मलेरिया एक वाहक जनित संक्रामक रोग होता है। यह सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है। प्रत्येक वर्ष यह विश्व में 51.5 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है तथा 10 से 30 लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है। यह रोग भूमध्य रेखा के आस-पास उष्णकटिबंधीय (Tropical) और उपोष्णकटिबंधीय (Subtropical) क्षेत्रों में पाया जाता है जिसमें अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर देश शामिल हैं। भारत में यह रोग पूरे वर्ष रहता है हालांकि मच्छर प्रजनन के कारण बारिश के दौरान और बारिश के बाद यह रोग अधिक लोगों को होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया में कुल मलेरिया के मामलों में से 77 प्रतिशत मामले भारत में हैं। यह रोग मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, गोवा, दक्षिणी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों में प्रचलित है। यह एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी को सर्दी और सिरदर्द के साथ बार-बार बुखार आता है, बुखार कभी कम हो जाता है और कभी दोबारा आ जाता है तथा गंभीर मामलों में रोगी कोमा में चला जाता है और उसकी मृत्यु तक हो जाती है।
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आयुर्वेद में मलेरिया को विषम ज्वर कहा गया है। इसमें वात, पित्त एवं कफ तीनों दोष ही असंतुलित होकर बुखार के साथ विभिन्न लक्षणों को दिखाते हैं परन्तु इसमें मुख्यत पित्त दोष की अहम् भूमिका होती है। विषम ज्वर में बुखार आता जाता रहता है। कभी दिन में बैठे-बैठे ही, कभी एक दिन छोड़कर तो कभी दो दिन बाद, कभी हल्का तो कभी बहुत तेज, बुखार में बहुत ठण्ड लगने के साथ कंपकंपी होती है। आयुर्वेद में विषम ज्वर पाँच प्रकार का माना गया है जो इस इस प्रकार है-
सन्तत- यह बुखार 7 से 10 दिन या 12 दिन तक लगातार बना रहता है।
सतत-यह दिन रात में दो बार चढ़ने वाला बुखार है। यह दिन में दो बार या रात में दो बार या दिन में एक बार आता है।
अन्येद्युष्क- इस बुखार को एकाद्विक या इकतरा भी कहते हैं। यह दिन-रात में एक बार आता है।
तृतीयक- यह एक दिन छोड़कर हर तीसरे दिन आने वाला बुखार है।
चातुर्थिक- यह रात में आने वाला बुखार है, इसे रात्रिज्वर भी कहते हैं।
जब एक संक्रमित मच्छर मानव को काटता है तो बीजाणु (Sporozoites) मानव रक्त में प्रवेश कर यकृत (Liver) में पहुंचते हैं और शरीर में प्रवेश करने के लगभग 30 मिनट के भीतर यकृत की कोशिकाओं को संक्रमित कर देते हैं फिर यह यकृत में अलैंगिक जनन करने लगते हैं यानि वहीं अंडा देकर और भी अंशाणु पैदा करने लगते हैं। यह चरण 6 से 15 दिन चलता है तथा इससे हजारों अंशाणु (Merozoites) बनते हैं जो अपनी कोशिकाओं को तोड़ कर रक्त में प्रवेश कर जाते हैं तथा लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करना शुरू कर देते हैं। यहां से रोग का दूसरा चरण शुरू होता है। प्लासमोडियम विवाक्स (Plasmodium vivax) और प्लासमोडियम ओव्युल (Plasmodium ovale) के कुछ बीजाणु यकृत (लीवर) को ही संक्रमित कर के रुक जाते हैं और सुप्त अवस्था में रह जाते हैं यानि निक्रिय जैसा प्रतीत होते हैं। ये 6 से 12 मास तक निक्रिय रहकर फिर अचानक सक्रिय होने लगते हैं। लाल रक्त कोशिका में प्रवेश करके ये परजीवी खुद को फिर से गुणित करते रहते हैं, इस तरह ऐसे कई चरण चलते रहते हैं। हजारों अंशाणु जब एक साथ नई लाल रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं तो मलेरिया में बुखार के दौरे आते हैं। मलेरिया परजीवी अपना लगभग पूरा जीवन यकृत की कोशिकाओं या लाल रक्त कोशिकाओं में छुप कर बिताते हैं इसलिए मानव शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र से बच जाते हैं। कुछ अंशाणु नर-मादा जननाणुओं में बदल जाते हैं और जब मच्छर काटता है तो रक्त के साथ उन्हें भी ले जाता है।
अभी तक के चर्चा से आपको पता चल ही गया होगा कि मलेरिया होता कैसे हैं। चलिये अब बात करते हैं कि मलेरिया क्यों होता है? मलेरिया एक प्रकार के परजीवी (Parasite) के कारण होता है जिसे प्लाज़मोडियम (Plasmodium) कहा जाता है। प्लाज़मोडियम पैरासाइट (Plasmodium parasite) के पांच प्रकारों की वजह से ही हमारे शरीर में मलेरिया फैलता है और इनमें से मुख्यत: तीन प्रकार ज्यादातर मलेरिया के मामलों में उत्तरदायी होते हैं जो इस प्रकार हैं-
प्लाज़मोडयम फाल्सीपैरम (Plasmodium falciparum)– यह सबसे आम प्रकार का मलेरिया परजीवी है और दुनिया भर में अधिकांशत मलेरिया रोगी की मौत प्लाज़मोडयम फाल्सीपैरम (Plasmodium falciparum) परजीवी के कारण ही होती है।
