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कोकिलाक्ष (Kokilaksha) को तालमखाना कहते हैं। सामान्य तौर पर इसके बीज का प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता है। ये एक तरह का कंटीला पौधा होता है जो नदी, तालाब के किनारे गीली मिट्टी में उगता है। इसके बीजों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा यौन संबंधी समस्याओं के लिए किया जाता है।
प्राचीन काल से तालमखाना (talmakhana) का प्रयोग कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। क्योंकि तालमखाना या कोकिलाक्ष के बीज के औषधीय गुण अनगिनत होते हैं और इसका सही मात्रा में चिकित्सक के सलाह से प्रयोग किया गया तो कई बीमारियों से राहत पाया जा सकता है।
प्राचीन काल से इसका प्रयोग वाजीकरण चिकित्सा या सेक्स संबंधी समस्याओं के उपचार में किया जा रहा है। आयुर्वेदीय निघण्टु एवं संहिताओं में कोकिलाक्ष का वर्णन प्राप्त मिलता है। चरक-संहिता के शुक्रशोधन महाकषाय में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है।
कोकिलाक्ष मूल रूप से सेक्स संबंधी बीमारियों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है, विशेष रूप से पुरूषों के काम शक्ति बढ़ाने और स्पर्म काउन्ट या शुक्राणु की संख्या को बढ़ाने में बहुत असरदार रूप से काम करता है। तालमखाना मीठा, अम्लिय गुण वाला, कड़वा, ठंडे प्रकृति का, पित्त को कम करने वाला, बलकारक, खाने में रुचि बढ़ाने वाला, फिसलने वाला, वात और कफ करने में सहायक होता है। यह सूजन, पाइल्स, प्यास, पित्त संबंधी समस्या, शोफ (Dropsy), विष, दर्द, पाण्डु या पीलिया, पेट संबंधी रोग, पेट का फूलना , मूत्र का रुकना , जलन, आमवात या गठिया, प्रमेह या मधुमेह, आँखों के बीमारियाँ तथा रक्तदोष को कम करने में मदद करता है। इसके बीज कड़वे, मधुर, ठंडे तासीर के, भारी, कमजोरी दूर करने वाले तथा गर्भ को पोषण देने वाले होते हैं।
कोकिलाक्ष के पत्ते मधुर, कड़वे तथा शोफ (Dropsy), शूल या दर्द, विष, खाने की कम इच्छा, पेट संबंधी रोग, पाण्डु या पीलिया रोग, विबंध या कब्ज, मूत्ररोग नाशक तथा वात कम करने वाले होते हैं। तालमखाने की जड़ शीतल, दर्दनिवारक या दर्द कम करने वाला, मूत्रल तथा बलकारक होती है।
कोकिलाक्ष या तालमखाना का वानास्पतिक नाम Hygrophila auriculata (Schumach) Heine (हाइग्रोफिला ऑरीकुलाटा)Syn-Hygrophila spinosa T. Anders होता है। इसका कुल Acanthaceae (ऐकेन्थेसी) होता है। और इसको अंग्रेजी में Marsh barbel (मार्श बारबेल) कहते हैं। लेकिन इसके अलावा भी अन्य भाषाओं में दूसरे नामों से भी तालमखाना को पुकारा जाता है।
Talmakhana in –
तालमखाना के अनेक फायदे हैं। आयुर्वेद में कोकिलाक्ष के पौष्टिकता के आधार पर कई तरह के बीमारियों के लिए उपचार स्वरुप औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है। चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-
अगर मौसम के बदलाव के कारण खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो इसके घरेलू इलाज से आराम मिल सकता है। कोकिलाक्ष के पत्तों का चूर्ण (talmakhana powder) बनाकर, 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से खाँसी में लाभ होता है।
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अगर किसी कारणवश सांस लेने में समस्या हो रही है तो तुरन्त आराम पाने के लिए कोकिलाक्ष का सेवन ऐसे करने से लाभ मिलता है। 2-4 ग्राम तालमखाना बीज (talmakhana seeds uses in hindi) चूर्ण में शहद तथा घी मिलाकर खिलाने से सांस लेने की तकलीफ में लाभ होता है।
