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कदीमा (Kaddu) को प्रचलित भाषा में कदीमा कहते हैं। इसे कई स्थानों पर कद्दू भी कहा जाता है। कदीमा में पोटाशियम, विटामिन, फाइबर, फोलेट, मैग्निशियम जैसे भरपूर पोषक तत्वों के कारण कदीमा को कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है। तो चलिये जानते हैं कि कूष्माण्ड (कदीमा) का आयुर्वेद में कैसे प्रयोग किया जाता है, इसके बारे में आगे विस्तार से जानते हैं।
कदीमा या कदीमा के फलों से साग भी बनाया जाता है। इसके विभिन्न आकार व रंग के विशाल फल पाए जाते हैं। कदीमा या कदीमा पीले रंग का होता है। कूष्माण्ड (कदीमा) कड़वा, मधुर, थोड़ा गर्म प्रकृति का, गुरु, रूखा, कफ और वात को कम करने वाला, मल को निकालने में मदद करता है यानि कब्ज से दिलाये निजात, अग्नि को मन्द करने वाला, मूत्रल, कमजोरी दूर करने वाला; कृमि तथा सूजन कम करने में भी सहायता करता है। कदीमा के बीज कृमि निकालने में , जिनको मूत्र ज्यादा नहीं होता उससे राहत दिलाने में तथा स्नायु या नर्व को शक्ति प्रदान करने में सहायक होता है।
कूष्माण्ड (कदीमा) का वानस्पतिक नाम Cucurbita maxima Duch. ex Lam. (कुकुरबिटा मैक्सिमा)?Syn-Cucurbita turbaniformis M.Roem.होता हैं। कूष्मांड Cucurbitaceae (कुकुरबिटेसी) कूल का होता है। कदीमा को भारत के विभिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। जैसे-
Kaddu in-
Sanskrit-पीतकूष्माण्ड (कदीमा), काशीफल, ग्राम्या;
Hindi-लालकुमढ़ा, मीठाकूष्माण्ड (कदीमा), कोहड़ा, कदीमा;
Assamese-रंगा (Ranga);
Odia-कुम्डा (Kumda), माई (Mai);
Kannada-कुम्बलाकाई (Kumbalakai);
Konkani-दूद्दे (Dudde);
Kashmiri-अल (Al), तुम्बी (Tumbi);
Gujrati-कोरोन (Koron);
Tamil-परांगीकाजी (Parangikaji), पुषिनी (Pushini);
Telegu-गुम्मदी (Gummadi);
Bengali-सफूरीकोमरा (Saphurikomra);
Nepali-फर्सी(Farsi);
Punjabi-हलवा कूष्माण्ड (कदीमा) (Halwa kaddu);
Marathi-लालधूधिया (Lal dhudhiya);
Malayalam-मथान (Mathan), मट्टांगा (Mattanga);
Manipuri-मैरेन (Mairen);
English-ऍाटम स्क्वॉश (Autumn squash), विन्टर स्क्वॉश (Winter squash), रेड गऍर्ड (Red gourd), पम्पकिन (Pumpkin), मेलन पम्पकिन (Melon pumpkin)।
कदीमा एक ऐसा सब्जी है जो हर किचन में बनता है। लेकिन कूष्मांड या कदीमा कितने बीमारियों के लिए फायदेमंद है ये जानकर आप आश्चर्य में पड़ जायेंगे। चलिये जानते हैं कि कदीमा किन-किन बीमारियों में और कैसे काम करता है।
अगर आपको काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो कूष्माण्ड का घरेलू उपाय बहुत लाभकारी साबित होता है। कूष्माण्ड (कदीमा) तथा इमली का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली काढ़े में शक्कर मिलाकर पीने से सिर दर्द कम होता है।
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अक्सर किसी बीमारी के कारण और गर्मी या सर्दी के वजह से होंठ फटे हुए रहते हैं। ऐसे में कूष्माण्ड के बीजों का इस तरह से इस्तेमाल करने पर फटे होंठों में मुस्कान आ जाती है। कददू के बीजों को पीसकर होंठों पर लगाने से फटे हुए होंठ ठीक हो जाते हैं।
अक्सर कृमि की बीमारी से बच्चे बहुत परेशान रहते हैं। इससे राहत पाने के लिए कूष्माण्ड का प्रयोग ऐसे करने से लाभ मिलेगा। 1-3 ग्राम पीले कूष्माण्ड बीज चूर्ण का सेवन करने से पेट से कृमि निकालने में मदद मिलती है।
