डायबिटीज चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक उच्च रक्त शर्करा का स्तर होता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में बार-बार पेशाब आना, प्यास लगना और भूख में वृद्धि होती है। यदि इसका उपचार न किया जाए तो डायबिटीज कई जटिलताओं का कारण बन सकता है। डायबिटीज के कारण व्यक्ति का अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकाएँ इंसुलिन को ठीक प्रकार से प्रतिक्रिया नहीं देती। ग्लूकोज को अन्य कोशिकाओं तक पहुँचाने का काम इन्सुलिन का होता है और डायबिटीज के रोगी के शरीर में इन्सुलिन बनना बंद या कम हो जाता है जिस कारण शरीर में चीनी अथवा ग्लूकोज की मात्रा अधिक हो जाती है। आज के समय में तो डायबिटीज होना बहुत ही आम बात है। सिर्फ अधिक उम्र के लोगों में ही नहीं आज के समय में बच्चे भी डायबिटीज की चपेट में आ रहे है। एक समय था जब 40-50 साल की उम्र के बाद ही डायबिटीज जैसी बीमारियाँ हुआ करती है लेकिन अब अनुचित जीवनशैली और लाइफस्टाइल के कारण छोटे बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज के समय में पूरे विश्व में लगभग 350 मिलियन लाग इस बीमारी से पीड़ित है और अगले कुछ वर्षों में यह संख्या दुगनी हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय मधुमेह दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों की इसके प्रति जागरुकता बढ़े। यह रोग किसी कीटाणु के कारण नहीं होता है, मनुष्य ऊर्जा के लिए भोजन करता है, यह भोजन स्टार्च में बदलता है फिर स्टार्च ग्लूकोज में बदलता है जिन्हें सभी कोशिकाओं तक पहुँचाया जाता है और शरीर को ऊर्जा मिलती है।
Contents
आयुर्वेद में डायबिटीज को मधुमेह कहा गया है। अनुचित आहार-विहार, व्यायाम न करना, शारीरिक श्रम कम करना, अत्यधिक तनाव आदि इन सब कारणों से व्यक्ति के त्रिदोष वात, पित्त और कफ असन्तुलित हो जाते है और मधुमेह रोग को जन्म देते है। वैसे तो मधुमेह में तीनो दोषों में असंतुलन देखा जाता है परन्तु मुख्यत इसमें कफ दोष का प्रभाव मूल होता है तथा अपने ही समान लक्षणों को दर्शाता है इसके अलावा मधुमेह को कुलज विकारों में मुख्य बताया गया है अर्थात् इसका एक कारण अनुवांशिकता भी है यदि परिवार में किसी सदस्य को या माता-पिता को मधुमेह रोग चला आ रहा हो तो इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।
हमारे शरीर में पैनक्रियास नामक ग्रन्थि के ठीक से काम न करने या फिर पूरी तरह से काम न करने पर डायबिटीज होने के खतरा बढ़ जाता है। इसके अन्य भी कारण हो सकते है पर पैनक्रियास ग्रन्थि का सबसे बड़ा कारण होता है। हमारी पैनक्रयास ग्रन्थि से विभिन्न हार्मोन्स निकलते है, इनमें मुख्य है इन्सुलिन और ग्लूकॉन। इंसुलिन हमारे शरीर के लिए बहुत उपयोगी है, इसकी वजह से हमारे रक्त में हमारी कोशिकाओं को शुगर मिलती है। इन्सुलिन शरीर के अन्य भागें में शुगर पहुँचाने का काम करता है।
इंसुलिन हार्मोन का कम निर्माण होना। जब इन्सुलिन हार्मोन कम बनता है तो कोशिकाओं तक और रक्त में शुगर ठीक से नहीं पच पाती जिससे कोशिकाओं की ऊर्जा कम होने लगती है और इसी कारण से शरीर को नुकसान पहुँचने लगता है। जैसे- बेहोशी आना। दिल की धड़कन तेज होना आदि।
