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वासा (malabar nut) के बारे में कौन नहीं जानता। असल में दादी-नानी के जमाने से वासा का प्रयोग सर्दी-जुकाम के इलाज के लिए घरेलू नुस्ख़ों के तौर पर सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में भी वासा का औषधि के रुप में विशिष्ट स्थान है। वासा को अडूसा (ardusi) भी कहते हैं। आयुर्वेद में कहा जाता है कि वासा वात, पित्त और कफ को कम करने में बहुत काम आता है। इसके अलावा वासा सिरदर्द, आँखों की बीमारी, पाइल्स, मूत्र रोग जैसे अनेक बीमारियों में बहुत फायदेमंद साबित होता है, तो चलिये वासा किन-किन बीमारियों में लाभदायक है इसके बारे में जानने से पहले वासा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
आचार्य चरक ने वासा को रक्तपित्त की चिकित्सा में श्रेष्ठ माना है। चरकसंहिता में दशेमानि‘ में वासा का उल्लेख नहीं है। वासा का पत्ता शाक कफपित्त को कम करने वाला होता है। नेत्ररोगों के साथ अश्मरी (पथरी) शर्करा (ब्लड ग्लूकोज), कुष्ठ, ग्रहणी (Irritable bowel syndrome), योनिरोग (Vaginal related disease) और वात संबंधी बीमारियों में अन्य द्रव्यों के साथ वासा का प्रयोग मिलता है। सुश्रुत-संहिता में क्षारक्रिया में इसकी गणना की गई है। इसकी तीन जातियाँ पाई जाती है, जो निम्न प्रकार हैं।
ऊपर वर्णित वासा की प्रजातियों के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।
अडूसा वातकारक, कफपित्त कम करने वाला, स्वर के लिए उत्तम, हृदय की बीमारी, रक्त संबंधी बीमारी, तृष्णा या प्यास, श्वास या सांस संबंधी, कास, ज्वर, वमन, प्रमेह, कोढ़ तथा क्षय रोग में लाभप्रद है। श्वसन संस्थान पर इसकी मुख्य क्रिया होती है। यह कफ को पतला कर बाहर निकालता है तथा सांस-नलिकाओं का कम, परन्तु स्थायी प्रसार करता है। श्वास नलिकाओं के फैल जाने से दमे के रोगी का सांस फूलना कम हो जाता है। कफ के साथ यदि रक्त भी आता हो तो वह भी बंद हो जाता है। इस प्रकार यह श्लेष्म् या , कास, कंठ्य एवं श्वासहर है। यह रक्तशोधक एवं रक्तस्तम्भक है, क्योंकि यह छोटी रक्तवाहनियों को संकुचित करता है। यह प्राणदानाड़ी को अवसादित कर रक्त भार को कुछ कम करता है। इसकी पत्त्तियां सूजन कम करने वाला, वेदना कम करने वाला, जंतु को काटने पर तथा कुष्ठ से राहत दिलाने में मदद करता है। यह मूत्र जनन, स्वेदजनन तथा कुष्ठघ्न है। नवीन कफ रोगों की अपेक्षा इसका प्रयोग पूराने कफ रोगों में अधिक लाभकारी होता है।
कृष्णवासा-काला वासा रस में कड़वा, तीखा तथा गर्म, वामक व रेचक होता है एवं बुखार, बलगम बीमारी से राहत दिलाने तथा अर्दित (Facial paralysis) आदि रोगों में लाभकारी होता है।
रक्त वासा-इसकी पत्तियाँ मृदुकारी तथा सूजन कम करने में मदद करता है।
यह ग्राम धनात्मक (Gram +ve) एवं ग्राम ऋणात्मक (Gram -ve) जीवाणुओं के प्रति सूक्ष्मजीवीनाशक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है। यह एंटीकोलीनेस्टेरेज (Anticholinesterase) क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
वाचा का वानस्पतिक नाम Adhatoda zeylanica Medik. (एढैटोडा जेलनिका) Syn- Adhatoda vasica Nees; Justicia adhatoda Linn. है। वाचा का कुल Acanthaceae (ऐकेन्थेसी) है। वाचा को अंग्रेजी में Malabar nut (मालाबार नट) कहते हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों में वाचा को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है।
Vasa in-
Sanskrit-वासक, वासिका, वासा, सिंहास्य, भिषङ्माता, सिंहिका, वाजिदन्ता, आटरूषक, अटरूष, वृष, ताम्र, सिंहपर्ण, वैद्यमाता;
Hindi-अडूसा, अडुस्, अरुस, बाकस, बिर्सोटा, रूसा, अरुशा;
Urdu-अरूसा (Arusa);
Oriya-बासोंगो (Basongo);
Uttrakhand-वासिग (Basig), बसिंगा (Basinga);
Konkani-अडोलसो (Adolso);
