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आप इसबगोल (isabgol) के बारे में जरूर जानते होंगे। प्रायः इसबगोल की भूसी का इस्तेमाल कब्ज की समस्या को ठीक करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर लोगों को केवल इतना ही पता होता है, लेकिन सच यह है कि इसबगोल की भूसी के साथ-साथ इसके तने, पत्ते, फूल, जड़ और बीज भी बहुत ही उपयोगी होती हैं। आप इसबगोल का प्रयोग कर अनेक प्रकार की बीमारियों को ठीक कर सकते हैं।
आयुर्वेद के अनुुसार, इसबगोल के प्रयोग से शरीर स्वस्थ बनता है। पेचिश तथा दस्त में यह उपयोगी होता है। इसके बीज पेशाब बढ़ाने वाले, सूजन को ठीक करने होते हैं। इसके साथ ही आप बीज का उपयोग कर कफ की समस्या और वीर्य विकार को ठीक कर सकते हैं। इसकी भूसी मल को हल्का बनाने का काम करती है। यह जलन, पेशाब की समस्याओं, आमाशय के सूजन, दर्द, सूखी खांसी, त्वचारोग, गठिया, सूजाक, घाव, बवासीर, आदि को भी ठीक करती है।
इसबगोल (isabgol) के बीजों का आकार घोड़े के कान जैसा होने से इसे इस्पगोल, इसबगोल कहा जाने लगा। इसका उल्लेख प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में मिलता है। 10वीं शताब्दी के पहले से अरबी हकीमों द्वारा दवा के रूप में इसबगोल का प्रयोग किया जाता था। मुगलों के शासनकाल में भी इसबगोल का इस्तेमाल होता था।
आज भी पुराने दस्त (Chronic Dysentery) या पेचिश और आंत के मरोड़ों पर इसका अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। यह आंतों के सूजन और जलन संबंधी परेशानियों का ठीक करता है। औषधि रूप में इसके बीज और बीजों की भूसी Isabgol Husk का प्रयोग होता है।
यह दो प्रकार का होता है:
इसबगोल का लैटिन नाम प्लैन्टैगो ओवेटा ( Plantago ovata Forssk., Syn – Plantago ispaghulaRoxb.) है और यह प्लैन्टैजिनेसी (Plantaginaceae) कुल का पौधा है। इसबगोल को अन्य इन नामों से भी जाना जाता हैः-
Isabgol in –
जंगली इसबगोल (Plantago major Linn.) के नाम
इसबगोल का औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और विधियां ये हैंः-
इसबगोल चर्बी को गलाता है। यह अपने वजन से 14 गुणा अधिक पानी सोखता है। यह पाचन को ठीक करता है और इससे फाइबर का एक अच्छा स्रोत है। इसलिए मोटापा कम करने के लिए उपचार के रूप में इसबगोल का प्रयोग किया जा सकता है।
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जंगली इसबगोल के पत्तों का काढ़ा बनाकर खुजली वाले अंग को धोने से खुजली की परेशानी ठीक होती है।
एक चम्मच इसबगोल की भूसी को रात में सोते समय गर्म पानी या दूध के साथ लेने से कब्ज दूर होती है। इसबगोल की भूसी व त्रिफला चूर्ण को बराबर मात्रा में मिला लें। इसे लगभग 3 से 5 ग्राम तक रात में गुनगुने जल के साथ सेवन करने से सुबह मल त्यागने में परेशानी नहीं होती है।
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दो चम्मच इसबगोल (isabgol) की भूसी को दही के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से पुराने पेचिश तथा खूनी पेचिश में लाभ होता है।
इसबगोल के बीजों को भूनकर सेवन करने से भी पेचिश ठीक होता है।
इसबगोल के बीजों को एक लीटर पानी में उबालें। जब आधा पानी रह जाए तो तीन खुराक बनाकर दिन में तीन बार देने से हर प्रकार की पेचिश, पेट में मरोड़ की परेशानी, अतिसार इत्यादि में लाभ होता है।
100 ग्राम इसबगोल की भूसी में 50-50 ग्राम सौंफ और मिश्री मिलाकर, 2-3 चम्मच की मात्रा में दिन में 2-3 बार सेवन करने से अमीबिक पेचिश में लाभ होता है।
इसबगोल के बीजों को पानी में डालकर गाढ़ा काढ़ा बना लें। इसमें चीनी डालकर पीने से अमीबिक पेचिश, साधारण और गंभीर दस्त, पेट के दर्द की परेशानी से आराम मिलता है।
बालकों को बार-बार होने वाले दस्त में इसबगोल का प्रयोग बहुत लाभदायक होता है। इसबगोल (isabgol) के साबुत बीजों को या 10 ग्राम इसबगोल भूसी को ठंडे जल के साथ सेवन करें, या फिर उनको थोड़े जल में भिगोकर फूल जाने पर सेवन करें। इससे आंतों का दर्द तथा सूजन ठीक होता है।
1 – 2 ग्राम जंगली इसबगोल के बीज चूर्ण का सेवन करने से दस्त और पेचिश में लाभ होता है।
