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ज्वार एक पोषक तत्व है। ज्वार में मिनरल, प्रोटीन, और विटमिन बी कॉम्प्लेक्स जैसे कई पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसके अलावा ज्वार में काफी मात्रा में पोटेशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और आयरन भी होता है। ज्वार काफी कम कैलोरी में अधिक पोषण देता है। लोग ज्वार का प्रयोग अनाज के रूप में करते हैं। इसके अलावा ज्वार के फायदे और भी हैं।
ज्वार कफ और पित्त को शांत करता है, वात को बढ़ाता है। शरीर को बल प्रदान करता है, थकान दूर करता है। वीर्य बढ़ाता है। यह जलन, मोटापा, गैस, घाव, बवासीर तथा रक्तपित्त को नष्ट करता है। इसके फल पौष्टिक, पाचक, खून साफ करने वाले तथा कफ को निकालने वाले होते हैं।
ज्वार के कोमल दाने वाले को भूनकर खाया जाता है। ज्वार की जड़ थोड़ी मधुर तथा रुचिकारक होती है और पित्तविकार तथा प्यास को खत्म करती है। इसके तने से मिले शक्कर पेट के लिए थोड़ी गरम तथा रुचिकारक होती है और जलन को खत्म करती है।
इससे शरीर को पौष्टिकता (Nutrition) मिलती है। इसके पौधे (Jowar Plant) के तने कोमल होते हैं। ये ताजी अवस्था में गन्ने जैसे मीठे होते हैं। इसकी अनेक जातियां होती हैं, जिनमें से कुछ का प्रयोग पशुओं के चारे के लिए किया जाता है। इसके फूलने और फलने का समय अगस्त से अक्टूबर तक होता है।
ज्वार का वानस्पतिक नाम सॉरगम बाईकलर (Sorghum bicolor (Linn.) Moench, Syn-Sorghum vulgare (Linn.) Pers; Andropogon sorghum (Linn.) Brot.) है। यह पोऐसी (Poaceae) कुल का पौधा है। ज्वार को देश-विदेश में इन नामों से जाना जाता हैः-
Jowar in –
ज्वार के औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और तरीका ये हैः-
ज्वार के रस को ललाट पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
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ज्वार के आटे (Jowar Flour) को काजल की तरह आँखों में लगाने से आँख के रोगों में लाभ होता है।
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ज्वार के रस को गुनगुना करके 1-2 बूंद कान में डालने से बहते कान की बीमारी में लाभ होता है।
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ज्वार के बीजों (Jowar Seeds) को जलाकर उनकी राख से दांतों को मलें। इससे दांतों का हिलना, मसूड़ों से खून निकलना तथा मुख के बदबू आने की समस्या ठीक होती है।
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ज्वार के भुने हुए फलों को गुड़ के साथ खाने से खाँसी में लाभ होता है।
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ज्वार के बीजों का सेवन करने से कब्ज, एसिडिटी तथा अन्य पाचन-सम्बन्धी रोगों में लाभ होता है।
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ज्वार के दानों को उबाल लें। इसका रस निकाल कर उसमें बराबर मात्रा में एरण्ड तेल मिला लें। इसका लेप करने से लकवा में लाभ होता है।
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ज्वार के आटे की रोटी बना लें। रोटी को ठण्डा करके दही में डालकर खाने से पेचिश में लाभ होता है।
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ज्वार के भुने हुए फल तथा तने के रस का सेवन करने से खूनी तथा बादी बवासीर में लाभ होता है।
ज्वार के तने का रस 5 मिली सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है। ज्वार के भुट्टे को आग में भूनकर खाने से पीलिया, गोनोरिया, ल्यूकोरिया आदि में लाभ होता है।
ज्वार के भुने हुए फलों को गुड़ के साथ खाने से साँस फूलना तथा सांस की नली की सूजन आदि रोगों में लाभ होता है।
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ज्वार का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से किडनी के रोग ठीक होते हैं। 5-10 मिली ज्वार के तने के रस को पीने से किडनी के रोगों तथा गोनोरिया, पेशाब करने में दिक्कत जैसी परेशानी आदि में लाभ होता है। इससे घाव सुखता है। प्रदर रोग के दौरान ज्वार के भुने भुट्टों का सेवन करना चाहिए।
ज्वार के दानों को उबाल लें। इसका रस निकाल कर उसमें बराबर मात्रा में एरण्ड तेल मिला लें। इसका लेप करने से जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।
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ज्वार के हरे पत्तों को पीसकर शरीर पर मलने से त्वचा के रोगों में अत्यन्त लाभ होता है। ज्वार के तने की गांठों को पीसकर उसमें एरण्ड का तेल मिलाकर लगाने से खुजली मिटती है।
ज्वार को पीसकर उसमें थोड़ा कत्था मिलाकर चेहरे पर लगाने से मुँहासे दूर हो जाते हैं।
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ज्वार के आटे से बने पदार्थों का सेवन करने से मोटापा घटता है।
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बीमारी अथवा अन्य कारणों से होने वाली कमजोरी में ज्वार से बने पदार्थों का सेवन करने से लाभ होता है।
ज्वार के आटे की रोटी बनाकर रात में रख दें। सुबह उसमें थोड़ा सा भुना हुआ सफेद जीरा तथा छाछ मिलाकर खाने से जलन मिटती है।
ज्वार के रस में चीनी तथा बराबर मात्रा में दूध मिला लें। इसे 20 मि.ली. मात्रा में सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाने से धतूरे के विष का असर खत्म हो जाता है।
ज्वार का सेवन इस मात्रा में करना चाहिएः-
काढ़ा – 10-20 मिली
रस – 5-10 मिली
अधिक लाभ के लिए ज्वार का प्रयोग चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।
पत्ते
जड़
फल
भारत के सूखे रहने वाले प्रदेश जैसे- उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान तथा तमिलनाडू में ज्वार की खेती (Jowar Crop) की जाती है। ज्वार (Sorghum) विश्व में यूरोप, एशिया, अफ्रीका एवं ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है।
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