Kannada-आडुसोगे (Adusoge), कूर्चीगिड़ा (Kurchigida), पावटे (Pavate);
Gujrati-अरडुसो (Arduso);
Tamil-एढाटोडी (Adhatodi);
Telugu-आड्डा सारामू (Addasaramu);
Bengali-वासक (Vasaka), बाकस (Bakas);
Nepali-असुरू (Asuru);
Panjabi-भेकर (Bahekar);
Marathi-अडुलसा (Adulsa), अडुसा(Adusa); अटारूशाम (Atarushamu)
Malayalam-आटडालोटकम् (Atdalotakam)।
English-लायन्स मजल (Lion’s Muzzle), स्टालिऔन टूथ (Stallion’s tooth), वासका (Vasaka);
Persian-बनशा (Bansa)।
वासा के गुण और फायदों के बारे में आप अनजान हैं। वासा (malabar nut) किन-किन बीमारियों में और कैसे काम करता है, चलिये इसके बारे में विस्तृत रुप से जानते हैं।
आजकल के तनाव भरी जिंदगी में सिरदर्द आम बीमारी हो गई है। सिरदर्द होने पर अडूसा का सेवन बहुत लाभकारी होता है।
-अडूसा के छाया में सूखे हुए फूलों को पीस लें, 1-2 ग्राम फूल के चूर्ण में समान मात्रा में गुड़ मिलाकर खिलाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
-वासा की 20 ग्राम जड़ को 200 मिली दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर, इसमें 30 ग्राम मिश्री तथा 15 नग काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सिरदर्द, आँख का रोग, दर्द, हिचकी, खांसी आदि बीमारियों से राहत मिलता है।
-छाया में सूखे हुए वासा पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिरदर्द दूर होता है। स्वाद के लिए इस चाय में थोड़ा नमक मिला सकते हैं।
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अगर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण या दिन भर कंप्यूटर पर काम करने के वजह से आँखों में सूजन हुआ है तो वासा का औषधीय गुण बहुत काम आता है। वासा के 2-4 ताजे फूलों को गर्म कर आंख पर बांधने से आंख के गोलक की सूजन कम होती है।
अगर किसी इंफेक्शन के कारण मुँह में घाव या सूजन हुआ है तो वासा का प्रयोग जल्दी आराम पाने में मदद करेगा।
–यदि केवल मुख में छाले हों तो वासा के 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है।
-इसकी लकड़ी की दातौन करने से मुख के रोग दूर हो जाते हैं।
-वासा के 50 मिली काढ़े में एक चम्मच गेरू और दो चम्मच मधु मिलाकर मुख में रखने से मुँह का घाव सूख जाता है।
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बच्चे और वयस्क सभी दांतों के कैविटी से परेशान रहते हैं इसके लिए वासा का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। दाढ़ या दांत में कैविटी हो जाने पर उस स्थान में वासा पत्ते का निचोड़ भर देने से आराम होता है।
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ऐसा कौन है जो दांत दर्द से परेशान नहीं रहता है, इसके लिए अडूसा का प्रयोग इस तरह से करने पर जल्दी राहत मिलती है। वासा के पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत दर्द कम होता है।
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अगर सांस संबंधी समस्या से परेशान रहते हैं तो वासा का औषधीपरक गुण बहुत काम आता है।
-अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सोंठ तथा रेगनी के 10-20 मिली काढ़े में 1 ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण सांस संबंधी रोग पूर्ण रूप से ठीक हो जाती है।
-वासा के पञ्चाङ्ग को छाया में सुखाकर कपड़े में छानकर रोज 10 ग्राम मात्रा में खाने से सांस लेते वक्त खांसी होने पर उसमें लाभ होता है।
हर बार मौसम बदलने के समय अगर आप दमे से परेशान रहते हैं तो अडूसा का सेवन करें। इसके ताजे पत्तों को सुखाकर, उनमें थोड़े से काले धतूरे के सूखे हुए पत्ते मिलाकर दोनों को पीसकर चूर्ण करके (बीड़ी बनाकर पीने) धूम्रपान करने से सांस लेने में आश्यर्चजनक लाभ होता है।
