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आप गोरखमुण्डी के बारे में शायद कुछ नहीं जानते होंगे। यह एक जड़ी-बूटी है और इससे शरीर को बहुत अधिक फायदे मिलते हैं। गोरखमुण्डी का इस्तेमाल रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में गोरखमुण्डी के बारे में विस्तार से कई सारी अच्छी बातें बताई गई हैं। बरसों से आयुर्वेदाचार्य मरीज को स्वस्थ करने के लिए गोरखमुण्डी का उपयोग करते आ रहे हैं।
पतंजलि के अनुसार, गोरखमुण्डी तिल्ली (Spleen) के विकार, पीलिया (Jaundice), पित्त विकार, वात विकार, कंठमाला, टीबी (क्षयरोग) के कारण बनी गांठें, खुजली (Itching), दाद, कुष्ठ (Leprosy) तथा गर्भाशय के दर्द (Cervix Pain) के उपचार में काम आता है। गोरखमुण्डी अपच, मिर्गी (Epilepsy), गलगण्ड (Goiter) एवं हाथीपाँव (Elephantiasis) आदि रोगों को ठीक करने में सहायता करता है।
गोरखमुण्डी का स्वाद कड़वा और तीखा होता है। इसके फूलों में भी यही गुण पाए जाते हैं। गोरखमुंडी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने वाला है। यह जीवाणुरोधी (Anti Bacterial) एवं कवकरोधी (Anti Fungal) होता है। इन्द्राक्त रसायन, अमृतादि तैल तथा चन्दनादि तैल में इसका प्रयोग किया गया है। चरक-संहिता में इसकी एक और जाति महाश्रावणी (S. Africans Linn.) का भी वर्णन मिलता है।
गोरखमुण्डी का पौधा 30-60 सेमी ऊँचा, गन्धयुक्त तथा जमीन पर फैला हुआ होता है। ठंड के मौसम में गोरखमुण्डी के पौधों में पहले फूल और फिर बाद में फल लगते हैं। इसके फूल बैंगनी रंग के, तेज गन्ध वाले तथा गोल घुंडियों में लगे हुए होते हैं। इन्ही घुंडियों को मुण्डी कहा जाता है। इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं।
गोरखमुण्डी का लैटिन नाम स्फेरेन्थस इण्डिकस Sphaeranthus indicus Linn., Syn-Sphaeranthus hirtus Willd.) है और यह ऐस्टरेसी (Asteraceae) कुल का है। देश-विदेश में गोरखमुण्डी को अन्य अनेक नामों से भी जाना जाता है, जो ये हैंः-
Gorakhmundi in-
औषधीय गुणों से भरपूर गोरखमुण्डी का प्रयोग ढेर सारे रोगों के उपचार के लिए किया जाता है, जो ये हैंः-
गोरखमुण्डी के 3-5 मि.ली. रस में 500 मि.ग्रा. काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह शाम पिलाने से सिर के रोगों में लाभ होता है।
गोरखमुण्डी की जड़ या पंचांग को फूल लगने से पहले थोडा सुखा लें। इतनी ही मात्रा में भृंगराज का चूर्ण मिला लें। इसे 2-3 ग्राम तक मधु व घी से 40-80 दिन तक सेवन करें। इससे बालों के सब रोग दूर होते हैं। इसस बाल काले होने लगते हैं।
गोरखमुंडी के पौधों को छाया में सुखा-पीस लें। बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। इसका 1 चम्मच सुबह और शाम दूध के साथ सेवन करने बाल सफेद नहीं होते हैं।
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गोरखमुण्डी चूर्ण को कांजी में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाएं। इसके अलावा आप किसी दन्तमंजन में इसके फूल का चूर्ण मिलाकर मंजन करें। इससे मुंह से दुर्गन्ध आना बंद होता है।
गोरखमुण्डी के फलों के 50 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम सोंठ चूर्ण मिला लें। इसे शहद के साथ डेढ़ ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार चटाने से गले की आवाज मीठी हो जाती है।
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मुण्डी पंचांग को पीसकर गले में लगाने से घेंघा रोग यानी थायरॉयड ग्रंथी की सूजन में लाभ होता है।
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गोखरू, खस, मंजीठ, शतावरी तथा श्रावणी आदि द्रव्यों से बने श्रृंदष्ट्रादि घृत (5 ग्राम) का सेवन करें। इससे टीबी की बीमारी की शुरुआती अवस्था में लाभ होता है।
मिश्री, मुण्डी, काकोली आदि द्रव्यों को दूध (100 मिली) में पकाएं। इसका सेवन करने से खाँसी, बुखार, जलन तथा टीबी रोग में लाभ होता है।
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गोरखमुुण्डी की जड़ के 1-2 ग्राम चूर्ण (gorakhmundi patanjali) में मधु मिला लें। इसका सेवन करने से सूखी खाँसी में लाभ होता है। मुंडी के पत्तों के 5 मिली रस को दूध के साथ उबाल लें। इसमें चीनी मिलाकर पीने से खाँसी में लाभ होता है।
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10-20 मिली मुण्डी जड़ के काढ़े का सेवन करने से सीने के दर्द व चुभन से छुटकारा मिलता है।
गोरखमुंडी के फलों का अर्क, आँखों के रोग और हृदय की कमजोरी दूर करता है। शुरू में इसको 15 मि.ली. की मात्रा में लेना चाहिए, बाद में मात्रा बढ़ाते रहना चाहिए। इस दौरान खट्टी और गर्म चीजें, अधिक परिश्रम व मैथुन से बचना चाहिए।
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गोरखमुण्डी की जड़ और सौंफ को बराबर मात्रा में (लगभग 2-4 ग्राम) पीस लें। इसमें मिश्री-युक्त जल से सुबह शाम सेवन करें। इससे आँव वाली पेचिश में लाभ होता है।
मुंडी की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण में 1 ग्राम मरीच चूर्ण मिलाकर सेवन करने से भी पेचिश में लाभ होता है।