इंसुलिन के कम निर्माण के कारण रक्त में शुगर अधिक हो जाती है क्योंकि जब इंसुलिन कम बनता है तो कोशिकाओं तक और रक्त में शुगर जमा होती चली जाती है और यह मूत्र के जरिए निकलने लगता है। इसी कारण डायबिटीज के मरीज को बार-बार पेशाब आती है।
डायबिटीज होने में अनुवांशिकता भी एक कारण है। यदि परिवार के किसी सदस्य माँ-बाप, भाई-बहन में से किसी को है तो डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
मोटापा भी डायबिटीज के लिए जिम्मेदार होता है। समय पर न खाना या अधिक जंकफूड खाना और मोटापा बढ़ना डायबिटीज के कारण है। वजन बहुत ज्यादा बढ़ने से उच्च रक्तचाप की समस्या हो जाती है और रक्त में कॉलेस्ट्रोल का स्तर बहुत बढ़ जाता है जिस कारण डायबिटीज हो सकता है। बहुत अधिक मीठा खाने, नियमित रुप से जंक फूड खाने, कम पानी पीने, एक्सरसाइज न करने, खाने के बाद तुरंत सो जाने, आरामपरस्त जीवन जीने और व्यायाम न करने वाले लोगों में डायबिटीज होने की संभावना अधिक है।
वर्तमान में बच्चों में होने वाली डायबिटीज का मुख्य कारण आजकल का रहन-सहन और खान-पान है। आजकल बच्चे शारीरिक रुप से निक्रिय रहते है और अधिक देर तक टी.वी. या वीडियो गेम्स खेलने में समय व्यतीत करते है जिस कारण डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा रहता है। इससे बचने के लिए एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाना जरुरी है।
और पढ़े: डायबिटीज में गेहूं के फायदे
डायबिटीज दो तरह के होते हैं-
टाइप-1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes)-डायबिटीज के रोगी के शरीर में इन्सुलिन का निर्माण आवश्यकता से कम होता है। इस अवस्था को बाहर से इन्सुलिन देकर नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें रोगी का अग्न्याशय या पैनक्रियास की बीटा कोशिकाएँ इन्सुलिन नहीं बना पाती जिसका उपचार लगभग असम्भव है। यह प्रकार बच्चों को एवं 18-20 साल तक के युवाओं को प्रभावित करता है।
टाइप-2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes)-रोगी का शरीर इन्सुलिन का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इसमें शरीर इन्सुलिन बनाता तो है लेकिन कम मात्रा में और कई बार वह इन्सुलिन अच्छे से काम नहीं करता। टाइप-1 डायबिटीज को उपचार और उचित खानपान से नियंत्रित किया जा सकता है। यह डायबिटीज वयस्कों को होता है।
डायबिटीज में शरीर का ग्लूकोज बढ़ने के साथ और भी लक्षण महसूस या दृष्टिगोचर होते हैं वह इसप्रकार हैं-
-अधिक भूख एवं प्यास लगना।
-अधिक पेशाब आना।
-हमेशा थका महसूस करना ।
-वजन बढ़ना या कम होना।
-त्वचा में खुजली होना या अन्य त्वचा संबंधी समस्याएँ होना।
-उल्टी का मन होना।
-मुँह सूखना।
-बाहरी संक्रमण के प्रति शरीर संवेदनशील हो जाता है।
-नेत्र संबंधी समस्याएँ जैसे- धुंधला दिखना।
-अधिक पेशाब आने से शरीर निर्जलित हो जाता है जिस कारण बार-बार प्यास लगती है।
-कोई घाव होने पर उसके ठीक होने में समय लगता है। डायबिटीज में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक तरह से काम नहीं करती।
-महिलाओं में अक्सर योनि में कैंडिड इंफेक्शन होने को खतरा रहता है।
रक्त में अतिरिक्त चीनी से तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो सकता है। व्यक्ति अपने हाथ और पैरों में झनझनाहट महसूस करता है साथ ही हाथ-पैरों में दर्द एवं जलन हो सकती है।
