुबह और शाम सेवन करने से पाचनतंत्र विकार ठीक होता है। इससे सांसों की बीमारियों में भी लाभ होता है।
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चव्य, अरणी, त्रिफला और पाठा का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़ा में शहद मिलाकर पीने से डायबिटीज में लाभ होता है।
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चव्य, काला नमक, बिजौरा नींबू का गूदा (सुखाया हुआ) और सोंठ की बराबर मात्रा लें। इनका चूर्ण बना लें। 2-4 ग्राम चूर्ण को गर्म जल के साथ सेवन करने से मद्यपान (शराब की लत) को छोड़ने में मदद मिलती है।
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मिर्गी के इलाज में भी चाभ के इस्तेमाल से लाभ मिलता है। चाब के चूर्ण को नाक से लेने पर मिर्गी में लाभ होता है।
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चव्य, श्वेत जीरा, सोंठ, मिर्च, पीपल, हींग, काला नमक और चित्रक की बरबार-बराबर मिलाकर चूर्ण बना लें। 1-2 ग्राम चूर्ण को यव के सत्तू में मिला लें। सत्तू को दही के पानी के साथ अच्छी तरह मिला लें। इसे पीने से मोटापे का इलाज होता है।
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चव्य के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता हैः-
चव्य को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिएः-
यहां चव्य के फायदे और नुकसान की जानकारी बहुत ही आसान भाषा (Chavya benefits and side effects in Hindi) में लिखी गई है ताकि आप चव्य के औषधीय गुण से पूरा-पूरा लाभ ले पाएं, लेकिन किसी बीमारी के लिए चव्य का सेवन करने या चव्य का उपयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
भारत के अनेक प्रान्तों में चव्य पाया जाता है। मुख्यतः पश्चिम बंगाल, आसाम, केरल, पश्चिमी घाट एवं नीलगिरी के पहाड़ी स्थानों में चव्य की खेती की जाती है।
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