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जाड़े के जाते ही गर्मी आती है। चिपचिपाहट भरी गर्मी अपने साथ बिमारियों का भंडार लेकर आती है। मौसमी फल और सब्जियां मौसम जनित बीमारियों से लड़ने में मददगार होते हैं। ठीक इसी तरह फालसा (Phalsa fruit) गर्मी के मौसम का फल होता है जो गर्मी के वजह से हुए बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। फालसा (Falsa) के अनगिनत स्वास्थ्यवर्द्धक फायदे होते हैं जो फालसा को बहुगुणी फल बना देता है।फालसा इतना बहुगुणी होता है कि वह कमजोरी दूर करने में न सिर्फ टॉनिक का काम करता है बल्कि लू से लगे बुखार को कम करने में भी मदद करता है। इसी कारण आयुर्वेद में फालसा को कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। चलिये इस मौसमी फल के बारे में विस्तार से जानते हैं।
फालसा देखने में छोटी होती है लेकिन इसके गुण अनगिनत होते हैं। इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं। 1. फालसा, 2. भीमल।
यह छोटा, मुलायम और पीले रंग का झाड़ी अथवा पेड़ होता है। इसके तने की त्वचा-खुरदरी, हल्का भूरा और सफेद रंग की होती है। इसके फल गोल, बड़े मटर या जंगली झरबेरी जैसे धूसर रंग के होते हैं। जब फल कच्ची अवस्था में रहते हैं तब वह हरे रंग के तथा पके अवस्था में बैंगनी रंग के अथवा लाल रंग के, खट्टे व मीठे होते हैं।
इसके वृक्ष फैले हुए और 9-12 मी ऊँचे होते हैं। इसके फूल पीले रंग के होते हैं और पत्ते के विपरीत अक्ष (axis) में लगे होते हैं। इसके फल हरे रंग के होते हैं और सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं।
फालसा देखने में छोटा होता है लेकिन इसके फायदे अनगिनत होते हैं। कच्चा फालसा कड़वा, एसिडिक, गर्म तासीर का, छोटा, रूखा, कफ और वात को कम करने में सहायक; पित्तकारक तथा स्वादिष्ट होता है। फालसा का पका फल मधुर,ठंडे तासीर का, कमजोरी दूर करने वाला, स्पर्म का काउन्ट बढ़ाने वाला, खाने की रुची बढ़ाने वाला, पौष्टिक और थकान मिटाने वाला होता है। फालसा को मूत्रदोष, जलन, रक्त संबंधी रोग और बुखार आदि में उपचार स्वरुप उपयोग किया जाता है।
फालसा की छाल (त्वक्) मधुमेह नियंत्रण करने के साथ ही साथ योनी की जलन से भी राहत दिलाने में मदद करती है। फालसा की जड़ दर्दनिवारक, वातपित्त और मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायक होती है। इसके अलावा गर्भाशय में होने वाले दर्द को भी कम करने में मदद करती है।
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फालसा का वानस्पतिक नाम : Grewia asiatica Linn. (ग्रीविया ऐशिऐटिका) Syn-Grewia subinaequalis DC होता है। फालसा Tiliaceae (टिलिएसी) कुल का होता है। फालसा को अंग्रेज़ी में Phalsa (फालसा) कहते है, लेकिन भारत के दूसरे प्रांतों में इसको दूसरे नामों से पुकारा जाता है।
Falsa in-
फालसा में एन्टीऑक्सिडेंट, पोटाशियम, कैल्शियम, विटामिन ए, प्रोटीन, फॉस्फोरस जैसे अनगिनत गुण होते हैं जो फालसा को कई बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं कि फालसा कैसे और किन-किन बीमारियों में फायदेमंद होता है-
द्राक्षा (एक तरह का अंगूर) तथा फालसा का काढ़ा बनाकर उससे गरारा करने पर रोहिणी या डिप्थीरिया में लाभ होता है।
डायट असंतुलित हुआ कि नहीं पेट दर्द की परेशानी होनी शुरु हो जाती है। पेट दर्द की परेशानी में 5-10 मिली फालसे के रस का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है।
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मूत्र संबंधी रोगों में बहुत सारी समस्याएं आती हैं जैसे पेशाब करते वक्त जलन या दर्द होना आदि। यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन में यही समस्या आती है। इसके लिए 5 ग्राम फालसा के जड़ को रात भर 50 मिली पानी में भिगोकर रखें, सुबह-शाम मसलकर, छानकर पिलाने से मूत्र विकारों से राहत मिलती है।