पेट में जल या प्रोटीन द्रव्य के ज्यादा हो जाने के कारण पेट फूल जाता है और दर्द होने लगता है। ऐसी परेशानी में तालमखाना बहुत फायदेमंद होता है। तालमखाना की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से जलोदर में लाभ होता है। इस काढ़ा को पीने से सूजन, मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी समस्या, अश्मरी या पथरी, पूयमेह (गोनोरिया), मूत्राशय तथा लीवर संबंधी रोगों में लाभ मिलता है।
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अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहा तो तालमखाना का इस तरह से सेवन करें। 2-4 ग्राम तालमखाना बीज चूर्ण (talmakhana powder)को दही के साथ खिलाने से अतिसार या दस्त को रोकने में मदद मिलती है।
अगर रक्त संबंधी बीमारियों से आप परेशान हैं तो कोकिलाक्ष का सेवन इस तरह से कर सकते हैं। इसके लिए 1-2 ग्राम कोकिलाक्ष बीज चूर्ण का सेवन करने से रक्तज विकारों में लाभ होता है।
अगर आपको पीलिया हुआ है और आप इसके लक्षणों से परेशान हैं तो तालमखाना का सेवन इस तरह से कर सकते हैं। तालमखाना के पत्तों का काढ़ा बनाकर, 15-20 मिली मात्रा में पिलाने से कामला या पीलिया, पांडु या एनीमिया, जलोदर तथा मूत्रदाह का शमन होता है।
मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। तालमखाना का सेवन इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है।
गोखरू, तालमखाना तथा एरण्ड की जड़ को दूध में घिसकर पीने से यूरिन करते समय दर्द या जलन तथा पथरी में लाभ होता है। इसके अलावा 1 ग्राम तालमखाना मूल में समभाग गोखरू तथा एरण्ड की जड़ मिलाकर, दूध में पीसकर छानकर पिलाने से मूत्र करते समय दर्द, यूरिन का रुकना और पथरी आदि में लाभ होता है।
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आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि न खाने का नियम और न ही सोने का। फल ये होता है कि लोग को मधुमेह या डायबिटीज की शिकार होते जा रहे हैं।
तालमखाना के बीजों का काढ़ा बनाकर 15-30 मिली काढ़ा में मिश्री मिलाकर पिलाने से प्रमेह में फायदा (talmakhana benefits in hindi) मिलता है। इसके अलावा तालमखाना बीज चूर्ण में समान मात्रा में बला, गंगेरन व गोखरू चूर्ण मिलाकर रख लें। 2-4 ग्राम चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर खाने से प्रमेह में लाभ होता है।
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अक्सर तनाव, असंतुलित जीवनशैली का बुरा असर सेक्स लाइफ पर पड़ता है, जिसके कारण सेक्स संंबंधी समस्याएं होने लगती है। तालमखान का सेवन करने पर सेक्स लाइफ को बेहतर बनाया जा सकता है।
तालमखाने के बीज, कौंञ्च के बीज, गोखरू, काली मूसली, शतावरी, शालमपंजा, चोपचीनी, बादाम, चिरौंजी, इलायची, खसखस, केशर, जायफल, जावित्री, तज तथा गिलोय सत् को बराबर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार घी तथा शक्कर के साथ मिलाकर सेवन करें तथा बाद में गाय का गर्म दूध पियें। यह चूर्ण अत्यन्त कामशक्ति वर्धक, वाजीकारक तथा नपुंसकता को दूर करने वाला होता है।
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जैसा कि पहले ही हमने चर्चा की आजकल की जीवनशैली और आहार का बुरा असर सेक्स लाइफ पर पड़ रहा है जिसके कारण सेक्स संबंधी समस्याएं होने लगी हैं। तालमखाने का इस तरह से सेवन करने पर स्पर्म काउन्ट को बढ़ाया जा सकता है।