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रोज सुबह 12-12 ग्राम गोरखमुण्डी फल तथा सेंधा नमक को मिलाकर 3 लीटर जल में काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मि.ली. मात्रा में सेवन करने से शरीर की जलन कम होती है।
इसके पत्ते एवं फूल से बने काढ़ा का सेवन करने से भी जलन कम होती है।
मुंडी के जड़ के काढ़े का 20 मि.ली. सेवन करने से आंत की बीमारियों खत्म होती हैं।
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मुंडी की जड़ के तेल को गुदा में लगाने से काँच निकलना (शौच में जोर लगाने से आंत का निकलना) बंद होता है।
5-10 मिली पंचांग के रस का सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
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गाय के दूध के साथ 1-2 ग्राम मुण्डी चूर्ण का सेवन करने से डायबिटीज (मधुमेह) में लाभ होता है।
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10 ग्राम ताजे पंचांग (न मिलने पर छाया में सुखाए गए पंचांग) को जल में पीस लें। इसे पिलाने से योनि की पीड़ा कम होती है।
इससे डायबिटीज में भी लाभ होता है।
गोरखमुुण्डी के पेस्ट को एरण्ड के तेल में भूनकर ठण्डा होने दें। इसे योनि में लेप करने से भी योनि के दर्द में लाभ होता है।
वात तथा पित्त के कारण होने वाले योनि रोगों में बला, गोरखमुण्डी, शालपर्णी, क्षीरकाकोली, पीलूपर्णी, मूर्वा आदि द्रव्यों को पकाए हुए बलादि यमक घी को उपयुक्त मात्रा में नियमित सेवन करने से लाभ होता है।
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गोरखमुुण्डी के पत्तों को जल में पीसकर लेप करने से अथवा पत्तों के रस को लगाने से अनेक चर्म रोग एवं पुराने घाव ठीक होते हैं।
इसके लगातार सेवन से गीली और सूखी खुजली मिट जाती है।
मुण्डी पंचांग कल्क में तेल मिलाकर लेप करने से खुजली का ठीक होती है।
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दो ग्राम गोरखमुण्डी चूर्ण में 500 मिग्रा लौंग चूर्ण मिलाकर खाने से पार्किन्सन में लाभ होता है। मुण्डी के 50 ग्राम चूर्ण में 100 ग्राम लौंग मिला लें। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में मधु मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से भी लाभ होता है।
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मुण्डी के पत्ते के रस के साथ अड़ूसे के पत्ते का रस मिला लें। इसका एक चम्मच दिन में तीन बार सेवन करने से खून की गर्मी शांत होती है।
15-20 मिली पंचांग काढ़ा का सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है।
गोरखमुंडी के पौधों को छाया में सुखा-पीस लें। बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। इसका 1 चम्मच सुबह और शाम दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
इससे शारीरिक ताकत मिलती है।
गोरखमुंडी के बीजों को पीस लें। इनमें बराबर मात्रा में चीनी मिलाकर 2-3 ग्राम मात्रा में खाने से बल और आयु में वृद्धि होती है।
इसके 1-2 ग्राम चूर्ण को घी के साथ चाटने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है।
गोरखमुंडी के पौधो के छाया में सूखाकर चूर्ण बना लें। इसके 1-2 ग्राम में दोगुना शहद मिलाकर 40 दिन तक गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
जीवक, ऋषभक, मेदा, जीवन्ती, मुंडी तथा महाश्रावणी आदि द्रव्य लें। इसे विधिपूर्वक पका कर बनाए गए वृष्य घी को 5 ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करें। इससे बल, निखार आता है।
श्रावणी, महाश्रावणी, मेदा, मुंडी आदि द्रव्य लें। 5 ग्राम की मात्रा का 6 माह तक दूध के साथ सेवन करने से याद्दाश्त, शारीरिक ताकत बढ़ती है और निखार आता है।
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1-2 ग्राम गोरखमुण्डी चूर्ण (Patanjali gorakhmundi) में 500 मि.ग्रा. काली मिर्च चूर्ण मिलाकर खाने से बुखार कम होता है।
2 ग्राम मुंडी चूर्ण में 500 मिग्रा काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। इसे शहद या दूध के साथ लेने से बुखार के कारण होने वाली जलन ख़त्म होती है।
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1-2 ग्राम मुण्डी चूर्ण का सेवन करने से शरीर की दुर्गन्ध खत्म होती है।
गोरखमुण्डी फल तथा सेंधा नमक को मिला लें। 3 लीटर जल में काढ़ा बनाकर 10-20 मि.ली. मात्रा में सेवन करने से जलन तथा सूजन कम होती है।
इसके पत्ते एवं फूले से बने काढ़ा का सेवन करने से जलन कम होती है।
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मुण्डी के पंचांग का चूर्ण को गाय के मूत्र के साथ लेप करने से कुत्ते के काटने के कारण होने वाले विकारों का नाश होता है।
काढ़ा – 15-20 मिली
चूर्ण (Patanjali Gorakhmundi) – 1-2 ग्राम
औषधि के रूप में गोरखमुण्डी का प्रयोग करने के लिए चिकित्सक की सलाह जरूर लें।
पूरे भारत में, विशेष तौर पर हिमाचल प्रदेश में 1800 मीटर की ऊंचाई तक गोरखमुंडी के पौधे अपने आप पैदा होते हैं। धान के खेतों तथा नम जंगलों में इसके पौधे अधिक मिलते हैं।
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