अगर मौसम के बदलाव के कारण सूखी खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो बांस से इसका इलाज किया जा सकता है।
-5 मिली वासा पत्र स्वरस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से पुरानी खांसी, श्वास और क्षय रोग में लाभ होता है।
-अडूसा, मुनक्का और मिश्री का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली क्वाथ दिन में तीन-चार बार पिलाने से सूखी खांसी का शमन होता है।
-5 मिली अडूसा के रस में शहद मिलाकर 7 दिन तक सेवन करने से धातुक्षय तथा श्वास का शमन हो जाता है।
-2 ग्राम अमृतासत्त्, 60 मिग्रा ताम्रभस्म तथा 2 ग्राम बेलगिरी के चूर्ण को मिलाकर 5 मिली अडूसा के रस के साथ प्रात सायं प्रयोग करने से क्षय, कास तथा श्वास का शमन होता है।
–परमपूज्य स्वामी रामदेव जी द्वारा किया गया प्रयोग- वासा के पत्तों का रस 1 चम्मच तथा 1 चम्मच अदरक रस में, 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी में आराम हो जाता है।
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तपेदिक जैसे संक्रामक रोग में भी वासा का औषधीय गुण बहुत फायदेमंद तरीके से काम करता है। अडूसा के पत्तों के 20-30 मिली काढ़े में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर पिलाने से खांसी, सांस संबंधी समस्या और क्षय रोग में लाभ होता है।
आजकल के जीवनशैली में असंतुलित खान-पान आम बात है और फिर इसका सीधा असर पेट पर पड़ता है। एसिडिटी, अपच जैसी समस्याओं से हर इंसान परेशान है। इस बीमारी से राहत पाने के लिए वासा का सेवन इस तरह से करें। वासा छाल का चूर्ण 1 भाग, अजवायन का चूर्ण चौथाई भाग और इसमे आठवां हिस्सा सेंधा नमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरल कर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के बाद 1-3 गोली को सुबह-शाम सेवन करने से वात के कारण बुखार तथा आध्मान (विशेषत भोजन करने के बाद पेट का भारी हो जाना, मन्द-मन्द पीड़ा होना) में लाभ होता है।
मसालेदार या रास्ते का तला हुआ खाना खाया कि नहीं संक्रमण हो गया। अगर ऐसे संक्रमण के कारण दस्त हो रहा और रुकने के नाम नहीं ले रहा तो वासा का घरेलू उपाय जल्द आराम दिलाने में मदद करेगा। 10-20 मिली वासा पत्ते के रस को दिन में तीन-चार बार पीने से दस्त में लाभ होता है।
पेट में जल या प्रोटीन द्रव्य के ज्यादा हो जाने के कारण पेट फूल जाता है और दर्द होने लगता है। ऐसी परेशानी में वासा बहुत फायदेमंद होता है। जलोदर में या उस समय जब सारा शरीर श्वेत हो जाय, उसमें वासा के पत्तों का 10-20 मिली स्वरस दिन में 2-3 बार पिलाने से लाभ होता है।
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अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। उसमें वासा का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। अडूसा के पत्ते और सफेद चंदन इनको बराबर मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा प्रतिदिन, दिन में दो बार सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में बहुत लाभ होता है । अर्शांकुरों में यदि सूजन हो तो वासा के पत्तों के काढ़े का बफारा देना चाहिए।
अगर आपको पीलिया हुआ है और आप इसके लक्षणों से परेशान हैं तो वासा का सेवन इस तरह से कर सकते हैं। वासा पञ्चाङ्ग के 10 मिली रस में मधु और मिश्री समान मात्रा में मिलाकर पिलाने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
अडूसा का औषधीय गुण किडनी के दर्द से आराम दिलाने में बहुत फायदेमंद है। अडूसे और नीम के पत्तों को गर्म कर नाभि के निचले भाग पर सेंक करने से तथा अडूसे के पत्तों के 5 मिली रस में 5 मिली शहद मिलाकर पिलाने से गुर्दे के भयंकर दर्द में आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचता है।
मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। वासा इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है।
