शायद बहुत कम लोग हैंसा (Hainsa) नाम से अबगत होंगे। हैंसा को हिन्दी, उर्दु और अरबी में कबर भी कहते हैं। हैंसा नाम से चाहे अनजाने हों लेकिन सच तो ये है कि इस जड़ी बूटी का आयुर्वेद में औषधी के रूप में बहुत इस्तेमाल होता है। हैंसा का इस्तेमाल कई तरह के बीमारियों के लिए भिन्न-भिन्न तरह से प्रयोग किया जाता है।
हैंसा के जड़, जड़ की छाल, पत्ता, फल और बीज का इस्तेमाल औषधी के लिए किया जाता है। हैंसा की दो प्रजातियां होती है-हैंसा और हिंस्रा (कंथारी)। दोनों भिन्न-भिन्न तरह से विभिन्न बीमारियों पर असर करते हैं। जैसे- हैंसा दांत, गले और कान में दर्द, दाद, जोड़ों में दर्द जैसे बीमारियों पर असरदार हैं तो हिंस्रा या कंथारी सिर, आंख, पेट जैसे दर्द में असरदार रूप से काम करते हैं।
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इस वनस्पति की दो प्रजातियां होती है- हैंसा ((Capparis spinosa Linn.) और हिंस्रा (कंथारी) (Capparis sepiaria Linn.)।
हिंस्रा कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, रूक्ष, कफवात को दूर करने वाला, अनुलोमक तथा बलकारक होती है। इसके फल दीपन, वातानुलोमक, मूत्रल तथा सर होते हैं। हिंस्रा के जड़ की छाल बलकारक, मूत्रल, कफनिसारक, आर्तवप्रर्वतक, कृमिघ्न तथा वेदना को दूर करने वाली होती है।
हिंस्रा (कंथारी)
कंथारी कटु, तिक्त, उष्ण, त्रिदोषशामक, दीपक तथा रुचिकारक होती है। यह रक्तविकार, स्नायुरोग, शोफग्रन्थि, श्वास तथा कासशामक होता है। इसका पौधा बलकारक, क्षुधावर्धक, ज्वरघ्न, परिवर्तक एवं पूयरोधी होता है। इसकी मूल त्वक् क्षुधावर्धक एवं वेदनाप्रशामक होती है।
हैंसा का वानास्पतिक नाम Capparis spinosa Linn. (कैपेरिस स्पाइनोसा) Syn-Capparis aculeata Steud. है। हैंसा Capparaceae (कैपेरेसी) कुल का होता है। हैंसा को अंग्रेजी में Capper plant (कैपर प्लान्ट) कहते हैं। लेकिन भारत के विभिन्न प्रांतो में हैंसा को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। जैसे-
Hainsa in-
Sanskrit-हिंस्रा;
Hindi-कबर, हैंसा;
Urdu-कबर (Kabar);
Kannada-मूल्लुकट्टारी (Mullukattari), कथारी मूल्लीना गीडा (Kathari mullina gida);
Gujrati-कन्थारो (Kantharo), कालो कन्थारो (Kalo kantharo), कबरी (Kabri);
Telegu-कोकिलाक्षमु (Kokilakshamu);
Bengali-कब्रा (Kabra);
Punjabi-बारर (Barar), कॉर (Kaur);
Marathi-कबर (Kabar)।
English-कॉमन केपर (Common caper), केपर बेरी (caperberry);
Arbi-कबर (Kabar), हेब्बरस (Hebbers);
Persian-केबिर (Kebir)।
हिंस्रा का वानास्पतिक नाम कंथारी Capparis sepiaria Linn है। हिंस्रा Capparaceae (कैपेरेसी) कुल का होता है। हिंस्रा को अंग्रेजी में Capper plant (कैपर प्लान्ट) कहते हैं। लेकिन भारत के विभिन्न प्रांतो में हिंस्रा को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। जैसे-
Sanskrit-कन्थारिका, कूरकर्मा, कंथारी, अहिंस्रा, चक्रवल्लरी, कपालकुलिका, अम्लफला, गुच्छगुल्मिका; Hindi-हैंसा, हिंस्राभेद, कन्थारी;
Odia-हुलुभी (Hulubhi), कोली (Koli);
Kannada-कादुकाटारी (Kadukattari);
Gujrati-कंथारो (Kantharo);
Tamil-करुनजुराई (Karunjurai);
Telegu-नालावूपी (Nallavuppi);
Bengali-कलियाकरा (Kaliakara), कांटागुरकामी (Kantagurkamai);
Nepali-जुँगे लहरो (Junge laharo);
Punjabi-हिउनगरना (Hiungarna);
Marathi-कन्थार (Kanthar)।
English-केपर ट्री (Caper tree), केपर बुश (Caper bush), केप केपर्स (Cape capers)।
आयुर्वेद के अनुसार हैंसा की दोनों प्रजातियां कई बीमारियों के लिए औषधी के रूप में काम करता है। चलिये इसके बारे में आगे विस्तार से जानते हैं-