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इसबगोल को यूकलिप्टस के पत्तों के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक हो जाती है।
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15 – 20 मिली इसबगोल के काढ़ा को पीने से कफ और जुकाम में लाभ होता है।
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जंगली अश्वगोल के पत्ते के काढ़े का गरारा करने से खांसी में लाभ होता है।
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10 ग्राम इसबगोल के घोल में 10 मिली प्याज का रस मिला लें। इसे गुनगुना करके 1 – 2 बूँद कान में डालें। इससे कान दर्द ठीक होता है।
1 – 2 बूंद जंगली इसबगोल के पत्तों के रस को कान में डालने से कान दर्द ठीक होता है।
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इसबगोल (isabgol) के घोल से कुल्ला करने से मुंह के छाले की बीमारी में लाभ होता है।
इसबगोल को सिरके में भिगोकर दाँतों के नीचे दबाकर रखने से दाँत दर्द में लाभ होता है।
जंगली इसबगोल के पत्तों को पीसकर उसमें मक्खन मिलाकर दाँतों पर मलने से मसूड़ों की सूजन दूर होती है।
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इसबगोल के 3-5 ग्राम बीजों को गुनगुने जल से सुबह सेवन करने पर सांसों की बीमारी और दमें में लाभ होता है।
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इसबगोल का शर्बत बनाकर पिलाने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
चार चम्मच इसबगोल भूसी को 1 गिलास पानी में भिगो दें और थोड़ी देर बाद उसमें स्वादानुसार मिश्री डालकर पीने से पेशाब की जलन शांत होती है, और खुल कर पेशाब आने लगता है।
एक ग्राम इसबगोल की भूसी में 2 ग्राम शीतल मिर्च तथा 500 मिग्रा कलमी शोरा मिलाकर सेवन करने से रुक-रुक कर पेशाब आने की परेशानी में लाभ होता है।
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इसबगोल और मिश्री को बराबर मात्रा में मिला लें। इसे एक-एक चम्मच की मात्रा में आधा गिलास दूध के साथ सोने से एक घण्टा पहले सेवन करें। इसके बाद सोने से पहले पेशाब कर लें। इससे स्वप्नदोष नहीं होता है।
जोड़ों के दर्द में इसबगोल की पुल्टिस (पट्टी) बांधने से लाभ होता है।
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जंगली इसबगोल (isabgol) के पत्तों का काढ़ा बनाकर आंखों को धोने से जलन की परेशानी ठीक होती है।
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जंगली इसबगोल के पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से खून का बहना बंद होता है और घाव जल्दी ठीक होता है।
इसबगोल के पत्तों को पीसकर कीटों के काटे गए स्थान पर लेप करें। इससे सूजन, जलन और दर्द ठीक होते हैं।
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भूसी चूर्ण – 5 – 10 ग्राम
जल या दूध के साथ
अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार सेवन करें।
इसबगोल का प्रयोग इस तरह से किया जा सकता हैः-
तना
पत्ता
फूल
जड़ और
बीज
इसबगोल से ये नुकसान हो सकते हैंः-
जंगली इसबगोल के प्रयोग से बेचैनी और त्वचा संबंधी विकार हो सकते हैं।
इसे अधिक मात्रा में सेवन करने से ब्लडप्रेशर लो हो सकता है।
दस्त की समस्या हो सकती है।
इसबगोल (isabgol) नाड़ी को कमजोर और भूख को खत्म करने का काम करती है। यह औषधि प्रसूता स्त्री के लिए भी हानिकारक होती है।
इसबगोल के दुष्प्रभावों के निवारण के लिए सिकंज बीज एवं शहद का सेवन करें।
इसका प्रयोग गर्भावस्था तथा स्तनपान कराने वाली स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
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आजकल भारत में भी इसकी खेती गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में की जाती है। इसबगोल (isabgol plant) का मूल स्थान ईरान है और यहीं से इसका हिन्दुस्तान में आता है।
आप किसी भी पतंजलि स्टोर से पतंजलि इसबगोल (Patanjali Isabgol) खरीद सकते हैं। इसके अलावा आप 1mg से भी पतंजलि इसबगोल (Patanjali Isabgol) ऑनलाइन आर्डर करके मंगवा सकते हैं।
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