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कभी-कभी बच्चे को जन्म देते वक्त शरीर के नीचले अंग में बाधा उत्पन्न होने लगता है। तब आसन्नप्रसवा स्त्री की नाभि, वस्ति यानि ब्लैडर और योनि पर फालसा के जड़ का लेप करने से मूढ़गर्भ का भी प्रसव हो जाता है। भीमल की छाल को पीसकर योनि में लगाने से प्रसव यानि डिलीवरी अच्छी तरह से हो जाता है।
अक्सर पुरूषों को स्पर्म काउन्ट लो होने की समस्या होती है। पूतिपूय नामक शुक्र दोष में परुषकादि तथा वटादि वर्ग की औषधियों से सिद्ध घी (5 ग्राम) का सेवन करने से लाभ मिलता है।
रक्तप्रदर मतलब पीरियड के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग होना। अगर लंबे समय से हद से ज्यादा मासिक स्राव हो रहा है तो फालसा का इस तरह से सेवन करने पर बहुत लाभ मिलता है। 1 ग्राम फालसा के जड़ की छाल को चावलों के धोवन के साथ पीसकर पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
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आजकल देर तक बैठने वाला काम हो गया है। दिनभर कंप्यूटर के सामने बैठकर काम करते हैं। जिसके कारण पैरों में, हाथों में दर्द होने लगता है जो धीरे-धीरे जोड़ों के दर्द में परिवर्तित हो जाता है। फालसा के गुण जोड़ों के दर्द में बहुत फायदेमंद होते हैं। 5 ग्राम परुषक घी का नियमपूर्वक सेवन करने से वातरक्त या गठिया, छाती में किसी प्रकार का जख्म, टी.बी., बुखार से राहत दिलाने में मदद करता है फालसा।
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आजकल अर्थराइटिस की परेशानी उम्र देखकर नहीं आती। कोई भी किसी भी उम्र में इसके दर्द से परेशान हो सकता है। फालसा के जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पिलाने से गठिया में लाभ होता है।
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यदि लंबे समय से अल्सर के घाव से परेशान हैं तो फालसा का इस तरह से इस्तेमाल करने पर जल्दी घाव सूखने में मदद मिलती है। फालसा की पत्तियों को पीसकर लेप करने से या छोटा-सा पोटली बनाकर बांधने से व्रण या अल्सर को सूखने में मदद मिलती है।
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अक्सर खाना बनाते समय या पूजा करते समय हाथ जल जाता है। उस वक्त फालसे का शर्बत बनाकर पीने से जलन का दर्द कम होता है।
अगर किसी बीमारी के कारण कमजोरी महसूस हो रही है तो 2 ग्राम फालसा छाल चूर्ण में 2 ग्राम मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ पीने से शरीर को शक्ति तथा बल मिलता है।
कभी-कभी किसी कारणवश शरीर के अंगों में गांठ पड़ने लगती है। वहां फालसा की पत्तियों को पीसकर गांठ पर लेप करने से लाभ होता है।
मौसम बदला की नहीं लोग बुखार के परेशानियों से जुझने लगते हैं। ऐसी हालत में घरेलू उपाय बहुत काम आते हैं। भीमल या फालसा की छाल का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से अजीर्ण (Dyspepsia) तथा फीवर में राहत मिलती है।
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आयुर्वेद में फालसे के जड़, तने के छिलके, फल और पत्ते का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
हर बीमारी के लिए फालसा का सेवन और इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, इसके बारे में पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए फालसा का उपयोग कर रहें हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
फालसे के फलों का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से एसिडिटी या पेट फूलने की समस्या होती है।
समस्त भारत में यह साधारणतया गंगा के मैदानी भागों तथा पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र एवं आंध्र प्रदेश में पाया जाता है।
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