हिंस्रा के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से दांतों का दर्द कम होता है।
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हिंस्रा के ताजे पत्तों का स्वरस निकालकर 1-2 बूंद कान में डालने से कान का दर्द कम होता है। इसके अलावा कंथारी के जड़ के रस का 1-2 बूंद कान में डालने से कान का दर्द कम होता है।
हिंस्रा के जड़ की छाल तथा पत्तियों को सिरके में पीसकर लेप करने से कंठमाला की परेशानी कम होती है।
हिंस्रा की मूल को जल के साथ पीसकर, छानकर उसमें थोड़ा जल मिलाकर पीने से अजीर्ण जन्य उदरशूल में लाभ होता है।
हैंसा की मूल को पीसकर योनि में लगाने से रतिज विकारों का शमन होता है।
हिंस्रा मूल छाल को पीसकर दद्रु या दाद में लगाने से खुजली कम होती है।
हिंस्रा के जड़ को पीसकर गुनगुना करके लगाने से जोड़ो का दर्द या जोड़ो की सूजन कम होती है।
हिंस्रा मूल तथा पत्र को पीसकर लेप करने से आमवात तथा वातज वेदना तथा वातरक्त का शमन होता है।
1-3 ग्राम कंथारी मूल चूर्ण का सेवन करने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
कंथारी मूल को पीसकर पलकों के ऊपर तथा आंख के निचले भाग में लगाने से नेत्र शोथ, पीड़ा तथा नेत्र लालिमा का शमन होता है।
कंथारी के जड़ का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पिलाने से उदरशूल का शमन होता है।
5-10 मिली कंथारी के जड़ के रस का सेवन करने से फूफ्फूस शोथ में लाभ होता है।
विकार-कंथारी-के पत्ते के काढ़े से प्रभावित स्थान धोने से त्वचा संबंधी समस्या से राहत मिलती है।
कंथारी के जड़ के अंदर के छाल के रस को लगाने से कण्डू एवं पामा में लाभ होता है।
कंथारी मूल को पीसकर लेप करने से व्रण का रोपण होता है।
कंथारी मूल छाल को पीसकर पुल्टिस बनाकर बांधने से विद्रधि तथा ग्रन्थि में लाभ होता है।
फलों से बने काढ़ा को 10 मिली की मात्रा में, दिन में तीन बार लगभग तीन सप्ताह तक प्रयोग करने से आंत्रिकज्वर में लाभ होता है।
10-20 मिली त्वक् क्वाथ एवं 1-3 ग्राम मूल चूर्ण का सेवन करने से जलशोफ में लाभ होता है।
हिंस्रा के जड़ के छाल और पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से रक्त का शोधन होकर रक्तज विकारों का शमन होता है।
मूल त्वक् को पीसकर दंश स्थान पर लेप करने से दंशजन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।
आयुर्वेद में औषधी के रूप में मूल, मूलछाल, पत्र, फल तथा बीज का प्रयोग किया जाता है। चिकित्सक के परामर्श के अनुसार 10-30 मिली काढ़ा, 1-3 ग्राम चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
यह वनस्पति समस्त भारत में विशेषत हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड की निचली घाटियों में पाई जाती है। इसकी दो प्रजातियां होती हैं। 1. हैंसा (कबर) 2. हिंस्रा (कंथारी)।
हैंसा (Capparis spinosa Linn.)
यह बहुशाखित, हल्के-पीत वर्ण से नारंगी वर्ण का कंटकयुक्त पौधा होता है। इसके पुष्प सुंदर, श्वेत वर्ण के होते हैं। इसके फल 3.8-5 सेमी लम्बे, अण्डाकार तथा पक्वावस्था में रक्त वर्ण के तथा रसयुक्त होते है। इसके बीज अनेक, चिकने, गोलाकार, 3-4 मिमी व्यास के तथा भूरे वर्ण के होते हैं।
हिंस्रा (कंथारी) (Capparis sepiaria Linn.)
यह बहुशाखित झाड़ीदार, कण्ठकित बहुवर्षायु पौधा होता है। इसकी काण्ड, शाखाएं रोमश, तीक्ष्ण तथा मुडे हुए कण्टकों से युक्त तथा धूसरवर्णी होती हैं। इसके पुष्प श्वेतवर्णी, छोटे तथा गुच्छों में लगे हुए होते हैं। इसके फल सरस, गूदेदार, गोलाकार, 0.6-1.3 सेमी व्यास के, गुच्छों में उत्पन्न, पकने के बाद गहरे बैंगनी- कृष्णवर्णी होते हैं।
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