-मूत्र दोष में खरबूजे के 10 ग्राम बीज तथा अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।
–वासा के 8-10 फूलों को रात्रि के समय एक गिलास जल में भिगोकर सुबह मसलकर छानकर पीने से मूत्रदाह या मूत्र करते हुए जलन से आराम मिलता है।
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महिलाओं में मासिक धर्म की समस्या बहुत ही आम है,लेकिन वासा का औषधीय गुण इस बीमारी से निजात दिलाने में बहुत काम आता है। वासा के पत्ते ऋतुस्राव को नियंत्रित करते हैं। मासिक धर्म में रक्तस्राव यानि ब्लीडिंग अच्छी तरह से न होने पर वासा पत्ते में 10 ग्राम, मूली व गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को आधा लीटर पानी में पका लें। चतुर्थांश शेष रहने पर इस काढ़े का कुछ दिन सेवन करने से लाभ होता है।
वासा का औषधीय गुण डिलीवरी के प्रक्रिया को सुखपूर्वक करने में मदद करता है।
-अडूसा की जड़ को पीसकर गर्भवती स्त्री की नाभि, नलों व योनि पर लेप करने से तथा जड़ को कमर पर बांधने से प्रसव सुख पूर्वक होता है।
-पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग, इनमें से किसी एक की जड़ को नाभि, वस्तिप्रदेश तथा भग प्रदेश पर लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।
महिलाओं को अक्सर योनि से सफेद पानी निकलने की समस्या होती है। सफेद पानी का स्राव अत्यधिक होने पर कमजोरी भी हो जाती है। इससे राहत पाने में वासा का सेवन फायदेमंद होता है।
– अडूसा के 10-15 मिली रस में अथवा गिलोय के रस में 5 ग्राम खाँड तथा 1 चम्मच मधु मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
-10 मिली वासा पत्र स्वरस में 1 चम्मच मधु मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।
इसमें गर्भाशय से खून बहता है, जो प्रत्याशित मासिक धर्म के बीच होता है। ऐसा कभी-कभी मेनोपॉज का समय पास आने पर भी होता है। इस बीमारी से राहत पाने के लिए वासा के 10 मिली पत्ते के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार देने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
वात रोग में अक्सर हाथ पैरों में ऐंठन होता है लेकिन वासा का औषधीय गुण बहुत फायदेमंद होता है। वासा के पत्ते के रस में सिद्ध किए तिल के तेल की मालिश करने से वात वेदना तथा हाथ पैरों की ऐंठन मिट जाती है।
वासा के पके हुए पत्तों को गर्म करके सिकाई करने से जोड़ों के दर्द और लकवा में आराम पहुंचाता है।
फोड़ा अगर सूख नहीं रहा है तो वासा का इस तरह से प्रयोग करने पर जल्दी सूख जाता है। फोड़े पर प्रारंभ में ही इसके पत्तों को पानी के साथ पीसकर लेप कर दें, तो फोड़ा बैठ जाता है और कोई कष्ट नहीं होता।
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यदि चेचक फैली हुई हो तो वासा का 1 पत्ता तथा मुलेठी 3 ग्राम इन दोनों का काढ़ा बच्चों को पिलाने से चेचक का भय नहीं रहता है।
आजकल के तरह-तरह के नए-नए कॉज़्मेटिक प्रोडक्ट के दुनिया में त्वचा रोग होने का खतरा भी दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। दाद-खुजली जैसे चर्मरोग में वासा का प्रयोग बहुत फायदेमंद होता है। अडूसा के 10-12 कोमल पत्ते तथा 2-5 ग्राम हल्दी को एक साथ गोमूत्र से पीस कर लेप करने से खुजली, सूजन रोग शीघ्र नष्ट होता है। इससे दाद में भी लाभ होता है।
प्रतिदिन जो रोगी दूध भात का खाते हैं उसमें 2-5 ग्राम वासा चूर्ण को 1 चम्मच मधु के साथ सेवन करने से उसे पुराने भयंकर मिरगी रोग में अत्यन्त लाभ होता है।
रक्तपित्त के कष्ट से राहत दिलाने में वासा का घरेलू इलाज बहुत काम आता है, लेकिन प्रयोग करने का तरीका सही होना चाहिए।
-ताजे हरे अडूसा के पत्तों का रस निकालकर 10-20 मिली रस में मधु तथा खाँड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से भयंकर रक्तपित्त शांत हो जाता है।