प्लाज़मोडयम विवाक्स (Plasmodium Vivax)– यह परजीवी प्लाज़मोडयम फाल्सीपैरम (Plasmodium falciparum) की तुलना में मलेरिया के हल्के लक्षणों का कारण बनता है लेकिन यह तीन साल तक लीवर में रह सकता है और इसके परिणाम स्वरूप फिर से यह रोग हो सकता है।
प्लाज़मोडयम ओव्युल (Plasmodium Ovale)- यह परजीवी असामान्य है तथा आमतौर पर पश्चिम अफ्रीका में पाया जाता है। यह मलेरिया के कोई लक्षण दिखाए बिना ही कई वर्षों तक व्यक्ति के लीवर में रह सकता है।
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मलेरिया में बुखार होने के अलावा और भी लक्षण होते हैं जो दूसरे बुखार के समान होने के कारण अंतर करना मुश्किल हो जाता है। मलेरिया का बुखार सामान्य बुखार से अलग होता है, इसमें रोगी को प्रतिदिन या एक दिन छोड़कर बहुत तेज बुखार आता है-
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मलेरिया होने पर उसके कष्ट से राहत पाने के लिए जीवनशैली और आहार में बदलाव लाना ज़रूरी होता है-
आहार –
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जीवनशैली
आम तौर पर मलेरिया के बुखार के परेशानी से निजात पाने के लिए सबसे पहले घरेलू नुस्ख़ों को ही अपनाया जाता है। यहां हम पतंजली के विशेषज्ञों द्वारा पारित कुछ ऐसे घरेलू उपायों के बारे में बात करेंगे जिनके प्रयोग से बुखार को कम किया जा सकता है।
10 ग्राम तुलसी के पत्ते और 7-8 काली मिर्च के दाने लेकर पानी में पीस लें और इसमें थोड़ा शहद मिला लें। सुबह और शाम इसका सेवन करने से बुखार में आराम मिलता है।
एक छोटा टुकड़ा अदरक और 2 चम्मच किशमिश एक गिलास पानी में डाल कर उबालें, जब यह उबल कर आधा रह जाए तब इसे गुनगुना करके दिन में दो बार लें। यह बुखार को कम करने में मदद करता है।
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हरसिंगार के 2-3 पत्तों को अदरक के रस के साथ पीस लें और इसमें थोड़ी-सा शक्कर मिलाकर दिन में एक बार सेवन करें।
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2-3 नीम के पत्ते और चार काली मिर्च लेकर एक साथ पीस लें फिर इसे थोड़े से पानी में मिलाकर उबाल लें। गुनगुना होने पर इसे छान कर पी लें।
40 ग्राम गिलोय को कुचलकर मिट्टी के बर्तन में पानी मिलाकर रात भर ढक कर रख दें। सुबह इसे मसलकर छानकर रोगी को दिन में तीन बार पीने के लिये दें।
नियमित रूप से हर्बल चाय का सेवन करें। इमली डालकर बनाई गई हर्बल चाय मलेरिया के लक्षण जैसे बुखार और सिरदर्द को कम करने में मदद करते हैं।
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मेथी का बीज बुखार के कारण आई कमजोरी से निपटने का सबसे अच्छा उपाय है साथ ही यह व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाकर मलेरिया के उपचार में मदद करता है।
-चाय में दालचीनी डालकर पिएं। दालचीनी में एक शक्तिशाली जैविक घटक सिनामेलडिहाइड (Cinnamaldehyde) पाया जाता है जिसमें एंटी-इंफ्लैमटोरी (Anti–inflammatory) गुण होते हैं और यह मलेरिया के बुखार और बदन दर्द के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।
-एक ग्लास गर्म पानी में 5 ग्राम चिरायता, 2-3 लौंग और आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाएं। इसे मिलाकर पीने से मलेरिया में होने वाला बुखार उतरने लगता है।
5 मि.ली. प्याज के रस में चार काली मिर्च को पीसकर मिलाकर दिन में तीन बार पीने से लाभ मिलता है।
थोड़ी-सी फिटकरी तवे पर भूनकर चूर्ण बना लें। आधा चम्मच पाउडर बुखार आने के तीन घंटे पहले पानी से पिएं। इसके बाद हर दूसरे घंटे पर यह दवा लेते रहने से बुखार आने की संभावना कम हो जाती है।
सादा खाने का नमक पीसकर तवे पर इतना सेंके कि उसका रंग काला, भूरा (कॉफी के समान) हो जाएँ। ठण्ड़ा होने पर शीशी में भर लें। ज्वर (बुखार) आने से पहले 6 ग्रा. भुना नमक 1 ग्लास गर्म पानी में मिलाकर लें तथा ज्वर उतर जाने पर भी 6 ग्रा. भुना नमक गर्म पानी के साथ सेवन जरूर करें। इन दो खुराकों को लेने से निश्चित रूप से बुखार उतर जाएगा।
मलेरिया में रोगी को बहुत तेज बुखार आता है साथ ही शरीर में कंपकंपी भी होती है। मलेरिया में आने वाला बुखार सामान्य बुखार से अलग होता है। इसमें एक दिन छोड़कर व्यक्ति को बुखार आता है साथ ही सिर दर्द, जी मिचलाना या उल्टी होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इस तरह की स्थिति तुरंत डॉक्टर के पास जाकर रक्त परीक्षण तथा अन्य जाँच करानी चाहिए ताकि रोग की पुष्टि होकर उपचार शुरू किया जाए।
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