-डायबिटीज में व्यक्ति की संक्रमण से लड़ने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है जिससे कि मसूड़ें में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और मसूड़े कमजोर होकर दाँत ढीले हो सकते है। निर्जलीकरण के कारण मुँह में शुष्कता रहती है।
यदि उचित खान पान और जीवनशैली के साथ घरेलु उपचारों का प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखा जा सकता है। उचित आहार और जीवनशैली का पालन करने से डायबिटीज में होने वाले लक्षण एवं जटिलताओं से भी बचा जा सकता है।
-सब्जियों में करेला, ककड़ी, खीरा, टमाटर, शलजम, लौकी, तुरई, पालक, मेथी, गोभी यह सब खाना चाहिए। आलू और शकरकन्द का सेवन नहीं करना चाहिए।
और पढ़ें: शकरकन्द के फायदे व नुकसान
-फलों में सेब, अनार, संतरा, पपीता, जामुन, अमरुद का सेवन करें इसके विपरीत आम, केला, लीची, अंगूर इस प्रकार के मीठे फल कम से कम खाने चाहिए।
-सूखे मेवों में बादाम, अखरोट, अंजीर खाएँ। किशमिश, छुआरा, खजूर इनका सेवन न करें।
-चीनी, शक्कर, गुड़, गन्ने का रस, चॉकलेट इनका सेवन बिल्कुल न करें।
-एक बार में अधिक भोजन न करें बल्कि भूख लगने पर थोड़े मात्रा में भोजन करें।
-डायबिटीज के रोगी को प्रतिदिन आधा घंटा सैर करनी चाहिए और व्यायाम करना चाहिए।
-प्रतिदिन प्राणायाम करना चाहिए तथा जितना हो सके तनावयुक्त जीवन जीना चाहिए।
डायबिटीज को नियंत्रण में लाने के लिए कुछ घरेलू इलाज कारगर होते हैं। चलिये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं-
तुलसी में मौजूद एन्टीऑक्सिडेंट और जरुरी तत्व शरीर में इन्सुलिन जमा करने वाली और छोड़ने वाली कोशिकाओं को ठीक से काम करने में मदद करते है। डायबिटीज के रोगी को रोज दो से तीन तुलसी के पत्ते खाली पेट खाने चाहिए।
अमलतास की कुछ पत्तियाँ धोकर उनका रस निकालें। इसका एक चौथाई कप प्रतिदिन सुबह खाली पेट पीने से फायदा मिलता है।
नियमित तौर पर भोजन के बाद सौंफ खाएँ। सौंफ खाने से डायबिटीज नियंत्रण में रहता है।
-करेले का जूस शुगर की मात्रा को कम करता है। डायबिटीज को नियंत्रण में लाने के लिए करेले का जूस नियमित रुप से पीना चाहिए।
-सुबह खाली पेट टमाटर, खीरा और करेले का जूस मिलाकर पिएँ।
शलजम को सलाद के रुप में या सब्जी बनाकर खाएँ।
सुबह खाली पेट अलसी का चूर्ण गरम पानी के साथ लें। अलसी में प्रचुर मात्रा मे फाइबर पाया जाता है जिस कारण यह फैट और शुगर का उचित अवशोषणा करने में सहायक होता है। अलसी के बीज डायबिटीज के मरीज की भोजन के बाद की शुगर को लगभग 28 प्रतिशत तक कम कर देते हैं।
मेथी के दानें को रात को सोने से पहले एक गिलास पानी में डालकर रख दें। सुबह उठकर खाली पेट इस पानी को पिएँ और मेथी के दानों को चबा लें। नियमित रुप से इसका सेवन करने से डायबिटीज नियंत्रण में रहता है।
गेहूँ के ज्वार का आधा कप ताजा रस रोज सुबह-शाम पीने से डायबिटीज में लाभ होता है।
जामुन के फल में काला नमक लगाकर खाने से रक्त में शुगर की मात्रा नियत्रित रहती है।
रक्त में शुगर के स्तर को कम रखने के लिए एक महीने तक अपने प्रतिदिन के आहार में एक ग्राम दालचीनी का प्रयोग करें।
और पढ़ें – डायबिटीज में बहेड़ा के फायदे