-10-20 मिली अडूसा पत्ते के रस में तालीस पत्र (2 गाम) चूर्ण तथा मधु मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ की बीमारी, पित्त विकार, दम फूलना, गले की खराश तथा रक्तपित्त ठीक होता है।
-वासामूल त्वक्, मुनक्का तथा हरड़ इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिली पानी में पकाएं। चतुर्थांश शेष रहने पर काढ़े में खाँड तथा मधु डाल कर पीने से खांसी, सांस लेने में तकलीफ तथा रक्तपित्त आदि रोगों में लाभ होता है।
वासा या अडूसा का औषधीय गुण टाइफाइड के लक्षणों से राहत दिलाने में बहुत मदद करते हैं। इसके लिए वासा का सही तरह से सेवन करना ज़रूरी होता है। 3-6 ग्राम वासामूल चूर्ण का सेवन करने से आत्रिक-ज्वर (टाइफाइड) में लाभ होता है।
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पैत्तिक ज्वर से राहत पाने के लिए वासा का पत्ता और आंवला बराबर लेकर कूट कर शाम के समय मिट्टी के बर्तन में (कुल्हड़) भिगो दें। सुबह पीसकर उसका रस निचोड़ लें, इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से बुखार कम होता है।
अगर तापमान के उतार-चढ़ाव के साथ आपको बार-बार कफ या बलगम भरी खांसी होने लगती है तो वासा का घरेलू इलाज राहत दिलाने में मदद करेगा। इसके लिए हरड़, बहेड़ा, आँवला, पटोल पत्ता, वासा, गिलोय, कुटकी तथा पिप्पली मूल को मिलाकर, यथा-विधि काढ़ा करके 10-20 मिली काढ़े में 2 ग्राम मधु डालकर सेवन करने से कफ संबंधित ज्वर में लाभ होता है। इसके अलावा अडूसा, पीपरामूल, कुटकी, नेत्रबाला तथा धमासा का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली काढ़े में 500 मिग्रा सोंठ चूर्ण डालकर पीने से कफजज्वर में लाभ होता है।
सन्निपातज्वर में पुटपाक विधि से निकाले हुए 10 मिली अडूसा रस में थोड़ा अदरक का रस और तुलसी का पत्ता मिलाकर उसमें मुलेठी को घिसकर शहद में मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाना चाहिए। इसके अलावा वासा जड़ की छाल 20 ग्राम, सोंठ 3 ग्राम तथा काली मिर्च एक ग्राम को मिलाकर काढ़ा बनाकर, 10-20 मिली काढ़े में मधु मिलाकर पिलाना चाहिए।
चाहे वह गर्मी का मौसम हो या सर्दी का,किसी-किसी के शरीर के बहुत दुर्गंध आती है , लेकिन वासा का घरेलू इलाज इस संदर्भ में बहुत फायदेमंद साबित होता है। वासा के पत्ते के रस में थोड़ा शंखचूर्ण मिलाकर लगाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
अन्य प्रयोग :
-जंतुघ्न में वासा का प्रयोग –अडूसा जलीय कीड़ों तथा जन्तुओं के लिए विषैला है, मेंढक इत्यादि छोटे जन्तु इससे मर जाते हैं। इसलिए पानी को शुद्ध करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।
-पशु व्याधि में वासा का प्रयोग-गाय तथा बैलों को यदि कोई उदर व्याधि हो तो उनके चारे में इसके पत्तों की कुटी मिला देने से लाभ होता है। बैलों के उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं।
–पुस्तकों को कीड़े से बचाने में वासा का प्रयोग- वासा के सूखे पत्तों को पुस्तकों में रखने से उनमें कीड़े नहीं लगते।
वासा का उपयोगी भाग (Useful Parts of Vasa)
आयुर्वेद में वासा के-
-फूल,
-जड़ तथा
-पत्ता का प्रयोग औषधि के लिए सबसे किया जाता है।
आमतौर पर वाचा का सेवन बीमारी में लिखी हुई मात्रा के अनुसार ही करना चाहिए। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए वाचा का उपयोग कर रहें हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार-
– 3-6 ग्राम जड़ का चूर्ण।
-10-15 मिली पत्ते के रस का सेवन करना चाहिए।
अडूसे के स्वयंजात पौधे सम्पूर्ण भारतवर्ष में लगभग 400 से 1400 फूट की ऊंचाई तक कंकरीली भूमि में झाड़ियों के समूह में उगते हैं।
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