चिलबिल के पेड़ को हम सब जानते पहचानते हैं लेकिन उसके फायदों से अधिकांश लोग अंजान हैं. आयुर्वेद के अनुसार चिलबिल की पत्तियां और तने की छाल कई बीमारियों के इलाज में मदद करती हैं. पेट से जुड़े रोगों और डायबिटीज के मरीजों के लिए भी चिलबिल बहुत ही उपयोगी है.
गुणों के आधार पर देखा जाए तो यह काफी हद तक कारज के पौधे से मिलता जुलता है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कारज एक अलग पौधा है. इस लेख में हम आपको चिलबिल के फायदे, औषधीय गुणों और उपयोग के तरीकों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
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यह 18-20 मीटर ऊँचा बहुत फैला हुआ पेड़ है. इसकी चिकनी छाल भूरे और सफ़ेद रंग की होती है. चिलबिल के पत्ते 8-13 सेमी लम्बे और 3 से 6 मीटर चौड़े होते हैं. इन पत्तों को मसलने पर तीखी गंध आती है. इसके फ्लों में चिकने, चमकीले और चपटे आकार के 1-1 बीज होते हैं.
चिलबिल का वानस्पतिक नाम Holoptelea integrifolia (Roxb.) Planch. (होलोप्टेलिआ इन्टेग्रिफोलिआ) Syn-Ulmus integrifolia Roxb. है. यह Ulmaceae (अल्मॅसी) कुल का पौधा है. आइये जानते हैं कि अन्य भाषाओं में चिलबिल को किन नामों से बुलाया जाता है.
Indian Elm in :
चिलबिल वातकफशामक,वर्ण्य, व्रणरोपक, लेखनीय, भेदनीय, कण्डूघ्न, व्रणशोधक, कफमेदविशोधक तथा स्तम्भक होता है।
यह विष, मेह, कुष्ठ, ज्वर, छर्दि, पाण्डु, शिरशूल, गुल्म, आभ्यंतर विद्रधि, वातरक्त, योनिदोष तथा यकृत् प्लीहाविकार शामक होता है।
इसकी काण्डत्वक् तथा पत्र स्तम्भक, तापजनक, शोथघ्न, वातानुलोमक, विरेचक, कृमिघ्न, वमनरोधी, प्रमेहरोधी, कुष्ठरोधी तथा आमवातरोधी होते हैं।
चिलबिल का पेड़ पेट से जुड़े रोगों के इलाज में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा जोड़ों के दर्द और दाद खाज के इलाज में भी चिलबिल उपयोगी है. आइये जानते हैं कि अलग अलग बीमारियों के घरेलू उपाय के रूप में चिलबिल का उपयोग कैसे करें :
कई बार खराब खानपान की वजह से तेल में भुने हुए चिलबिल के अंकुरों का सेवन करने से पेट दर्द और पेट फूलने की समस्या में लाभ मिलता है।
अगर आप कब्ज की समस्या से परेशान हैं तो चिलबिल का उपयोग करके आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं. शंखिनी, थूहर, निशोथ, दंती, चिरबिल्व आदि के पत्तियों की सब्जी बनाकर खाना खाने से पहले खाएं. इससे कब्ज दूर होता है।
चिलबिल के तने की छाल का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से कब्ज दूर होता है।
चिलबिल के तने की छाल का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से कब्ज में आराम मिलता है।
5-10 मिली चिलबिल के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं और पेट के दर्द से आराम मिलता है। इसके अलावा 2-4 ग्राम चिलबिल चूर्ण में विडङ्ग चूर्ण मिलाकर सेवन करने से आंत के कीड़े नष्ट होते हैं।
5-10 मिली चिलबिल के पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर सेवन करने से उल्टी बन्द हो जाती है।
चित्रक, चिरबिल्व तथा सोंठ को पीसकर (2-4 ग्राम) सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
चिलबिल, चित्रक, सेंधानमक, सोंठ, कुटजबीज तथा अरलु को पीसकर 2-4 ग्राम मात्रा में छाछ के साथ लें. यह घरेलू नुस्खा खूनी बवासीर के इलाज में बहुत उपयोगी है।
2-4 ग्राम चिलबिल के बीजों के चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
100 ग्राम चिरबिल्व-काण्ड-छाल के चूर्ण में 10-10 ग्राम हरीतकी, बहेड़ा, आँवला तथा जामुन-बीज-चूर्ण मिलाकर 1-2 ग्राम मात्रा में प्रतिदिन प्रात सायं सेवन करने से डायबिटीज में लाभ होता है।
कई लोगों अंडकोष का आकार बढ़ जाने की समस्या से परेशान रहते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि चिकित्सक की सलाह के अनुसार चिलबिल के बीजों को पीसकर लेप करने से अंडकोष बढ़ जाने की समस्या ठीक होती है.