10 मि.ग्रा. आँवले के जूस को 2 ग्रा. हल्दी के पाउडर में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें।
और पढ़े – डायबिटीज में अगरु के फायदे
ग्रीन टी में पॉलिफिनॉल्स होते है। यह शुगर को कम करने वाले हाइपोग्लिसेमिक तत्व होते है। इससे ब्लड शुगर को मुक्त करने में सहायता मिलती है और शरीर इन्सुलिन का बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर पाता है।
आयुर्वेद में नीलबदरी के पत्तों का उपयोग डायबिटीज के उपचार के लिए सदियों से होता आ रहा है।जरमोल ऑफ न्यूट्रिशन Germoul of nutrition के अनुसार इसकी पत्तियों में एंथोसाइनिडाइन्स काफी मात्रा में होते है जो चयापचय की प्रक्रिया और ग्लूकोज को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाने की प्रक्रिया को बेहतर करता है।
सहिजन के पत्तों का सेवन करने से डायबिटीज के रोगियों में भोजन का पाचन बेहतर होता है और रक्तचाप को कम करने में मदद मिलती है।
नीम के पत्तों में इंसुलिन रिसेप्टन सेंसिटिविटी बढ़ाने के साथ-साथ शिराओं व धमनियों में रक्त प्रवाह को सुचारु रुप से चलाता है और शुगर कम करने वाली दवाइओं पर निर्भर होने से भी बचाता है। नीम के पत्तों का जूस रोज सुबह खाली पेट पीना चाहिए।
जब डायबिटीज के लक्षण महसूस हो तो डॉक्टर के पास जाने में देर नहीं करनी चाहिए। डॉक्टर के पास जाने पर वह ये टेस्ट करने की सलाह देते है और रिपोर्ट आने पर ही इलाज निर्धारित करते हैं।
ग्लूकोज फास्टिंग टेस्ट (Glucose fasting test)- इसको Fasting plasma glucose (FPG) भी कहते है। यह टेस्ट बिना कुछ खाए पिए सुबह के वक्त किया जाता है। यह टेस्ट बहुत ही सटीक और सुविधाजनक होता है। Glucose fasting test डायबिटीज से पहले और डायबिटीज का पता लगाने के लिए किया जाता है।
ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (Glucose tolerance test (GTT)- इस टेस्ट से करीब दो घंटे पहले लगभग 75 ग्रा. Anhydrous glucose को पानी में मिलाकर पीना होता है ताकि शुगर के सही लेवल की जाँच की जा सके। यह टेस्ट ज्यादातर ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जिसको डायबिटीज का सन्देह तो होता है परन्तु Glucose fasting test सामान्य स्तर दर्शाता है। OGTT करने के लिए कम से कम 8-12 घंटे पहले तक कुछ नहीं खाना चाहिए।
एचबीए1सी टेस्ट (HbA1C test)- यह टेस्ट डायबिटीज के दैनिक उतार-चढ़ाव न दिखाकर पिछले दो से तीन महीनों के अन्दर होने वाले blood sugar की औसत राशि के बारे में बताता है। यह हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कोशिकाओं से जुड़ी Glucose की मात्रा को भी नापता है। यह टेस्ट Type 1 डायबिटीज या गर्भावधि में होने वाले डायबिटीज का पता लगाने के लिए नहीं किया जाता। इसका इस्तेमाल Prediabetis और Type 2 डायबिटीज का पता लगाने के लिए किया जाता है।
रैंडम प्लाज़्मा ग्लूकोज (Random plasma Glucose)- इस टेस्ट का प्रयोग एक नियमित स्वास्थ्य जाँच के दौरान डायबिटीज से पहले या डायबिटीज होने पर किया जाता है। यदि RPG 200 ली. का दशमांश प्रति मा.ग्रा. या उससे ऊपर दिखाता है तो व्यक्ति में डायबिटीज के लक्षणों का पता चलता है।
और पढें – डायबिटीज में परवल के फायदे
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…