तालमखाना बीज चूर्ण में समान मात्रा में सफेद मूसली चूर्ण तथा गोखरू चूर्ण मिलाकर, 2-4 ग्राम चूर्ण को धारोष्ण दूध के साथ पीने से शुक्राणु कम होने की समस्या ठीक होती है। इसके अलावा 5 ग्राम तालमखाना बीज चूर्ण में 5 ग्राम क्रौंच बीज चूर्ण तथा 10 ग्राम शर्करा मिला लें। 2-4 ग्राम चूर्ण को धारोष्ण दूध के साथ सेवन करें।
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किसी बीमारी के कारण या दूसरे वजह से वैजाइना लूज हो गई है तो तालमखाने का प्रयोग करने से फिर से टाइट हो सकती है।
तालमखाना बीज के काढ़े में तालमखाना बीज चूर्ण मिलाकर योनि में लेप करने से योनि शैथिल्य आदि योनि विकारों यानि रोगों से राहत मिलती है।
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अक्सर उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों में दर्द होने की परेशानी शुरू हो जाती है लेकिन तालमखाने का सेवन करने से इससे आराम मिलता है।
तालमखाना तथा गुडूची को समान मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बनाकर, 10-20 मिली काढ़े में 500 मिग्रा पिप्पली चूर्ण मिश्रित कर सेवन करने तथा पथ्य भोजन करने से गठिया में शीघ्र लाभ होता है। इसके अलावा 5-10 मिली तालमखाना का रस तथा तालमखाना शाक का सेवन करने से वातरक्त या गाउट में लाभ होता है।
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आजकल अर्थराइटिस की समस्या उम्र देखकर नहीं होती है। दिन भर एसी में रहने के कारण या बैठकर ज्यादा काम करने के कारण किसी भी उम्र में इस बीमारी का शिकार होने लगे हैं। इससे राहत पाने के लिए तालमखाने का इस्तेमाल ऐसे कर सकते हैं। तालमखाना पञ्चाङ्ग को पीसकर लेप करने से दर्द वाले जगह पर लगाने से दर्द कम होता है।
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अगर दिनभर बैठकर काम करते हैं और आपके बैठने या खड़े होने का पॉश्चर सही नहीं है या दूसरे किसी बीमारी के कारण कमर में दर्द से परेशान हैं तो तालमखाने का प्रयोग ऐसे करने से जल्दी आराम मिलता है। तालमखाना के पत्तों को पीसकर लेप करने से कमर का दर्द तथा जोड़ो के दर्द में असरदार रुप से आराम मिलता है।
शरीर के किसी अंग में सूजन और दर्द होने पर कोकिलाक्ष असरदार रुप से काम करती है। गोमूत्र या जल के साथ 65-125 मिग्रा तालमखाना भस्म का सेवन करने से शोथ (सूजन) कम होता है।
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आजकल के तनाव भरी व्यस्त जीवनशैली की देन है अनिद्रा की बीमारी, कोकिलाक्ष का सेवन बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है।
काकजंघा, अपामार्ग, तालमखाना तथा सुपर्णिका का काढ़ा बनाकर, 10-20 मिली की मात्रा में पीने से अनिद्रा दूर होती है।
आजकल की जीवनशैली और आहार का बुरा असर सेक्स लाइफ पर पड़ रहा है जिसके कारण सेक्स संबंधी समस्याएं होने लगी हैं
केवाँच तथा तालमखाने के 2-4 ग्राम फलचूर्ण में शर्करा मिलाकर गर्म दूध के साथ पीने से वाजीकरण गुणों की वृद्धि होती है।
आयुर्वेद में कोकिलाक्ष के जड़, पत्ता, बीज तथा पञ्चाङ्ग का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
हर बीमारी के लिए तालमखाना का सेवन और इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, इसके बारे में पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए तालमखाना का उपयोग कर रहें हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्शानुसार –
2-4 ग्राम तालमखाना चूर्ण या 10-20 मिली काढ़े का सेवन करना चाहिए।
भारत में यह लगभग समस्त प्रदेशों के मैदानी भागों, दलदली भूमि एवं तालाब के किनारे, उष्णकटिबंधीय हिमालय में भी पाया जाता है।
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