बढ़ती उम्र में जोड़ों में दर्द और सूजन होना एक आम समस्या है. इस समस्या से राहत पाने के लिए चिलबिल के पत्तों को पीसकर घुटनों और अन्य जोड़ों पर लेप करें. इसे लगाने से जोड़ों के दर्द और सूजन से आराम मिलता है।
जोड़ों पर चिलबिल के तने की छाल के रस का लेप करने से आर्थराइटिस में होने वाली सूजन और दर्द से आराम मिलता है.
फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी है. इस बीमारी से पीड़ित होने पर डॉक्टर की सलाह लेने के बाद ही घरेलू उपायों का उपयोग करें. विशेषज्ञों के अनुसार 10-15 मिली चिलबिल के पत्तों के रस में 5-10 मिली सरसों तेल मिलाकर पीने से फाइलेरिया में फायदा मिलता है।
समभाग चिलबिल, अर्क, थूहर, आरग्वध तथा चमेली के पत्रों को गोमूत्र में पीसकर लेप करने से सफेद दाग, दाद, आसानी से न भरने वाले घाव, बवासीर तथा नासूर में लाभ मिलता है।
पके हुए फोड़े के इलाज के लिए चिलबिल, भिलावा, दंती, चित्रक तथा कनेर के जड़ों के पेस्ट में कबूतर का मल मिला कर लेप करना चाहिए।
चिलबिल के पत्तों को पीसकर उसमें 4 गुना तिल का तेल या करंज- तेल मिलाकर उबालकर छान लें. इस तैल को लगाने से घाव के कीड़े खत्म होते हैं और घाव जल्दी ठीक होता है।
गर्मियों के मौसम में पसीने और शरीर की दुर्गंध से कई लोग परेशान रहते हैं. इस दुर्गंध से निजात पाने के लिए चिलबिल का उपयोग करें. इसके लिए एक आम इमली तथा चिलबिल के बीजों का पेस्ट बना लें और उससे शरीर पर लेप करें. ऐसा करने से पसीने की दुर्गंध दूर होती है।
आयुर्वेद के अनुसार चिलबिल का पौधा चेचक के इलाज में लाभदायक है. चेचक से आराम पाने के लिए चिकित्सक की सलाह अनुसार 5-10 मिली चिलबिल के रस में आँवला-स्वरस, मिश्री व शहद मिलाकर पिएं।
दाद खाज ऐसी समस्या है कि अगर इसका सही समय पर ठीक ढंग से इलाज ना किया जाए तो आगे चलकर संक्रमण बहुत बढ़ जाता है. चिलबिल के बीजों और तने की छाल को पीसकर दाद वाली जगह पर लगाएं। इससे दाद जल्दी ठीक होता है. इसके अलावा चिलबिल की पत्तियों के रस को दाद पर लगाने से भी इस समस्या से जल्दी आराम मिलता है.
गर्मियों के मौसम में कई लोगों को नाक-कान से खूब बहने की शिकायत रहती है. आयुर्वेद में इस समस्या को रक्तपित्त नाम दिया गया है. विशेषज्ञों के अनुसार चिलबिल के बीजों के 1-2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर खाने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
आयुर्वेद के अनुसार चिलबिल के पेड़ के निम्न भाग सेहत के लिए उपयोगी हैं.
आमतौर पर चिलबिल के चूर्ण को 3-5 ग्राम की मात्रा में और इससे बने काढ़े को 20-40 एमएल की मात्रा में उपयोग करना चाहिए. अगर आप किसी गंभीर बीमारी के घरेलू इलाज के रूप में चिलबिल का उपयोग करने की सोच रहे हैं तो बेहतर होगा कि पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लें.
भारत में चिलबिल का पेड़ हिमालय के पर्णपाती वनों में लगभग 600 मी की ऊँचाई पर पाया जाता है. इसके अलावा यह पेड़ असम, बिहार तथा भारत के पश्चिमी एवं दक्षिणी भागों में भी पाया जाता है।
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