अगर आपको कब्ज की शिकायत रहती है तो कूष्माण्ड का सेवन करने से फायदा मिलता है। पीले कूष्माण्ड फल का साग बनाकर खाने से कब्ज ठीक होता है।
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अगर मसालेदार खाना खाने के कारण या किसी साइड इफेक्ट के वजह से आमाशय में जलन होने की तकलीफ से परेशानी हो रही है तो कूष्माण्ड के छोटे फल को भूनकर, उसका रस निकालकर पीने से यकृत् या लीवर, हृदय तथा आमाशयगत जलन से छुटकारा मिलता है।
अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। उसमें कूष्माण्ड का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। कूष्माण्ड के छिलके को सुखाकर, पीसकर खाने से बवासीर में अत्यन्त लाभ होता है।
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अगर बवासीर के कारण बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है तो कूष्माण्ड का औषधीय गुण फायदेमंद साबित हो सकता है। कूष्माण्ड के फल के गूदे को चीनी की चासनी में पकाकर, 5-10 ग्राम मात्रा में सेवन करने से अर्श (बवासीर) जन्य रक्तस्राव (ब्लीडिंग) से राहत मिलती है।
मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। कूष्माण्ड इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है। 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर मिश्री या शहद मिलाकर सेवन करने से मूत्र संबंधी रोगों से राहत मिलती है।
अगर आपको पीलिया हुआ है और आप इसके लक्षणों से परेशान हैं तो कदीमा का सेवन इस तरह से कर सकते हैं। कदीमा के रस को आंखों में अञ्जन (आंजने) करने से पीलिया में लाभ होता है।
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आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। हर कोई किसी न किसी त्वचा संबंधी परेशानी से ग्रस्त हैं। कदीमा इन सब परेशानियों को कम करने में मदद करता है। पीले कदीमा फल के गूदे को पीसकर लगाने से घाव जैसे त्वचा संबंधी रोगों में लाभ होता है।
अगर मौसम के बदलने के वजह से या किसी संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में कदीमा बहुत मदद करता है। कदीमा का शाक बनाकर खाने से ज्वर या बुखार में लाभ होता है।
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आजकल के जीवनशैली में अनिद्रा की बीमारी आम हो गई है। कदीमा बीज से बने तेल से की सिर में मालिश करने से अनिद्रा की बीमारी दूर होती है।
अगर किसी चोट के कारण या बीमारी के वजह से किसी अंग में हुए सूजन से परेशान है तो कदीमा के द्वारा किया गया घरेलू इलाज बहुत ही फायदेमंद होता है। कदीमा के फल के गूदे को पीसकर सूजन वाले स्थान पर लगाने से सूजन तथा जलन दूर होती है।
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बिच्छू के काटने पर उसके असर को कम करने में कदीमा मदद करता है। पके हुए कददू के बीजों को पीसकर बिच्छू के डंक पर लगाने से उसके विष का असर कम होता है।
आयुर्वेद में कूष्माण्ड (कदीमा) के फल, फलमज्जा, बीज एवं बीज से बने तेल का प्रयोग औषधि के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है।
बीमारी के लिए कूष्माण्ड (कदीमा) के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए कूष्माण्ड (कदीमा) का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार-
10-20 ग्राम कूष्माण्ड (कदीमा) का फल,
3-6 ग्राम बीज चूर्ण, तथा
5-10 मिली बीज के तेल का सेवन कर सकते हैं।
समस्त भारत में इसकी खेती की जाती है।
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